अनैतिक व्यापार अधिनियम, 1956(निवारण) ( Immoral Traffic Act, 1956(Prevention) )
(1956 का अधिनियम संख्यांक 104)
1. सक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) यह अधिनियम [अनैतिक व्यापार (निवारण)] अधिनियम, 1956 कहा जा सकेगा ।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है ।
(3) यह धारा तुरन्त प्रवृत्त हो जाएगी, और इस अधिनियम के शेष उपबन्ध उस तारीख को प्रवृत्त होंगे जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे ।
2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “वेश्यागृह" के अन्तर्गत कोई घर, कमरा [,सवारी] या स्थान अथवा किसी घर, कमरे 5[,सवारी] या स्थान का कोई प्रभाग अभिप्रेत है जिसका प्रयोग अन्य व्यक्ति के अभिलाभ के लिए अथवा दो या अधिक वेश्याओं के पारस्परिक अभिलाभ के लिए [लैंगिक शोषण या दुरुपयोग] के प्रयोजनों के लिए किया जाता है ;
[(कक) “बालक" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने सोलह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है ;]
5[[(ख) “सुधार संस्था" से किसी भी नाम से ज्ञात कोई ऐसी संस्था अभिप्रेत है (जो धारा 21 के अधीन उस संस्था के रूप में स्थापित या अनुज्ञप्त है) जिसमें ऐसे [व्यक्तियों] को, इस अधिनियम के अधीन निरुद्ध रखा जा सकेगा जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है, और इसके अन्तर्गत वह आश्रय भी है [विचारणीय व्यक्तियों] की अधिनियम के अनुसरण में रखा जाए ;]
[(ग) “मजिस्ट्रेट" से ऐसा कोई मजिस्ट्रेट अभिप्रेत है जो उस धारा द्वारा, जिसमें यह पद आता है, प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अनुसूची के द्वितीय स्तम्भ में सक्षम विनिर्दिष्ट किया गया है और जो अनुसूची के प्रथम स्तम्भ में विनिर्दिष्ट है ;]
7[(गक) “वयस्क" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है ;
(गख) “अवयस्क" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने सोलह वर्ष की आयु पूरी कर ली है किन्तु अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है ;
(घ) “विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;
(च) “वेश्यावृत्ति" से व्यक्तियों का वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए लैंगिक शोषण या दुरुपयोग अभिप्रेत है, और वेश्या" पद का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ;]
(छ) “संरक्षागृह" से किसी नाम से ज्ञात कोई ऐसी संस्था अभिप्रेत है (जो धारा 21 के अधीन स्थापित या अनुज्ञप्त संस्था है) जिसमें ऐसे [व्यक्तियों] को, जिनकी देख-रेख और संरक्षण की आवश्यकता है, इस अधिनियम के अधीन रखा जाए [और जहां समुचित तकनीकी रूप से अर्हित व्यक्तियों, उपस्कर और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की गई हैट और इसके अन्तर्गत निम्नलिखित नहीं हैं :-
(i) कोई आश्रय जहां [विचारणाधीन] को इस अधिनियम के अनुसरण में रखा जाए ; या
(ii) कोई सुधार संस्था ;
(ज) “सार्वजनिक स्थान" से ऐसा कोई स्थान अभिप्रेत है जो जनता के प्रयोग के लिए आशयित हो या जिस तक जनता की पहुंच हो तथा इसके अन्तर्गत कोई लोक प्रवहण भी है ;
(झ) “विशेष पुलिस अधिकारी" से इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र के अन्दर पुलिस कार्यों का भारसाधक होने के लिए राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से नियुक्त कोई पुलिस अधिकारी अभिप्रेत है ;
[(ञ) दुर्व्यापार पुलिस अधिकारी" से केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 13 की उपधारा (4) के अधीन नियुक्त कोई पुलिस अधिकारी अभिप्रेत है ।]
[2क. जम्मू-कश्मीर को लागू न होने वाली अधिनियमितियों की बाबत अर्थान्वयन का नियम-इस अधिनियम में किसी ऐसी विधि के, जो जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त नहीं है, प्रति किसी निर्देश का उस राज्य के सम्बन्ध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि यदि उस राज्य में कोई तत्स्थानी विधि प्रवृत्त है तो वह निर्देश उस तत्स्थानी विधि के प्रति है ।]
3. वेश्यागृह चलाने या परिसरों को वेश्यागृह के रूप में प्रयुक्त करने देने के लिए दण्ड-(1) कोई व्यक्ति जो कोई वेश्यागृह चलाता है या उसका प्रबन्धन करता है अथवा उसको चलाने या उसके प्रबन्ध में काम करता है या सहायता करता है वह प्रथम दोषसिद्धि पर एक वर्ष से अन्यून और तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कठोर कारावास से तथा जुर्माने से भी जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में दो वर्ष से अन्यून और पांच वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कठोर कारावास से तथा जुर्माने से भी, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।
(2) कोई व्यक्ति जो-
(क) किसी परिसर का अभिधारी, पट्टेदार, अधिभोगी या भारसाधक व्यक्ति होते हुए ऐसे परिसर या उसके किसी भाग को वेश्यागृह के रूप में प्रयुक्त करेगा या जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को प्रयुक्त करने देगा ; अथवा
(ख) किसी परिसर का स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी अथवा ऐसे स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी का अभिकर्ता होते हुए उसे या उसके किसी भाग को यह जानते हुए पट्टे पर देता है कि उसका या उसके किसी भाग का वेश्यागृह के रूप में प्रयोग किया जाना आशयित है अथवा ऐसे परिसर या उसके किसी भाग के वेश्यागृह के रूप में प्रयोग का जानबूझकर पक्षकार होगा,
प्रथम दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा तथा द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में कठोर कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, दण्डनीय होगा ।
[(2क) उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिए, जब तक कि प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उस उपधारा के खंड (क) या खंड (ख) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति, यथास्थिति, परिसर या उसके किसी भाग को वेश्यागृह के रूप में उपयोग किए जाने के लिए जानबूझकर अनुज्ञात कर रहा है या उसे यह जानकारी है कि परिसर या उसके किसी भाग का वेश्यागृह के रूप में उपयोग किया जा रहा है, यदि,-
(क) किसी ऐसे समाचारपत्र में, जिसका उस क्षेत्र में परिचालन है जिसमें ऐसा व्यक्ति निवास करता है, इस आशय की रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है कि इस अधिनियम के अधीन की गई तलाशी के परिणामस्वरूप यह पाया गया है कि परिसर या उसके किसी भाग का वेश्यावृत्ति के लिए उपयोग किया जा रहा है ; अथवा
(ख) खंड (क) में निर्दिष्ट तलाशी के दौरान पाई गई सभी वस्तुओं की सूची की एक प्रति ऐसे व्यक्ति को दे दी जाती है ।]
(3) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी उपधारा (2) के खण्ड (क) या खण्ड (ख) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति के किसी परिसर या उसके किसी भाग के सम्बन्ध में उस उपधारा के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष होने पर, कोई ऐसा पट्टा या करार जिसके अधीन ऐसा परिसर पट्टे पर दिया गया है या उस अपराध के किए जाने के समय धारित है या अधिभोगाधीन है, उक्त दोषसिद्धि की तारीख से शून्य और अप्रवर्तनशील हो जाएगा ।
4. वेश्यावृत्ति के उपार्जनों पर जीवन निर्वाह के लिए दण्ड-(1) अठारह वर्ष की आयु से अधिक का कोई व्यक्ति जो जानबूझकर [किसी अन्य व्यक्ति] की वेश्यावृत्ति के उपार्जनों पर पूर्णतः या भागतः जीवन निर्वाह करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा [और जहां ऐसे उर्पाजन किसी बालक या अवयस्क की वेश्यावृत्ति से संबंधित हैं, वहां वह सात वर्ष से अन्यून और दस वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय होगा] ।
[(2) जहां अठारह वर्ष से अधिक आयु के किसी व्यक्ति की बाबत यह साबित हो जाता है कि वह,-
(क) किसी वेश्या के साथ निवास करता है या अभ्यासतः उसके संग रहता है ; या
(ख) किसी वेश्या की गतिविधियों का ऐसी रीति से नियंत्रण या निदेशन करता है या उन पर असर डालता है जिससे यह दर्शित होता है कि ऐसा व्यक्ति उसे वेश्यावृत्ति करने के लिए सहायता दे रहा है या दुष्प्रेरित या विवश कर रहा है ; या
(ग) किसी वेश्या के निमित्त दलाल या कुटना के रूप में कार्य कर रहा है,
