कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 ( Employees State Insurance Act, 1948 )
(1948 का अधिनियम संख्यांक 34)
अध्याय 1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारम्भ और लागू होना-(1) यह अधिनियम कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 कहा जा सकेगा ।
(2) इसका विस्तार *** सम्पूर्ण भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख या उन तारीखों को प्रवृत्त होगा जिसे या जिन्हें केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे और इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिए और [विभिन्न राज्यों के लिए या उनके विभिन्न भागों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी ।
(4) यह प्रथमतः मौसमी कारखानों से भिन्न सब कारखानों को (जिनके अन्तर्गत सरकार के कारखाने आते हैं) लागू होगा :
[परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई बात सरकार के या उसके नियंत्रणाधीन किसी ऐसे कारखाने या स्थापन को लागू नहीं होगी जिसके कर्मचारी इस अधिनियम के अधीन उपबंधित फायदों के सारभूत रूप से समरूप या उच्चतर फायदे अन्यथा प्राप्त कर रहे हैं ।]
(5) समुचित सरकार, निगम से परामर्श करके, और [जहां समुचित सरकार राज्य सरकार है वहां केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से, ऐसा करने के अपने आशय को [छह मास] की सूचना, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, देने के पश्चात्, इस अधिनियम के उपबन्धों का या उनमें से किसी का भी विस्तार किसी अन्य स्थापन या स्थापनों के वर्ग पर, चाहे वे औद्योगिक, वाणिज्यिक, कृषिक या अन्य प्रकार के हों, कर सकेगीः
[परंतु जहां इस अधिनियम के उपबन्ध किसी राज्य के किसी भाग में प्रवृत्त किए गए हैं वहां उक्त उपबंधों का विस्तार उस भाग के भीतर किसी ऐसे स्थापन या स्थापनों के वर्ग तक हो जाएगा यदि उन उपबंधों का विस्तार उस राज्य के किसी अन्य भाग में समरूप स्थापन या स्थापनों के वर्ग तक पहले से ही किया गया है ।]
5[(6) कोई ऐसा कारखाना या स्थापन, जिसे यह अधिनियम लागू होता है, इस अधिनियम द्वारा इस बात के होते हुए भी शासित होता रहेगा कि उसमें नियोजित व्यक्तियों की संख्या इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन विनिर्दिष्ट सीमा से किसी समय कम हो जाती है या उसमें विनिर्माण प्रक्रिया शक्ति की सहयता से की जानी बंद हो जाती है ।]
2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि विषय या संदर्भ में कोई बात विरुद्ध न हो,-
(1) “समुचित सरकार" से केन्द्रीय सरकार या [रेल प्रशासन] के नियन्त्रणाधीन स्थापनों या महापत्तन या खान या तेल क्षेत्र की बाबत केन्दीय सरकार और अन्य सब दशाओं में राज्य सरकार अभिप्रेत है;
[(2) “प्रसुविधा-कालावधि" से अभिदाय-कालावधि की तत्संवादी, *** छह क्रमवर्ती मासों से अनधिक की वह कालावधि अभिप्रेत है जो विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाएः
परन्तु प्रथम प्रसुविधा-कालावधि की दशा में दीर्घतर *** कालावधि विनियमों द्वारा या उनके अधीन विनिर्दिष्ट की जा सकेगी;]