तो, जब तक तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसा व्यक्ति उपधारा (1) के अर्थ में अन्य व्यक्ति के वेश्यावृत्ति के उपार्जनों पर जानबूझकर जीवन निर्वाह कर रहा है ।]
5. [व्यक्ति] को वेश्यावृत्ति के लिए उपाप्त करना, उत्प्रेरित करना या ले जाना-(1) कोई व्यक्ति जो-
(क) किसी 4[व्यक्ति] को चाहे उसकी सम्मति से या उसके बिना वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए उपाप्त करेगा या उपाप्त करने का प्रयत्न करेगा ;
(ख) किसी 4[व्यक्ति] को किसी स्थान से जाने के लिए इस आशय से उत्प्रेरित करेगा कि वह वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए किसी वेश्यागृह का अन्तःवासी हो जाए या उसमें प्रायः जाता रहे ; या
(ग) किसी 4[व्यक्ति] को इस दृष्टि से कि वह वेश्यावृत्ति करे या वेश्यावृत्ति करने के लिए उसका पालन-पोषण किया जाए एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाएगा या ले जाने का प्रयत्न करेगा या लिवाएगा ; या
(घ) किसी 4[व्यक्ति] से वेश्यावृत्ति कराएगा या कराने के लिए उत्प्ररित करेगा,
[दोषसिद्धि पर, तीन वर्ष से अन्यून और सात वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कठोर कारावास से और जुर्माने से भी जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा और यदि इस उपधारा के अधीन अपराध किसी व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध किया जाता है तो सात वर्ष की अवधि के लिए कारावास का दण्ड चौदह वर्ष की अवधि के लिए कारावास तक का होगा :
परन्तु यदि वह व्यक्ति जिसकी बाबत इस उपधारा के अधीन अपराध किया गया है,-
(i) बालक है तो इस उपधारा में उपबंधित दण्ड सात वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए कठोर करने कारावास तक का होगा किन्तु जो आजीवन का हो सकेगा ; और
(ii) अवयस्क है तो इस उपधारा में उपबंधित दण्ड सात वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए और चौदह वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कठोर कारावास तक का होगा ;]
(3) इस धारा के अधीन अपराध-
(क) उस स्थान पर विचारणीय होगा जहां से [व्यक्ति] को उपाप्त किया जाता है, जाने के लिए उत्प्रेरित किया जाता है, ले जाया जाता है या लिवा लाया जाता है अथवा जहां से ऐसे 2[व्यक्ति] को उपाप्त करने या ले जाने का प्रयत्न किया जाता है ; या
(ख) उस स्थान पर विचारणीय होगा जहां वह उस उत्प्रेरणा के फलस्वरूप लाया गया हो या जहां वह ले जाया गया हो या लिवा लाया गया हो या उसे ले जाने का प्रयत्न किया गया हो ।
6. किसी व्यक्ति को ऐसे परिसर में निरुद्ध करना जहां वेश्यावृत्ति की जाती है-(1) कोई व्यक्ति जो [किसी अन्य व्यक्ति] को चाहे उसकी सम्मति से या उसके बिना-
(क) किसी वेश्यागृह में निरुद्ध करेगा, या
(ख) किसी परिसर में या पर इस आशय से निरुद्ध करेगा 3[कि ऐसा व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के साथ, जो ऐसे व्यक्ति का पति या पत्नी नहीं है, मैथुन करे, ]
3[दोषसिद्धि पर, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से अन्यून की होगी किन्तु जो आजीवन के लिए या ऐसी अवधि के लिए जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा और जुर्माने का भी दायी होगा :
परन्तु न्यायालय, पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में उल्लिखित किए जाएंगे, सात वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास का दंडादेश अधिरोपित कर सकेगा ।]
[(2) जहां कोई व्यक्ति किसी वेश्यागृह में किसी बालक के साथ पाया जाता है वहां, जब तक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि उसने उपधारा (1) के अधीन कोई अपराध किया है ।
(2क) जहां किसी वेश्यागृह के अन्दर पाए गए किसी बालक या अवयस्क की चिकित्सा परीक्षा पर उसके साथ लैंगिक दुरुपयोग किए जाने का पता चलता है, वहां जब तक तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए यह उपधारणा की जाएगी कि उस बालक या अवयस्क को, यथास्थिति, वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए निरुद्ध किया गया है या उसका वाणिज्यक प्रयोजनों के लिए लैंगिक शोषण किया गया है ।]
(3) किसी व्यक्ति के बारे में यह उपधारणा की जाएगी कि वह किसी स्त्री या लड़की को किसी वेश्यागृह में या अपने विधिसम्मत पति से भिन्न किसी आदमी के साथ मैथुन के प्रयोजनों के लिए किसी परिसर में या उस पर निरुद्ध करता है, यदि ऐसा व्यक्ति, उसे वहां रखने के लिए विवश या उत्प्रेरित करने के आशय से-
(क) उसके किसी आभूषण, पहनने के कपड़े, धन या अन्य सम्पत्ति को उससे विधारित करता है, या
(ख) ऐसे व्यक्ति के द्वारा या निदेश से उसे उधार दिए गए या प्रदाय किए गए किसी आभूषण, पहनने के कपड़े, धन या अन्य सम्पत्ति को उसके द्वारा ले जाए जाने की दशा में उसे विधिक कार्यवाहियों की धमकी देता है ।
(4) ऐसी स्त्री या लड़की के खिलाफ उस व्यक्ति के कहने पर जिसके द्वारा वह निरुद्ध की गई है किसी ऐसे आभूषण, पहनने के कपड़े या अन्य सम्पत्ति की वसूली के लिए जो ऐसी स्त्री या लड़की को उधार दी गई या प्रदाय की गई अथवा ऐसी स्त्री या लड़की द्वारा गिरवी रखी गई अभिकथित है अथवा किसी धन की वसूली के लिए जिसका ऐसी स्त्री या लड़की द्वारा संदेय होना अभिकथित है, कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही, किसी प्रतिकूल विधि के होते हुए भी, नहीं होगी ।
7. सार्वजनिक स्थान में या उनके समीप वेश्यावृत्ति- [(1) वेश्यावृत्ति करने वाला कोई 2[व्यक्ति] और वह व्यक्ति जिसके साथ ऐसी वेश्यावृत्ति ऐसे किन्हीं परिसरों में की जाएगी-
(क) जो उपधारा (3) के अधीन अधिसूचित क्षेत्र या क्षेत्रों के अन्दर हों, या
(ख) जो किसी सार्वजनिक धार्मिक पूजास्थल, शैक्षणिक संस्था, छात्रावास, अस्पताल, परिचर्यागृह या किसी अन्य प्रकार के ऐसे सार्वजनिक स्थान से दो सौ मीटर की दूरी के अन्दर हों, जिसे पुलिस आयुक्त या मजिस्ट्रेट विहित रीति में इस निमित्त अधिसूचित करे,
कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा ।]
[(1क) जहां उपधारा (1) के अधीन किया गया कोई अपराध किसी बालक या अवयस्क की बाबत है, वहां अपराध करने वाला व्यक्ति दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष से अन्यून की होगी किन्तु जो आजीवन के लिए या ऐसी अवधि के लिए जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा और जुर्माने का भी दायी होगा :
परन्तु न्यायालय, पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में उल्लिखित किए जाएंगे, सात वर्ष से कम की अवधि के लिए कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा ।]
(2) कोई व्यक्ति जो-
(क) किसी सार्वजनिक स्थान का पालक होते हुए वेश्याओं को अपने व्यापार के प्रयोजनों के लिए जानबूझकर ऐसे स्थान का आश्रय लेने या वहां रहने देगा ; या
(ख) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किन्हीं परिसरों का अभिधारी, पट्टेदार, अधिभोगी या भारसाधक व्यक्ति होते हुए जानबूझकर उनका या उनके किसी भाग का वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने देगा ; या
(ग) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किन्हीं परिसरों का स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी अथवा ऐसे स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी का अभिकर्ता होते हुए उनको या उनके किसी भाग को यह जानते हुए पट्टे पर देगा कि उनका या उनके किसी भाग का वेश्यावृत्ति के लिए प्रयोग किया जाए अथवा जानबूझकर ऐसे प्रयोग का पक्षकार होगा,
प्रथम दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से, और द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी तथा जुर्माने से भी, [जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा और यदि सार्वजनिक स्थान या परिसर में कोई होटल है तो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन ऐसे होटल का कारबार चलाने के लिए अनुज्ञप्ति तीन मास से अन्यून की अवधि के लिए किन्तु जो एक वर्ष तक ही हो सकेगी निलंबित किए जाने के दायित्व के अधीन होगी :
परन्तु यदि इस उपधारा के अधीन किया गया कोई अपराध किसी होटल में किसी बालक या अवयस्क की बाबत है, तो ऐसी अनुज्ञप्ति रद्द किए जाने के दायित्व के अधीन होगी ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, होटल" का वही अर्थ होगा जो होटल आमदनी कर अधिनियम, 1980 (1980 का 54) की धारा 2 के खंड (6) में है ।]
[(3) राज्य सरकार इस बात को ध्यान में रखते हुए कि राज्य के किसी क्षेत्र या क्षेत्रों में किस प्रकार के व्यक्ति बार-बार आते-जाते हैं, और वहां के लोगों की प्रकृति कैसी है और वहां की जानसंख्या कितनी है तथा अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निदेश दे सकेगी कि वेश्यावृत्ति ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों में नहीं की जाएगी जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
(4) जहां किसी क्षेत्र या क्षेत्रों के सम्बन्ध में उपधारा (3) के अधीन कोई अधिसूचना जारी की जाती है वहां राज्य सरकार अधिसूचना में ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों की परिसीमाएं युक्तियुक्त निश्चितता से परिनिश्चित करेगी ।
(5) ऐसी कोई भी अधिसूचना जारी नहीं की जाएगी जो जारी किए जाने के पश्चात् नब्बे दिन की अवधि की समाप्ति से पूर्व किसी तारीख से प्रभावी हो ।]
8. वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए विलुब्ध करना या याचना करना-जो कोई किसी सार्वजनिक स्थान पर या किसी सार्वजनिक स्थान पर दिखाई देते हुए और ऐसी रीति में जिससे दिखाई दे या सुनाई दे, चाहे किसी भवन या घर के अन्दर से या अन्यथा-
(क) शब्दों, अंग-विक्षेप, अपने शरीर के जानबूझकर अभिदर्शन द्वारा (चाहे किसी भवन या घर कि खिड़की पर या बालकनी पर बैठकर या किसी अन्य रीति से) या अन्यथा किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए प्रलोभित करेगा या प्रलोभित करने का प्रयास करेगा अथवा उसका ध्यान आकर्षित करेगा या आकर्षित करने का प्रयास करेगा ; या
(ख) वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए किसी व्यक्ति से याचना करेगा या छेड़छाड़ करेगा अथवा घूमता-फिरता रहेगा या ऐसी रीति से कार्य करेगा जिससे आस-पास रहने वाले या ऐसे सार्वजनिक स्थान से होकर जाने वाले व्यक्तियों को बाधा या क्षोभ हो, अथवा सार्वजनिक शिष्टता का अतिवर्तन करेगा,
वह प्रथम दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा, और द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, तथा जुर्माने से भी, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा :
[परन्तु जहां इस उपधारा के अधीन कोई अपराध किसी पुरुष किया जाता है वहां वह कारावास से, जो सात दिन से अन्यून की अवधि के लिए किन्तु जो तीन मास तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा ।]
9. अभिरक्षा में के व्यक्ति को विलुब्ध करना- *** कोई व्यक्ति जो [किसी [व्यक्ति] को अपनी अभिरक्षा, अपने भाराधीन या देख-रेख में रखते हुए या उस पर प्राधिकार की स्थिति में रहते हुए] उस 4[व्यक्ति] को वेश्यावृत्ति के लिए विलुब्ध किए जाने देगा या उसमें सहायता या उसका दुष्प्रेरणा करेगा, प्रथम [दोषसिद्धि पर, दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से अन्यून की होगी किन्तु जो आजीवन के लिए या ऐसी अवधि के लिए जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने का भी दायी होगा :
परन्तु न्यायालय, पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में उल्लिखित किए जाएंगे, सात वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा ।]
। । । ।
[10. [सदाचरण की परिवीक्षा पर या सस्यक् भर्त्सना देकर निर्मुक्त किया जाना ।]- स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन (संशोधन) अधिनियम, 1986 (1986 का 44) की धारा 13 द्वारा (26-1-1987 से) निरसित ।
10क. सुधार संस्था में निरोध-(1) जहां-
(क) कोई अपराधी नारी धारा 7 या धारा 8 के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराई जाती है ***; और
(ख) अपराधी का चरित्र, स्वास्थ्य, उसकी मानसिक दशा और मामले की अन्य परिस्थितियां ऐसी हैं कि उसे ऐसी अवधि के निरोध और ऐसे अनुदेश या अनुशासन के अधीन रखना समीचीन है जो उसके सुधार के लिए सहायक हो,
जहां न्यायालय के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह कारावास के दण्डादेश के बदले में दो वर्ष से अन्यून और पांच वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए किसी सुधार संस्था में निरोध का ऐसा आदेश पारित करे जो वह ठीक समझे :
परन्तु ऐसा आदेश पारित करने से पूर्व-
(i) न्यायालय अपराधी को सुनवाई का अवसर देगा और ऐसे किसी अभ्यावेदन पर विचार करेगा जो अपराधी, ऐसी संस्था में उपचार के लिए मामले की उपयुक्तता के बारे में न्यायालय को करे तथा अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के अधीन नियुक्त परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट पर भी विचार करेगा ; और
(ii) न्यायालय यह अभिलिखित करेगा कि उसका यह समाधान हो गया है कि अपराधी का चरित्र, स्वास्थ्य और उसकी मानसिक दशा और मामले की अन्य परिस्थितियां ऐसी हैं कि जिनसे अपराधी को यथापूर्वोक्त अनुदेश और अनुशासन से फायदा होने की संभाव्यता है ।
(2) उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए अपील, निर्देश और पुनरीक्षण से संबंधित दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2 ) के उपबंध और उस अवधि के बारे में, जिसके भीतर अपील फाइल की जाएगी, परिसीमा अधिनियम, 1963 (1963 का 36) के उपबंध, उपधारा (1) के अधीन निरोध आदेश के संबंध में ऐसे लागू होंगे मानो आदेश उतनी अवधि के कारावास का दण्डादेश हो जितनी अवधि के लिए निरोध का आदेश दिया गया था ।
(3) ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए जो इस निमित्त बनाए जाएं यदि राज्य सरकार या इस निमित्त प्राधिकृत प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि इस बात की युक्तियुक्त अधिसंभाव्यता है कि अपराधी नारी एक उपयोगी और परिश्रमी जीवन व्यतीत करेगी, तो वह सुधार संस्था में निरोध के लिए किसी आदेश की तारीख से, छह मास की समाप्ति के पश्चात् किसी भी समय उसे ऐसी शर्तों के बिना या ऐसी शर्तों सहित, जो ठीक समझी जाएं, उन्मोचित तक सकेगा और उसे ऐसे प्ररूप में, जो विहित किया जाए, एक लिखित अनुज्ञप्ति दे सकेगा ।
(4) अपराधी को जिन शर्तों पर उन्मोचित किया जाता है उन शर्तों के अन्तर्गत अपराधी के निवास-स्थान और अपराधी के कार्यकलापों और गतिविधियों पर पर्यवेक्षण से संबंधित अपेक्षाएं भी हो सकेंगी ।]
11. तत्पूर्व सिद्धदोष अपराधियों के पते की अधिसूचना-(1) जब कोई व्यक्ति जो-
(क) इस अधिनियम के अधीन दंडनीय या भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 363, धारा 365, धारा 366, धारा 366क, धारा 366ख, धारा 367, धारा 368, धारा 370, धारा 371, धारा 372, या धारा 373 के अधीन दो वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय किसी अपराध का भारत में किसी न्यायालय द्वारा सिद्धदोष किया जाता है, या
(ख) किसी अन्य देश के न्यायालय या अधिकरण द्वारा ऐसे अपराध से सिद्धदोष किया जाता है जो यदि भारत में किया जाता तो इस अधिनियम के अधीन या उपरोक्त धाराओं में से किसी के अधीन उसी अवधि के लिए कारावास से दंडनीय होता,
कारागार से निर्मुक्ति के पश्चात् पांच वर्ष की कालावधि के अन्दर इस अधिनियम के अधीन या उन धाराओं में से किसी के अधीन दो वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए किसी न्यायालय द्वारा पुनः सिद्धदोष किया जाता है तब ऐसा न्यायालय यदि ठीक समझता है तो, ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कारावास का दंड पारित करने के समय यह आदेश भी दे सकेगा कि निर्मुक्ति के बाद उसका निवास स्थान और ऐसे निवास स्थान की कोई तब्दीली या उससे अनुपस्थित धारा 23 के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार, उस दंडादेश की समाप्ति की तारीख से पांच वर्ष से अनधिक की कालावधि तक अधिसूचित की जाए ।
(2) यदि ऐसी दोषसिद्धि अपील पर या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो ऐसा आदेश शून्य हो जाएगा ।
(3) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा भी, जब वह पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, दिया जा सकेगा ।
(4) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी नियम के भंग से आरोपित किसी व्यक्ति का विचारण उस जिले में जिसमें उसके निवास-स्थान के रूप में अंतिम बार अधिसूचित स्थान स्थित है, सक्षम अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकेगा ।