(3) “प्रसवास्था" से अभिप्रेत है ऐसी प्रसव-वेदना जिसके परिणामस्वरूप जीवित बालक पैदा हो, या गर्भधारण के छब्बीस सप्ताह पश्चात् की ऐसी प्रसव-वेदना, जिसके परिणामस्वरूप जीवित या मृत बालक पैदा हो;
(4) “अभिदाय" से प्रधान नियोजक द्वारा निगम को कर्मचारी की बाबत संदेय धनराशि अभिप्रेत है और कर्मचारी द्वारा या उसकी ओर से इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार संदेय रकम इसके अन्तर्गत आती है;
[(5) “अभिदाय-कालावधि" से 4*** छह क्रमवर्ती मास से अनधिक की वह कालावधि अभिप्रेत है जो विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाएः
परन्तु प्रथम अभिदाय-कालावधि की दशा में दीर्घतर 4*** कालावधि विनियमों द्वारा या उनके अधीन विनिर्दिष्ट की जा सकेगी;
(6) “निगम" से इस अधिनियम के अधीन स्थापित कर्मचारी राज्य बीमा निगम अभिप्रेत है;
[(6क) “आश्रित" से किसी मृत बीमाकृत व्यक्ति के निम्नलिखित नातेदारों में से कोई भी अभिप्रेत हैं,
[(i) विधवा, धर्मज या दत्तक पुत्र, जिसने पच्चीस वर्ष की आयु प्राप्त नहीं की है, अविवाहिता धर्मज या दत्तक पुत्री;]
[(iक) विधवा माता;]
(ii) धर्मज या दत्तक पुत्र या पुत्री जिसने 8[पच्चीस वर्ष] की आयु प्राप्त कर ली है और जो शिथिलांग है, यदि वह बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उनके उपार्जनों पर पूर्णतः आश्रित था या थी;
(iii) निम्नलिखित व्यक्ति यदि वह बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके उपार्जनों पर पूर्णतः या भागतः आश्रित था या थीः-
(क) माता-पिता जिसके अन्तर्गत विधवा माता नहीं आती,
(ख) अवयस्क अधर्मज पुत्र, अविवाहिता अधर्मज पुत्री या यदि विवाहिता है और अवयस्क है या यदि विधवा है और अवयस्क है तो पुत्री चाहे वह धर्मज हो या दत्तक या अधर्मज,
(ग) अवयस्क भाई या अविवाहिता बहिन या यदि अप्राप्तवय है तो विधवा बहिन,
(घ) विधवा पुत्र-वधु,
(ङ) पूर्वमृत पुत्र की अवयस्क संतान,
(च) पूर्वमृत पुत्री की कोई अवयस्क संतान, यदि उस संतान के माता-पिता में से कोई भी जीवित नहीं है, अथवा
(छ) यदि बीमाकृत व्यक्ति के माता-पिता में से कोई भी जीवित नहीं है तो पितामह-पितामही;
(7) “सम्यक् रूप से नियुक्त" से इस अधिनियम के उपबन्धों या तद्धीन बनाए गए नियमों या विनियमों के अनुसार नियुक्त अभिप्रेत हैः
[(8) “नियोजन-क्षति" से अपने ऐसे नियोजन से, जो बीमा-योग्य नियोजन हो, और उसके अनुक्रम में उद्भूत दुर्घटना से या उपजीविकाजन्य रोग से कर्मचारी को कारित वैयक्तिक क्षति अभिप्रेत है, चाहे वह दुर्घटना या उपजीविकाजन्य रोग भारत की प्रादेशिक सीमाओं के भीतर हुई हो या लगा हो या बाहर;]
(9) “कर्मचारी" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी ऐसे कारखाने या स्थापन में, जिसे यह अधिनियम लागू है, या उसके काम के संबंध में मजदूरी पर नियोजित है, और-
(i) जो उस कारखाने या स्थापन के किसी काम पर, या उस कारखाने या स्थापन के काम के आनुषंगिक या प्रारम्भिक या उससे सम्बद्ध किसी काम पर, प्रधान नियोजक द्वारा सीधे नियोजित है, चाहे ऐसा काम कर्मचारी द्वारा कारखाने या स्थापन में किया जाता हो या अन्यत्र; अथवा