12. [आभ्यासिक अपराधियों से सदाचरण की प्रतिभूति ।]-स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन (संशोधन) अधिनियम, 1986 (1986 का 44) की धारा 13 द्वारा (26-1-1987 से) निरसित ।
13. विशेष पुलिस अधिकारी और सलाहकार निकाय-(1) राज्य सरकार द्वारा उस निमित्त विनिर्दिष्ट किए जाने वाले प्रत्येक क्षेत्र के लिए एक विशेष पुलिस अधिकारी उस क्षेत्र में इस अधिनियम के अधीन अपराध के संबंध में कार्यवाही करने के लिए उस सरकार द्वारा या उसकी ओर से नियुक्त किया जाएगा ।
[(2) विशेष पुलिस अधिकारी पुलिस निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं होगा ।
(2क) यदि जिला मजिस्ट्रेट ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझता है, तो वह विशेष मामलों या किसी प्रकार के मामलों या साधारणतः मामलों की बाबत इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन किसी विशेष पुलिस अधिकारी को प्रदत्त या प्रदत्त की जाने योग्य सभी या उनमें से कोई शक्ति किसी सेवानिवृत्त पुलिस या सेना अधिकारी को प्रदान कर सकेगा :
परन्तु ऐसी कोई शक्ति निम्नलिखित को प्रदान नहीं की जाएगी-
(क) किसी सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी को, जब तब कि ऐसा अधिकारी अपनी सेवानिवृत्ति के समय ऐसा पद धारण कर रहा था जो निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं है,
(ख) किसी सेवानिवृत्त सेना अधिकारी को, जब तक कि ऐसा अधिकारी अपनी सेवानिवृत्ति के समय ऐसा पद धारण कर रहा था जो कमीशंड अधिकारी की पंक्ति से नीचे का नहीं है ।]
(3) इस अधिनियम के अधीन अपराधों के संबंध में अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए-
(क) किसी क्षेत्र के विशेष पुलिस अधिकारी की सहायता इतने अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों द्वारा (जिनके अंतर्गत जहां कहीं साध्य हो स्त्री पुलिस अधिकारी भी होंगी) सहायता की जाएगी जितने राज्य सरकार ठीक समझे ; और
(ख) राज्य सरकार इस अधिनियम के कार्यकरण के बारे में साधारण महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विशेष, पुलिस अधिकारी को सलाह देने के लिए एक अशासकीय सलाहकार निकाय उसके साथ सहयुक्त कर सकेगी जिसमें उस क्षेत्र के पांच से अनधिक सामाजिक कल्याण कार्यकर्ता होंगे (जिनके अन्तर्गत जहां कहीं साध्य हो स्त्री सामाजिक कल्याण कार्यकर्ता भी होंगी) ।
[(4) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के अधीन या व्यक्तियों के लैंगिक शोषण के संबंध में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन और एक से अधिक राज्य में किए गए किसी अपराध का अन्वेषण करने के प्रयोजन के लिए, उतनी संख्या में पुलिस अधिकारियों को दुर्व्यापार पुलिस अधिकारियों के रूप में नियुक्त कर सकेगी और वे उन सभी शक्तियों का प्रयोग और सभी कृत्यों का निर्वहन करेंगे जो इस अधिनियम के अधीन विशेष पुलिस अधिकारियों द्वारा प्रयोक्तव्य हैं किंतु उसमें यह उपांतर होगा कि वे ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का निर्वहन संपूर्ण भारत के संबंध में करें ।]
14. अपराधों का संज्ञेय होना- [दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1973 का 2)] में किसी बात के होते हुए भी यह है कि इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध उस संहिता के अर्थ में संज्ञेय अपराध समझा जाएगा :
परन्तु यह कि उस संहिता में किसी बात के होते हुए भी-
(i) वारण्ट के बिना गिरफ्तारी केवल विशेष पुलिस अधिकारी द्वारा या उसके निदेश या मार्गदर्शन अथवा उसके पूर्व अनुमोदन के अध्यधीन ही की जा सकेगी ;
(ii) जब विशेष पुलिस अधिकारी अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी से यह अपेक्षा करता है कि वह इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को उसकी अनुपस्थिति में वारण्ट के बिना गिरफ्तार करे तो वह उस अधीनस्थ अधिकारी को एक लिखित आदेश देगा जिसमें वह व्यक्ति जिसको गिरफ्तार किया जाना है और वह अपराध जिसके लिए गिरफ्तारी की जा रही है विनिर्दिष्ट होगा और पश्चात् कथित अधिकारी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पूर्व उसे आदेश के सार से अवगत कराएगा और ऐसे व्यक्ति द्वारा अपेक्षा किए जाने पर, उसे आदेश दिखाएगा ;
(iii) विशेष पुलिस अधिकारी द्वारा विशेषतः प्राधिकृत कोई पुलिस अधिकारी जो 2[उप-निरीक्षक] की पंक्ति से नीचे का न हो उस दशा में जिसमें उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि विशेष पुलिस अधिकारी का आदेश अभिप्राप्त करने में लगने वाले विलम्ब के कारण इस बात की संभाव्यता है कि इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से संबंधित कोई मूल्यवान साक्ष्य नष्ट कर दिया जाएगा या छिपा दिया जाएगा या इस बात की संभाव्यता है कि वह व्यक्ति जिसने अपराध किया है या जिसके द्वारा अपराध किए जाने का संदेह है भाग निकलेगा अथवा ऐसे व्यक्ति का नाम या पता ज्ञात नहीं है या यह संदेह करने का कारण है कि मिथ्या नाम या पता दिया गया है, संपृक्त व्यक्ति को ऐसे आदेश के बिना गिरफ्तार कर सकेगा, किन्तु ऐसे मामले में वह उस गिरफ्तारी और उन परिस्थितियों की जिनमें गिरफ्तारी की गई थी, रिपोर्ट यथाशक्य शीघ्र विशेष पुलिस अधिकारी को देगा ।
15. वारण्ट के बिना तलाशी-(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, जब कभी [यथास्तिति, विशेष पुलिस अधिकारी या दुर्व्यापार पुलिस अधिकारीट के पास यह विश्वास करने के लिए युक्तियुक्त आधार हों कि इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किसी परिसर में रहने वाले किसी [व्यक्ति] के संबंध में किया गया है या किया जा रहा है और कि उस परिसर की वारण्ट से तलाशी असम्यक् विलंब के बिना नहीं की जा सकती तो ऐसा अधिकारी अपने विश्वास के आधारों को अभिलिखित करने के पश्चात् ऐसे परिसर में वारण्ट के बिना प्रवेश कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन तलाशी करने से पूर्व 2[यथास्थिति, विशेष पुलिस अधिकारी या दुर्व्यापार पुलिस अधिकारी] उस परिक्षेत्र के जिसमें तलाशी किया जाने वाला स्थान स्थित है दो या अधिक प्रतिष्ठित निवासियों से (जिनमें से कम से कम एक स्त्री होगी) हाजिर होने और तलाशी को साक्षित करने के लिए कहेगा और उनको या उनमें से किसी को वैसा करने के लिए लिखित आदेश दे सकेगा :
[परन्तु प्रतिष्ठित स्थापित निवासियों की बाबत यह अपेक्षा कि वे उस परिक्षेत्र के हों जिसमें वह स्थान स्थित है जहां तलाशी ली जानी है, ऐसी किसी स्त्री की बाबत लागू नहीं होगा जिससे हाजिर होने और तलाशी को साक्षित करने की अपेक्षा की गई है ।]
(3) कोई भी व्यक्ति, जो इस धारा के अधीन तलाशी में हाजिर होने और उसे साक्षित करने से उस दशा में जिसमें ऐसा करने के लिए उसे लिखित आदेश परिदत्त या निविदत्त करके किया गया है, युक्तियुक्त हेतुक के बिना इंकार करेगा या उपेक्षा करेगा, उसके बारे में समझा जाएगा कि उसने भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 187 के अधीन अपराध किया है ।
[(4) उपधारा (1) के अधीन किसी परिसर में प्रवेश करने वाले, यथास्थिति, विशेष पुलिस अधिकारी या दुर्व्यापार पुलिस अधिकारी को उसमें पाए गए सभी व्यक्तियों को वहां से हटाने का हक होगा ।]
(5) उपधारा (4) के अधीन [ [व्यक्ति]] को हटाने के पश्चात्, यथास्थिति, विशेष पुलिस अधिकारी या दुर्व्यापार पुलिस अधिकारी उसे तुरन्त समुचित मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगा ।
[(5क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जो उपधारा (5) के अधीन किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है, ऐसे व्यक्ति की आयु का अवधारण करने के प्रयोजनों के लिए या लैंगिक दुरुपयोग के परिणासम्वरूप किन्हीं क्षतियों का पता चलाने के लिए या लैंगिक रूप में संचारित किन्हीं रोगों की विद्यमानता के लिए किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा परीक्षा की जाएगी ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा में, रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी" का वही अर्थ है जो भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् अधिनियम, 1956 (1956 का 102) में है ।]
(6) 4[यथास्थिति, विशेष पुलिस अधिकारी या दुर्व्यापार पुलिस अधिकारी] और तलाशी में भाग लेने या हाजिर होने या साक्षित करने वाले अन्य व्यक्ति उस तलाशी के संबंध में या उसके प्रयोजनों के लिए विधिपूर्वक की गई किसी बात के लिए अपने खिलाफ कोई सिविल या दांडिक कार्यवाही किए जाने के भागी नहीं होंगे ।
4[(6क) इस धारा के अधीन तलाशी लेने वाले, यथास्थिति, विशेष पुलिस अधिकारी या दुर्व्यापार पुलिस अधिकारी के साथ कम से कम दो महिला पुलिस अधिकारी होंगे और जहां उपधारा (4) के अधीन हटाई गई किसी स्त्री या लड़की से पूछताछ करना अपेक्षित है, वहां ऐसी किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाएगा और यदि कोई महिला पुलिस अधिकारी उपलब्ध नहीं है तो पूछताछ किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन की किसी महिला सदस्य की उपस्थिति में ही की जाएगी ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा और धारा 17क के प्रयोजनों के लिए, “मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन" से ऐसी संस्था या ऐसा संगठन अभिप्रेत है जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त मान्यताप्राप्त है ।]
[(7) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध यावत्शक्य इस धारा के अधीन किसी तलाशी को ऐसे ही लागू होंगे जैसे वे उक्त संहिता की धारा 94 के अधीन जारी किए गए किसी वारण्ट के प्राधिकारी के अधीन की गई किसी तलाशी को लागू होते हैं ।]
[16. व्यक्ति को छुड़ाना-(1) जहां पुलिस से प्राप्त सूचना या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त सूचना के आधार पर अथवा अन्यथा किसी मजिस्ट्रेट के पास यह विश्वास करने का कारण है कि [कोई व्यक्ति किसी वेश्यागृह में रह रहा है या वेश्यावृत्ति कर रहा है अथवा उससे वेश्यावृत्ति करवाई जा रही है] तो वह ऐसे पुलिस अधिकारी को जो उप-निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, यह निदेश दे सकेगा कि वह ऐसे वेश्यागृह में प्रवेश करे और ऐसे [व्यक्ति] को वहां से हटाए और उसे उसके समक्ष पेश करे ।
(2) पुलिस अधिकारी 8[व्यक्ति] को हटाने के पश्चात् उसे तुरन्त उस मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगा जिसने आदेश किया था ।
17. धारा 15 के अधीन हटाए गए या धारा 16 के अधीन छुड़ाए गए व्यक्तियों की अन्तःकालीन अभिरक्षा-(1) जब धारा 15 की उपधारा (4) के अधीन किसी 8[व्यक्ति] को हटाने वाला कोई विशेष पुलिस अधिकारी या धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन किसी 8[व्यक्ति] को छुड़ाने वाला कोई पुलिस अधिकारी धारा 15 की उपधारा (5) की अपेक्षानुसार समुचित मजिस्ट्रेट के समक्ष या धारा 16 की उपधारा (2) के अधीन आदेश करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने में किसी कारणवश असमर्थ है तब वह उसे तुरन्त किसी भी वर्ग के निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेगा जो ऐसे आदेश पारित करेगा जो वह उसकी तब तक सुरक्षित अभिरक्षा के लिए उचित समझता है जब तक कि वह, यथास्थिति, समुचित मजिस्ट्रेट का आदेश करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया जाता :
परन्तु ऐसे किसी 8[व्यक्ति] को,-
(i) इस उपधारा के अधीन आदेश की तारीख से दस दिन से अधिक की अवधि के लिए इस उपधारा के अधीन अभिरक्षा मे निरुद्ध नहीं किया जाएगा ; या
(ii) किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं लौटाया जाएगा या उसको अभिरक्षा में नहीं रखा जाएगा जो उस पर अपहानिकर असर डाल सकता है ।
(2) जब [व्यक्ति] धारा 15 की उपधारा (5) के अधीन समुचित मजिस्ट्रेट के समक्ष या धारा 16 की उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाता है तब वह उसको सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन प्राप्त सूचना के सही होने के बारे में, 1[व्यक्ति] की आयु, चरित्र और पूर्ववृत्त के बारे में तथा उसकी सुपुर्दगी के लिए उसके माता-पिता, संरक्षक अथवा पति की उपयुक्तता और यदि उसे घर भेजा जाता है तो उस असर की प्रकृति के बारे में, जो वहां की परिस्थितियों से उस पर पड़ सकता है, जांच कराएगा और इस प्रयोजन के लिए वहां अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के अधीन नियुक्त परिवीक्षा अधिकारी को यह निर्देश दे सकेगा कि वह उक्त परिस्थितियों की तथा 1[व्यक्ति] के व्यक्तित्व और उसी पुनर्वासन की संभाव्यताओं के बारे में जांच करे ।
(3) मजिस्ट्रेट उस समय जब उपधारा (2) के अधीन मामले की जांच की जाती है, ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जो वह 1[व्यक्ति] की सुरक्षित अभिरक्षा के लिए उचित समझे :
[परन्तु जहां धारा 16 के अधीन छुड़ाया गया कोई व्यक्ति बालक या अवयस्क है, वहां मजिस्ट्रेट ऐसे बालक या अवयस्क को बालकों की सुरक्षित अभिरक्षा के लिए किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी बालक अधिनियम के अधीन स्थापित या मान्यताप्राप्त किसी संस्था में रखने के लिए स्वतंत्र होगा :
परन्तु यह और किट, किसी 1[व्यक्ति] को ऐसे आदेश की तारीख से तीन सप्ताह से अधिक की अवधि के लिए इस प्रयोजनार्थ अभिरक्षा में नहीं रखा जाएगा और किसी 1[व्यक्ति] को ऐसे किसी व्यक्ति की अभिरक्षा में नहीं रखा जाएगा जिससे उस पर अपहानिकर असर पड़ने की संभावना है ।
(4) जहां मजिस्ट्रेट का उपधारा (2) में यथा अपेक्षित जांच करने के पश्चात् समाधान हो जाता है-
(क) कि प्राप्त सूचना सही है ; और
(ख) कि उसकी देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता है,
तो वह उपधारा (5) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए यह आदेश जारी कर सकेगा कि ऐसे 1[व्यक्तिट को एक वर्ष से अन्यून और तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, किसी संरक्षागृह या ऐसी अन्य अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाए जो वह लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों के उपयुक्त समझे :
परन्तु ऐसी अभिरक्षा ऐसे धार्मिक संम्प्रदाय के व्यक्ति या व्यक्तियों के निकाय की नहीं होगी जो 1[व्यक्तिट के धार्मिक मत से भिन्न धार्मिक मत के हैं और उन व्यक्तियों से जिनकी अभिरक्षा में 1[व्यक्ति] सुपुर्द किया जाएगा जिनके अंतर्गत संरक्षागृह के भारसाधक व्यक्ति भी हैं, ऐसा बंधपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा की जा सकेगी जिसमें जहां आवश्यक और साध्य हो वहां 1[व्यक्ति] की समुचित देखरेख, संरक्षकता, शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सीय और मनश्चिकित्सीय उपचार तथा न्यायालय द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति द्वारा पर्यवेक्षण से सम्बन्धित निदेशों पर आधारित वचनबंध होंगे, जो तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए प्रवृत्त होंगे ।
(5) उपधारा (2) के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने में मजिस्ट्रेट अपनी सहायता के लिए पांच प्रतिष्ठित व्यक्तियों का एक पैनल समन करेगा जिसमें जहां कहीं साध्य हो तीन स्त्रियां होंगी, और इस प्रयोजन के लिए 1[व्यक्तियों] के अनैतिक व्यापार के दमन के क्षेत्र में अनुभवी सामाजिक कल्याण कार्यकर्ताओं की, विशिष्टतः महिला सामाजिक कल्याण कार्यकर्ताओं की एक सूची रख सकेगा ।
(6) उपधारा (4) के अधीन किए गए आदेश के विरुद्ध अपील सेशन न्यायालय में होगी जिसका ऐसी अपील पर विनिश्चय अंतिम होगा ।]
[17क. धारा 16 के अधीन छुड़ाए गए व्यक्तियों को माता-पिता या संरक्षकों के अधीन रखने के पूर्व पालन की जाने वाली शर्तें-धारा 17 की उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, धारा 17 के अधीन जांच करने वाला मजिस्ट्रेट धारा 16 के अधीन छुड़ाए गए किसी व्यक्ति को माता-पिता, संरक्षक या पति के हवाले किए जाने के लिए आदेश पारित करने के पूर्व माता-पिता, संरक्षक या पति की ऐसे व्यक्ति को रखने की सामर्थ्य या असलीपन के बारे में किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन द्वारा अन्वेषण करवा कर अपना समाधान कर सकेगा ।]