(ii) जो अव्यवहित नियोजक द्वारा या उसके माध्यम से कारखाने या स्थापन के परिसर में या प्रधान नियोजक या उसके अभिकर्ता के पर्यवेक्षण के अधीन ऐसे काम पर नियोजित है जो मामूली तौर पर कारखाने या स्थापन के काम का भाग है या जो कारखाने या स्थापन में किए जाने वाले काम का प्रारम्भिक है या उस कारखाने या स्थापन के प्रयोजन का आनुषंगिक है; अथवा
(iii) जिसकी सेवाएं प्रधान नियोजक को उस व्यक्ति द्वारा अस्थायी रूप से उधार या भाड़े पर दी गई हैं, जिसके साथ उस व्यक्ति ने जिसकी सेवाएं इस प्रकार उधार या भाड़े पर दी गई हैं, कोई सेवा-संविदा कर रखी है,
[और इसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति आता है जो कारखाने या स्थापन के या उसके किसी भाग, विभाग या शाखा के प्रशासन से या उस कारखाने या स्थापन के लिए कच्चे माल के क्रय से या उसके उत्पादों के वितरण या विक्रय से सम्बन्धित किसी काम पर मजदूरी पर नियोजित हो, [या शिक्षु के रूप में रखा गया कोई ऐसा व्यक्ति जो शिक्षु अधिनियम, 1961 (1961 का 52) अधीन [रखा गया शिक्षु नहीं है और इसके अंतर्गत शिक्षु के रूप में लगा हुआ ऐसा व्यक्ति भी है, जिसकी प्रशिक्षण अवधि किसी समय काल तक विस्तारित की गई है] किंतु इसके अन्तर्गत-]
(क) [भारतीय] नौसेना, सेना या वायुसेना का कोई सदस्य, अथवा
[(ख) इस प्रकार नियोजित ऐसा व्यक्ति जिसकी मजदूरी (अतिकालिक काम के लिए पारिश्रमिक को छोड़कर) [एक हजार छह सौ रुपए मासिक] से अधिक हो,
नहीं आताः
परंतु ऐसा कर्मचारी, जिसकी मजदूरी (अतिकालिक काम के लिए पारिश्रमिक को छोड़कर) अभिदाय-कालावधि के आरम्भ के पश्चात् (न कि पूर्व) किसी भी समय 7[एक हजार छह सौ रुपए मासिक] से अधिक हो जाए, उस कालावधि के अन्त तक कर्मचारी बना रहेगा;]
(10) “छूट-प्राप्त कर्मचारी" से वह कर्मचारी अभिप्रेत है जो कर्मचारी-अभिदाय देने के लिए इस अधिनियम के अधीन दायी नहीं है;
[(11) “कुटुम्ब" से बीमाकृत व्यक्ति के निम्नलिखित सभी नातेदार या उनमें से कोई नातेदार अभिप्रेत हैं, अर्थात् :-
(i) पति या पत्नी;
(ii) अवयस्क धर्मज या दत्तक संतान जो बीमाकृत व्यक्ति पर आश्रित हो;
(iii) ऐसी संतान जो बीमाकृत व्यक्ति के उपार्जनों पर पूर्णतः आश्रित हो; और जो-
(क) शिक्षा प्राप्त कर रहा हो, तब तक जब तक वह इक्कीस वर्ष की आयु न प्राप्त कर ले;
(ख) अविवाहिता पुत्री;
(iv) ऐसी संतान जो शारीरिक या मानसिक अप्रसामान्यता या क्षति के कारण शिथिलांग है और बीमाकृत व्यक्ति के उपार्जनों पर पूर्णतः आश्रित है, तब तक जब तक अंग शैथिल्य बना रहता है;
[(v) आश्रित माता-पिता जिनकी सभी स्रोतों से आय ऐसी आय से अधिक नहीं होती है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए;
(vi) यदि बीमाकृत व्यक्ति अविवाहिता है और उसके माता-पिता जीवित नहीं हैं तो बीमाकृत व्यक्ति के उपार्जनों पर पूर्ण रूप से आश्रित अवयस्क भाई या बहिन;]