18. वेश्यागृह को बन्द करना और परिसरों से अपराधियों की बेदखली-(1) कोई मजिस्ट्रेट पुलिस से या अन्यथा यह इत्तिला मिलने पर कि धारा 7 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी सार्वजिनिक स्थान से [दो सौ मीटर] की दूरी के अन्दर किसी घर, कमरे, स्थान या उसके किसी प्रभाग को किसी व्यक्ति द्वारा वेश्यागृह के रूप में चलाया जा रहा है या प्रयुक्त किया जा रहा है अथवा वेश्याओं द्वारा अपने व्यापार चलाने के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है ऐसे घर, कमरे, स्थान या प्रभाग के स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी अथवा स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी के अभिकर्ता को या ऐसे घर, कमरे, स्थान या प्रभाग के पट्टेदार, अधिभोगी या किसी अन्य भारसाधक व्यक्ति को सूचना दे सकेगा कि वह सूचना की प्राप्ति के सात दिन के अन्दर कारण दर्शित करे कि उसे उसके अनुचित उपयोग के कारण कुर्क क्यों न कर दिया जाए ; और यदि सम्बन्धित व्यक्ति को सुनने के पश्चात् मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि उस, घर, कमरे, स्थान या प्रभाग का प्रयोग वेश्यागृह के रूप में या वेश्यावृत्ति चलाने के लिए किया जा रहा है तो वह मजिस्ट्रेट ऐसा आदेश पारित कर सकेगा-
(क) जिसमें यह निदेश होगा कि उस आदेश को पारित करने के सात दिन के अन्दर उस घर, कमरे, स्थान या प्रभाग से अधिभोगी को बेदखल कर दिया जाए ; और
(ख) जिसमें यह निदेश होगा कि उस आदेश के पारित करने के ठीक पश्चात् के एक वर्ष, की कालावधि के दौरान [या किसी ऐसे मामले में जहां धारा 15 के अधीन किसी तलाशी के दौरान कोई बालक या अवयस्क उस घर, कमरे, स्थान या प्रभाग में पाया गया है, वहां तीन वर्ष की कालावधि के दौरान] उसे पट्टे पर देने से पूर्व स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी अथवा स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी का अभिकर्ता मजिस्ट्रेट का पूर्व आनुमोदन अभिप्राप्त करेगा :
परन्तु यदि मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी तथा स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी का अभिकर्ता भी उस घर, कमरे, स्थान या प्रभाग के अनुचित उपयोग से अनभिज्ञ था तो वह उसे स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी अथवा स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी के अभिकर्ता को इस निदेश के साथ प्रत्यावर्तित करा सकेगा कि उस घर, कमरे, स्थान या प्रभाग को उस व्यक्ति को या उसके फायदे के लिए जो उसमें अनुचित उपयोग करने दे रहा था पट्टे पर नहीं दिया जाएगा या अन्यथा उसके कब्जे में नहीं दिया जाएगा ।
(2) धारा 3 या धारा 7 के अधीन किसी अपराध से किसी व्यक्ति को सिद्धदोष करने वाला न्यायालय उपधारा (1) के अधीन आदेश, उस उपधारा में यथा अपेक्षित कारण दर्शित करने के लिए ऐसे व्यक्ति को अतिरिक्त सूचना दिए बिना, पारित कर सकेगा ।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा पारित आदेश अपील के अध्यधीन नहीं होंगे और किसी सिविल या दाण्डिक न्यायालय के आदेश से रोके या अपास्त नहीं किए जाएंगे तथा उक्त आदेश [यथास्थिति, एक वर्ष या तीन वर्ष की समाप्तिट के पश्चात् विधिमान्य न रहेंगे :
परन्तु जहां धारा 3 या धारा 7 के अधीन कोई दोषसिद्धि इस आधार पर अपील पर अपास्त कर दी जाती है कि ऐसा घर, कमरा, स्थान या उसका कोई प्रभाग वेश्यागृह के रूप में चलाया या प्रयुक्त नहीं किया जा रहा है अथवा वेश्याओं द्वारा अपने व्यापार चलाने के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा रहा है वहां उपधारा (1) के अधीन विचारण न्यायालय द्वारा पारित कोई आदेश भी अपास्त कर दिया जाएगा ।
(4) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, जब कोई मजिस्ट्रेट उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश पारित करता है अथवा कोई न्यायालय उपधारा (2) के अधीन कोई आदेश पारित करता है तब कोई ऐसा पट्टा या करार जिसके अधीन वह घर, कमरे, स्थान या प्रभाग उस समय अधिभोग में है, शून्य और अप्रवर्तनशील हो जाएगा ।
(5) जब कोई स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी अथवा ऐसे स्वामी, पट्टाकर्ता या भूस्वामी का अभिकर्ता उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन दिए गए किसी निदेश का पालन करने में असफल होगा तब वह जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा, अथवा जब वह उस उपधारा के परन्तुक के अधीन आदेश का पालन करने में असफल होगा तब यह समझा जाएगा कि उसने, यथास्थिति, धारा 3 की उपधारा (2) के खण्ड (ख) या धारा 7 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) के अधीन अपराध किया है और वह तद्नुकूल दण्डित किया जाएगा ।
[19. संरक्षा गृह में रखे जाने या न्यायालय द्वारा देख-रेख और संरक्षण प्रदान करने के लिए आवेदन-(1) कोई [व्यक्ति] जो वेश्यावृत्ति कर रहा है या जिससे वेश्यावृत्ति करवाई जा रही है, उस मजिस्ट्रेट को जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर वह वेश्यावृत्ति कर रहा है या उससे वेश्यावृत्ति करवाई जा रही है, इस आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा कि-
(क) उसे संरक्षागृह में रख दिया जाए, या
(ख) न्यायालय द्वारा उसकी देख-रेख और उसका संरक्षण उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट रीति से किया जाए ।
(2) मजिस्ट्रेट उपधारा (3) के अधीन कोई जांच लम्बित रहने तक यह निदेश दे सकेगा कि 4[व्यक्तिट को ऐसी अभिरक्षा में रखा जाए जो वह मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित समझे ।
(3) यदि मजिस्ट्रेट का समाधान, आवेदक को सुनने और ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह आवश्यक समझता है, और जिसके अन्तर्गत अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के अधीन नियुक्त किसी परिवीक्षा अधिकारी द्वारा आवेदक के व्यक्तित्व, घर की परिस्थितियों और पुनर्वासन की संभावनाओं के बारे में जांच भी है, हो जाता है कि इस धारा के अधीन आदेश किया जाना चाहिए तो वह लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से यह आदेश करेगा कि आवेदक को,-
(i) किसी संरक्षागृह में, या
(ii) किसी सुधार संस्था में, या
(iii) मजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के पर्यवेक्षण के अधीन,
ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, रखा जाए ।]
20. वेश्या का किसी स्थान से हटाया जाना-(1) कोई मजिस्ट्रेट यह इत्तिला मिलने पर कि उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर किसी स्थान में रहने वाला या प्रायः जाने वाला कोई [व्यक्ति] वेश्या है, प्राप्त इत्तिला का सार अभिलिखित कर सकेगा और ऐसे 1[व्यक्ति] को उससे यह अपेक्षा करते हुए सूचना दे सकेगा कि वह मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर हो और कारण दर्शित करे कि उससे अपने आप को उस स्थान से हटाने की अपेक्षा और उसमें पुनः प्रवेश करने से प्रतिषिद्ध क्यों न किया जाए ।
(2) उपधारा (1) के अधीन दी गई प्रत्येक सूचना के साथ पूर्वोक्त अभिलेख की एक प्रति होगी और वह प्रति सूचना के साथ उस व्यक्ति पर तामील की जाएगी जिसके खिलाफ सूचना जारी की जाती है ।
(3) मजिस्ट्रेट, उपधारा (2) में निर्दिष्ट सूचना की तामिल के पश्चात्, प्राप्त सूचना की सच्चाई की जांच करने के लिए अग्रसर होगा, और 1[व्यक्ति] को साक्ष्य पेश करने का अवसर देने के पश्चात् ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य लेगा जैसा वह ठीक समझता है और यदि ऐसी जांच पर उसे यह प्रतीत होता कि ऐसा 1[व्यक्ति] वेश्या है और साधारण जनता के हित में यह आवश्यक है कि ऐसे 1[व्यक्ति] से अपने आप को वहां से हटा लेने की अपेक्षा की जाए और उसे वहां पुनः प्रवेश करने से प्रतिषिद्ध किया जाए तो मजिस्ट्रेट लिखित आदेश द्वारा, जो उसमें विनिर्दिष्ट रीति से उस 1[व्यक्ति] को संसूचित किया जाएगा, उससे अपेक्षा करेगा कि वह ऐसी तारीख के पश्चात् (जो आदेश में विनिर्दिष्ट होगी) जो आदेश की तारीख से सात दिन से कम की न होगी अपने आप को उस स्थान से ऐसे किसी स्थान को जो चाहे उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर हो या बात ऐसे मार्ग या मार्गों से और ऐसे समय के अन्दर जो आदेश में विनिर्दिष्ट हो हटा ले तथा उसे ऐसे स्थान पर अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट की लिखित अनुज्ञा के बिना उस स्थान में पुनःप्रवेश करने से प्रतिषिद्ध भी कर सकेगा ।
(4) जो कोई-
(क) इस धारा के अधीन दिए गए आदेश का उसमें विनिर्दिष्ट कालावधि के अन्दर पालन करने में असफल होगा या जब किसी स्थान में अनुज्ञा के बिना पुनःप्रवेश करने से उसे प्रतिषिद्धि करने वाला आदेश प्रवृत्त हो तब उस स्थान में ऐसी अनुज्ञा के बिना पुनःप्रवेश करेगा, या
(ख) यह जानते हुए कि किसी 1[व्यक्ति] से इस धारा के अधीन अपेक्षा की गई है कि वह अपने आपको उस स्थान से हटा ले और उसने उसमें पुनःप्रवेश करने की अपेक्षित अनुज्ञा अभिप्राप्त नहीं की है, ऐसे 1[व्यक्ति] को संश्रय उस स्थान में देगा अथवा उसे छुपाएगा,
वह जुर्माने से जो दो सौ रुपए तक का हो सकेगा और जारी रहने वाले अपराध की दशा में अतिरिक्त जुर्माने से जो उस प्रथम दिन के पश्चात् जिसके दौरान वह अपराध करता है प्रत्येक दिन के लिए पच्चीस रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।
21. संरक्षा गृह-(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन [इतने संरक्षा गृह और इतनी सुधार संस्थाएं जितनी वह ठीक समझती है स्वविवेकानुसार स्थापित कर सकेगी और ऐसे गृह और संस्थाएं जब स्थापित हो जाएं तब ऐसी रीति से अनुरक्षित रखी जाएंगी] जैसी विहित की जाएं ।
(2) राज्य सरकार से भिन्न कोई व्यक्ति या कोई प्राधिकारी इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किसी 2[संरक्षा गृह या सुधार संस्था] की स्थापना या अनुरक्षण राज्य सरकार द्वारा इस धारा के अधीन दी गई अनुज्ञप्ति की शर्तों के अधीन और अनुसार करने के सिवाय नहीं करेगा ।
(3) राज्य सरकार किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा इस निमित्त आवेदन द्वारा किए जाने पर ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी को विहित रूप में 2[संरक्षा गृह या सुधार संस्था] स्थापित करने और अनुरक्षित रखने के लिए अथवा, यथास्थिति, अनुरक्षित रखने के लिए अनुज्ञप्ति दे सकेगी और ऐसी दी गई अनुज्ञप्ति में ऐसी शर्तें अन्तर्विष्ट हो सकेंगी जैसी राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार अधिरोपित करना ठीक समझे :
परन्तु कोई ऐसी शर्त यह अपेक्षा कर सकेगी कि 2[संरक्षा गृह या सुधार संस्था] का प्रबंध जहां कहीं साध्य हो स्त्रियों को सौंपा जाएगा :
परन्तु यह और कि इस अधिनियम के प्रारम्भ पर संरक्षा गृह को अनुरक्षित रखने वाले किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को ऐसी अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करने के वास्ते ऐसे प्रारम्भ से छह मास की अवधि की कालावधि अनुज्ञात की जाएगी :
[परन्तु यह और कि स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन (संशोधन) अधिनियम, 1978 (1978 का 46) के प्रारंभ पर किसी सुधार संस्था को अनुरक्षित रखने वाले किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को, ऐसी अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन करने के वास्ते ऐसे प्रारंभ से छह मास की कालावधि अनुज्ञात की जाएगी ।]
(4) अनुज्ञप्ति देने से पूर्व राज्य सरकार ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी से जिसे वह उस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह इस निमित्त प्राप्त आवेदन के संबंध में पूरा-पूरा अन्वेषण करे और ऐसे अन्वेषण के परिणाम की उसको रिपोर्ट दे तथा ऐसा अन्वेषण करने में वह अधिकारी या प्राधिकारी ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जैसी विहित की जाए ।
(5) कोई अनुज्ञप्ति, जब तक कि वह पहले प्रतिसंहृत न कर दी जाए, ऐसी कालावधि तक प्रवृत्त रहेगी जैसी उस अनुज्ञप्ति में विनिर्दिष्ट हो और उसकी समाप्ति की तारीख से कम से कम तीस दिन पूर्व इस निमित्त किए गए आवेदन पर वैसी ही कालावधि के लिए नवीकृत की जा सकेगी ।
(6) इस अधिनियम के अधीन दी गई या नवीकृत कोई भी अनुज्ञप्ति अन्तरणीय नहीं होगी ।
(7) जहां कोई व्यक्ति या प्राधिकारी जिसे इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्ति दी गई है अथवा ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी का कोई अभिकर्ता या सेवक उसकी शर्तों में से किसी का या इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी का या इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों में से किसी का, भंग करेगा अथवा जहां किसी [संरक्षा गृह या सुधार संस्था] की दशा, प्रबंधन या अधीक्षण से राज्य सरकार संतुष्ट नहीं है, वहां राज्य सरकार किसी ऐसी अन्य शास्ति पर जो इस अधिनियम के अधीन उपगत हुई हो, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना अभिलिखित किए जाने वाले कारणों के लिए, उस अनुज्ञप्ति को लिखित आदेश द्वारा प्रतिसंहृत कर सकेगी :
परन्तु ऐसा कोई आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक अनुज्ञप्ति के धारक को ऐसे कारण दर्शित करने का अवसर नहीं दिया जाता कि अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण क्यों न किया जाए ।
(8) जहां किसी 2[संरक्षा गृह या सुधार संस्था] के संबंध में कोई अनुज्ञप्ति पूर्वगामी उपधारा के अधीन प्रतिसंहृत की गई है वहां 2[संरक्षा गृह या सुधार संस्था] ऐसे प्रतिसंहरण की तारीख से काम नहीं करेगा ।
(9) किन्हीं नियमों के जो इस निमित्त बनाए जाएं अधीन रहते हुए राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन दी गई या नवीकृत किसी अनुज्ञप्ति में फेरफार या संशोधन भी कर सकेगी ।
2[(9क) राज्य सरकार या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई प्राधिकारी ऐसे किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस निमित्त बनाए जाएं, किसी संरक्षागृह के किसी अन्तःवासी को किसी अन्य संरक्षागृह या किसी सुधारा संस्था में या किसी सुधार संस्था के किसी अन्तःवासी को किसी अन्य सुधार संस्था या संरक्षागृह में स्थानांतरित कर सकेगा, जहां ऐसा स्थानांतरण, स्थानांतरित किए जाने वाले व्यक्ति के आचरण को, प्रत्येक संस्था में दिए जाने वाले प्रशिक्षण के प्रकार को और मामले की अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए वांछनीय समझा जाए :
परन्तु-
(क) ऐसे किसी [व्यक्ति] से जिसे इस उपधारा के अधीन स्थानांतरित किया जाता है, उस गृह या संस्था में जिसमें उसे स्थानांतरित किया गया है, उस अवधि से अधिक के लिए ठहरने की अपेक्षा नहीं की जाएगी जिस तक उससे उस गृह या संस्था में ठहरने की अपेक्षा थी जिससे उसे स्थानांतरित किया गया था ;
(ख) इस धारा के अधीन प्रत्येक स्थानांतरण आदेश के कारणों को लेखबद्ध किया जाएगा ।]
(10) जो कोई किसी 2[संरक्षा गृह या सुधार संस्था] को इस धारा के उपबंधों के अनुसार स्थापित या अनुरक्षित रखने से अन्यथा स्थापित या अनुरक्षित रखेगा वह प्रथम अपराध की दशा में जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती अपराध की दशा में कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष की हो सकेगी अथवा जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दंडनीय होगा ।
[21क. अभिलेखों का पेश किया जाना-प्रत्येक व्यक्ति या प्राधिकारी जो धारा 21 की उपधारा (3) के अधीन कोई सुरक्षा गृह या सुधार संस्था, यथास्थिति, स्थापित करने या अनुरक्षित रखने के लिए अनुज्ञप्त है, जब कभी न्यायालय द्वारा अपेक्षा की जाए, ऐसे गृह या संस्था द्वारा रखे गए अभिलेखों और अन्य दस्तावेजों को ऐसे न्यायालय के समक्ष पेश करेगा ।]
22. विचारण- [किसी महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट से] अवर कोई न्यायालय धारा 3, धारा 4, धारा 5, धारा 6, धारा 7 या धारा 8 के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।
[22क. विशेष न्यायालयों की स्थापना करने की शक्ति-(1) यदि राज्य सरकार का समाधान हो जाता है कि किसी जिला या महानगर क्षेत्र में इस अधिनियम के अधीन अपराधों के शीघ्र विचारण का उपबन्ध करने के प्रयोजन के लिए यह आवश्यक है तो वह, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात् ऐसे जिला या महानगर क्षेत्र में, यथास्थिति, प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेटों या महानगर मजिस्ट्रेटों के एक या अधिक न्यायालयों की स्थापना कर सकेगी ।
(2) जब तक कि उच्च न्यायालयों द्वारा अन्यथा निदेश न दिया जाए, उपधारा (1) के अधीन स्थापित किया गया न्यायालय केवल इस अधिनियम के अधीन मामलों की बाबत ही अधिकारिता का प्रयोग करेगा ।
(3) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए किसी जिला या महानगर क्षेत्र में उपधारा (1) के अधीन स्थापित किए गए किसी न्यायालय के पीठासीन अधिकारी की अधिकारिता और शक्तियों का विस्तार, यथास्थिति, समस्त जिला या महानगर क्षेत्र में होगा ।
(4) इस धारा के पूर्वगामी उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए किसी जिले या महानगर क्षेत्र में उपधारा (1) के अधीन स्थापित किए गए किसी न्यायालय को, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की, यथास्थिति, धारा 11 की उपधारा (1) के अधीन या धारा 16 की उपधारा (1) के अधीन, स्थापित किया गया न्यायालय समझा जाएगा और उस संहिता के उपबंध ऐसे न्यायालयों के संबंध में तद्नुसार लागू होंगे ।