1[(12) “कारखाना" से ऐसा कोई परिसर अभिप्रेत है जिसके अंतर्गत उसकी ऐसी प्रसीमाएं भी हैं, जिसमें दस या अधिक व्यक्ति नियोजित हैं या पूर्ववर्ती बारह मास के किसी भी दिन नियोजित थे और जिसके किसी भाग में कोई विनिर्माण प्रक्रिया की जा रही है या मामूली तौर से इस प्रकार की जाती है किन्तु इसके अंतर्गत कोई खान, जो खान अधिनियम, 1952 (1952 का 35)के प्रवर्तन के अधीन है, या रेल इंजन शेड नहीं है;]
(13) “अव्यवहित नियोजक" से, उसके द्वारा या उसके माध्यम से नियोजित कर्मचारियों के सम्बन्ध में वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने किसी ऐसे कारखाने या स्थापन के परिसर में, जिसे यह अधिनियम लागू है, या प्रधान नियोजक या उसके अभिकर्ता के पर्यवेक्षण के अधीन किसी ऐसे सम्पूर्ण काम के या उसके किसी भाग के निष्पादन का भार अपने ऊपर लिया है, जो मामूली तौर पर प्रधान नियोजन के कारखाने या स्थापन के नाम का भाग है, या जो ऐसे किसी कारखाने या स्थापन में किए जाने वाले काम का प्रारम्भिक या उस कारखाने या स्थापन के प्रयोजन का आनुषंगिक है, और इसके अन्तर्गत वह व्यक्ति आता है, जिसके द्वारा उस कर्मचारी की सेवाएं जिसने उसके साथ सेवा-संविदा कर रखी है, प्रधान नियोजक को स्थायी रूप में उधार या भाड़े पर दी गई है [और जिसके अंतर्गत ठेकेदार भी है ;]
[(13क) “बीमा-योग्य नियोजन" से किसी ऐसे कारखाने या स्थापन में नियोजन अभिप्रेत है जिसे यह अधिनियम लागू होता है;]
(14) “बीमाकृत व्यक्ति" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जो ऐसा कर्मचारी है या था जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन अभिदाय संदेय है या थे और जो इस अधिनियम द्वारा उपबन्धित फायदों में से किसी का उसी कारण हकदार है;
3[(14क) “प्रबन्ध अभिकर्ता" से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी अन्य व्यक्ति का व्यापार या कारबार चलाने के प्रयोजन के लिए ऐसे अन्य व्यक्ति के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त है या कार्य कर रहा है, किन्तु इसके अन्तर्गत नियोजक का अधीनस्थ व्यष्टिक प्रबन्धक नहीं आता;]
2[(14कक) “विनिर्माण प्रकिया" का वही अर्थ है जो कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) में है;]
(14ख) “गर्भपात" से गर्भ धारण के छब्बीसवें सप्ताह से पूर्व या उसके दौरान किसी भी समय में गर्भित गर्भाशय की अन्तर्वस्तु का बाहर निकल आना अभिप्रेत है, किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसा गर्भपात नहीं आता जिसका कारित किया जाना भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दंडनीय है;]
(15) कारखाने के “अधिभोगी"। का वही अर्थ होगा जो उसे कारखाना अधिनियम, [1948 (1948 का 63)] में दिया गया है;
3[(15क) स्थायी आंशिक निःशक्तता" से स्थायी प्रकार की ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है जिससे कर्मचारी की हर ऐसे नियोजन में उपार्जन सामर्थ्य कम हो जाती है, जिसे ग्रहण करने के लिए वह उस दुर्घटना के समय, जिसके परिणामस्वरूप वह निःशक्तता हुई, समर्थ था :
परन्तु द्वितीय अनुसूची के भाग 2 में विनिर्दिष्ट हर क्षति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसके परिणामस्वरूप स्थायी आंशिक निःशक्तता होती है;