स्पष्टीकरण-इस धारा में उच्च न्यायालय" का वही अर्थ है जो उसका दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1973 का 2) की धारा 2 के खंड (ड़) में है ।
[22कक. केन्द्रीय सरकार की विशेष न्यायालय स्थापित करने की शक्ति-(1) यदि केन्द्रीय सरकार का समाधान हो जाता है कि इस अधिनियम के अधीन और एक से अधिक राज्यों में किए गए अपराधों के शीघ्र विचारण के लिए उपबंध करने के प्रयोजन के लिए यह आवश्यक है तो वह ऐसे अपराधों के विचारण के लिए और संबंधित उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात् राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेटों या महानगर मजिस्ट्रेटों का एक या अधिक न्यायालय, स्थापित कर सकेगी ।
(2) धारा 22क के उपबंध, जहां तक हो सके, उपधारा (1) के अधीन स्थापित न्यायालयों को उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे उस धारा के अधीन स्थापित न्यायालयों को लागू होते हैं ।]
22ख. मामलों का संक्षिप्त विचारण करने की न्यायालयों की शक्ति-दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार, यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझे तो यह निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण किसी मजिस्ट्रेट द्वारा [जिसके अन्तर्गत धारा 22क की उपधारा (1) के अधीन स्थापित किए गए किसी न्यायालय का पीठासीन अधिकारी भी] सक्षेपतः किया जाएगा और उक्त संहिता की धारा 262 से धारा 265 के (जिसके अन्तर्गत ये दोनों धारांए भी हैं) उपबंध यावत्शक्य ऐसे विचारण को लागू होंगे :
परन्तु इस धारा के अधीन किसी संक्षिप्त विचारण में किसी दोषसिद्धि की दशा में मजिस्ट्रेट के लिए एक वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास का दंडादेश पारित करना विधिपूर्ण होगा :
परन्तु यह और कि जब इस धारा के अधीन संक्षिप्त विचारण के प्रारंभ के समय या उसके अनुक्रम में मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि मामला इस प्रकार का है कि एक वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास का दंडादेश पारित करना होगा या किसी अन्य कारणवश मामले का विचारण संक्षेप्तः किया जाना अवांछनीय है तो मजिस्ट्रेट पक्षकारों की सुनवाई के पश्चात् उस आशय का एक आदेश लेखबद्ध करेगा और तत्पश्चात् ऐसे किसी साक्षी को, जिसकी परीक्षा की जा चुकी है, पुनः बुलाएगा और मामले को उक्त संहिता द्वारा उपबंधित रीति से पुनः सुनने के लिए अग्रसर होगा ।]
23. नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित के लिए उपबंध कर सकेंगे-
(क) किसी स्थान की सार्वजनिक स्थान के रूप में अधिसूचना ;
[(ख) ऐसे व्यक्तियों को जिनकी सुरक्षित अभिरक्षा के लिए धारा 17 की उपधारा (1) के अधीन आदेश पारित किए गए हैं, अभिरक्षा में रखना और उनका भरण-पोषण ;]
[(खख) किसी सुधार संस्था से धारा 10क की उपधारा (3) के अधीन किसी अपराधी को उन्मोचित किया जाना और ऐसे अपराधी को दी जाने वाली अनुज्ञप्ति का प्ररूप ;]
[(ग) इस अधिनियम के अधीन [व्यक्तियों] का, यथास्थिति, संरक्षा गृहों या सुधार संस्थाओं में निरोध या रखा जाना और उनका भरण-पोषण ;]
(घ) निर्मोचित सिद्धदोषों द्वारा निवास स्थान की अधिसूचना अथवा निवास स्थान की तब्दीली या उससे अनुपस्थिति के बारे में धारा 11 के उपबंधों का कार्यान्वित किया जाना ;
(ङ) धारा 13 की उपधारा (1) के अधीन विशेष पुलिस अधिकारी को नियुक्त करने के प्राधिकार का प्रत्यायोजन ;
(च) धारा 18 के उपबंधों को प्रभावशील करना ;
[(छ) (i) धारा 21 के अधीन संरक्षा गृहों और सुधार संस्थाओं की स्थापना, अनुरक्षण, प्रबंध और अधीक्षण तथा ऐसे गृहों या संस्थाओं में नियोजित व्यक्तियों की नियुक्ति, शक्तियां और कर्तव्य ;
(ii) वह प्ररूप जिसमें अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन किए जा सकेंगे और वे विशिष्टियां जो ऐसे आवेदन में अन्तर्विष्ट होंगी ;
(iii) किसी अनुज्ञप्ति के दिए जाने या नवीकरण के लिए प्रक्रिया, वह समय जिसके अन्दर ऐसी अनुज्ञप्ति दी या नवीकृत की जाएगी और अनुज्ञप्ति के लिए आवेदन के संबंध में पूरा-पूरा अन्वेषण करने में अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया ;
(iv) अनुज्ञप्ति का प्ररूप और उसमें विनिर्दिष्ट की जाने वाली शर्तें ;
(v) वह रीति जिसमें संरक्षागृह और सुधार संस्था के लेखे रखे जाएंगे और संपरीक्षित किए जाएंगे ;
(vi) अनुज्ञप्तिधारी द्वारा रजिस्टरों और विवरणों का रखा जाना और ऐसे रजिस्टरों और विवरणों का प्ररूप ;
(vii) संरक्षा गृहों और सुधार संस्थाओं के अंतःवासियों की देख रेख, उपचार, भरण-पोषण, प्रशिक्षण, शिक्षण, नियन्त्रण और अनुशासन ;]
(viii) ऐसे अंतःवासियों से मिलना और पत्र व्यवहार करना ;
(ix) संरक्षागृहों या सुधार संस्थाओं में निरोध के लिए दण्डित 3[व्यक्तियों] का तब तक के लिए अस्थायी निरोध जब तक उनको ऐसे गृहों या संस्थाओं में भेजने के लिए इन्तजाम न हो जाए
(x) किसी अन्तःवासी का धारा 21 की उपधारा (9क) के अधीन-
(क) किसी एक संरक्षागृह से दूसरे में या किसी सुधार संस्था में स्थानान्तरण,
(ख) एक सुधार संस्था से दूसरी में या किसी संरक्षा गृह में स्थानान्तरण ;
(xi) न्यायालय के आदेश के अनुसरण में किसी संरक्षागृह या सुधार संस्था से किसी ऐसे 3[व्यक्ति] का कारागार को स्थानन्तरण जो अशोध्य या उस संरक्षागृह या सुधार संस्था के अन्य अंतःवासियों पर बुरा असर डालने वाले पाए जाएं तथा ऐसे कारागार में उसके निरोध की कालावधि ;
(xii) धारा 7 या 8 धारा के अधीन दण्डित 3[व्यक्तियोंट का किसी संरक्षागृह या सुधार संस्था को स्थानान्तरण और ऐसे गृह या संस्था में उनके निरोध की कालावधि ;
(xiii) संरक्षागृह या सुधार संस्था को अंतःवासियों का या तो पूर्णतः या शर्तों के अधीन उन्मोचन और ऐसी शर्तों को भंग करने की दशा में उनकी गिरफ्तारी ;
(xiv) अंतःवासियों को थोड़ी कालावधि के लिए अनुपस्थित रहने की अनुज्ञा देना ;
(xv) संरक्षागृह या सुधार संस्थाओं और अन्य संस्थाओं का निरीक्षण जिनमें 3[व्यक्तियोंट को रखा जा सके, निरुद्ध किया जा सके और उनका भरण-पोषण किया जा सके ।
(ज) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाए ।
(3) उपधारा (2) के खण्ड (घ) या खण्ड (छ) के अधीन कोई नियम बनाने में राज्य सरकार उपबंधित कर सकेगी कि उसका भंग जुर्माने से जो दो सौ पचास रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।
(4) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए सब नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र विधान-मण्डल के समक्ष रखे जाएंगे ।
24. अधिनियम का कुछ अन्य अधिनियमों का अल्पीकारक न होना-इस अधिनियम की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह सुधार विद्यालय अधिनियम, 1897 (1897 का 8) या उक्त अधिनियम को उपांतरित करने के लिए अधिनियमित या अन्यथा रूप से किशोर अपराधियों से सम्बद्ध किसी राज्य अधिनियम के उपबन्धों का अल्पीकारक है ।
25. निरसन और व्यावृत्तियां-(1) इस अधिनियम की धारा 1 से भिन्न उपबन्धों के किसी राज्य में प्रवृत्त होने की तारीख से [व्यक्तियों] के अनैतिक व्यापार के दमन से अथवा वेश्यावृत्ति के निवारण से सम्बन्धित सब राज्य अधिनियम, जो ऐसी तारीख से ठीक पहले उस राज्य में प्रवृत्त हों, निरसित हो जाएंगे ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी राज्य अधिनियम के इस अधिनियम द्वारा निरसन के होते हुए भी, ऐसे राज्य अधिनियम के उपबन्धों के अधीन की गई कोई बात या किए गए कोई कार्य (जिसके अन्तर्गत दिया गया कोई निदेश, बनाया गया कोई रजिस्टर, नियम या आदेश, अधिरोपित कोई निर्बन्धन भी है) वहां तक जहां तक ऐसी बात या ऐसे कार्य इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत नहीं है इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन की गई या किया गया समझा जाएगा मानो उक्त अधिनियम उस समय प्रवृत्त था जब ऐसी बात की गई थी या ऐसे कार्य किए गए थे तथा तद्नुकूल तब तक प्रवृत्त बने रहेंगे जब तक वह इस अधिनियम के अधीन की गई किसी बात या किए गए किसी कार्य से अतिष्ठित नहीं कर दिए जाते ।
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