(15ख) “स्थायी पूर्ण निःशक्तता" से स्थायी प्रकार की ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, जो किसी कर्मचारी को ऐसे सब काम के लिए असमर्थ कर देती है जिसे वह दुर्घटना के समय, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी निःशक्तता हुई, करने में समर्थ था :
परन्तु द्वितीय अनुसूची के भाग 1 में विनिर्दिष्ट हर क्षति के या उसके भाग 2 में विनिर्दिष्ट क्षतियों के समुच्चय के बारे में जहां, उपार्जन सामर्थ्य की हानि का संकलन प्रतिशत, जैसा उक्त भाग 2 में उन क्षतियों के सामने विनिर्दिष्ट है, सौ या उससे अधिक होता है, वहां यह समझा जाएगा कि उसके परिणामस्वरूप स्थायी पूर्ण निःशक्तता हुई है;]
2[(15ग) “शक्ति" का वही अर्थ है जो कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) में है;]
(16) “विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(17) “प्रधान नियोजक" से अभिप्रेत है-
(i) किसी कारखाने में, कारखाने का स्वामी या अधिभोगी, और इसके अन्तर्गत ऐसे स्वामी या अधिभोगी का प्रबन्ध अभिकर्ता, किसी मृत स्वामी या अधिभोगी का विधिक प्रतिनिधि और जहां [कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63)] के अधीन कोई व्यक्ति कारखाने के प्रबन्धक के रूप में नामित हुआ है वहां इस प्रकार नामित व्यक्ति, आता है;
(ii) भारत में, किसी सरकार के किसी विभाग के नियन्त्रणाधीन किसी स्थापन में, ऐसी सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त प्राधिकारी या जहां कोई प्राधिकारी इस प्रकार नियुक्त नहीं किया गया है वहां विभागाध्यक्ष;
(iii) किसी अन्य स्थापन में कोई भी ऐसा व्यक्ति जो स्थापन के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी हो;
(18) “विनियम" से निगम द्वारा बनाया गया विनियम अभिप्रेत है;
(19) “अनुसूची" से इस अधिनियम की अनुसूची अभिप्रेत है;
[(19क) “मौसमी कारखाना" से ऐसा कारखाना अभिप्रेत है जो निम्नलिखित विनिर्माण प्रक्रियाओं में से किसी एक या अधिक में अनन्य रूप से लगा हुआ है, अर्थात् कपास ओटना, कपास या जूट की दबाई, मूंगफली की छिलाई, काफी, नील, लाख, रबड़, चीनी (जिसके अन्तर्गत गुड़ भी है) या चाय का विनिर्माण या कोई ऐसी विनिर्माण प्रक्रिया जो पूर्वोक्त प्रकियाओं में से किसी की आनुषंगिक है या उससे संबंधित है और इसके अन्तर्गत ऐसा कारखाना भी है जो एक वर्ष में सात मास से अनधिक की कालावधि के लिए निम्नलिखित में लगा हुआ है,-
(क) चाय का काफी के सम्मिश्रण, पैकिंग या पुनः पैकिंग की कोई प्रक्रिया; या
(ख) ऐसी कोई अन्य विनिर्माण प्रक्रिया, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ;]
(20) “बीमारी" से वह दशा अभिप्रेत है, जिसमें चिकित्सीय उपचार और चिकीत्सीय परिचर्या अपेक्षित है और जिसमें चिकित्सीय आधारों पर काम से प्रविरति आवश्यक हो जाती है;
(21) “अस्थायी निःशक्तता" से किसी नियोजन क्षति के परिणामस्वरूप हुई ऐसी दशा अभिप्रेत है जिसमें चिकित्सीय उपचार अपेक्षित है और जिससे कर्मचारी, ऐसा काम करने के लिए, [जिसे वह उस क्षति से पूर्व या उस क्षति के समय कर रहा था,] ऐसी क्षति के परिणामस्वरूप अस्थायी रूप से असमर्थ हो जाता है;
(22) “मजदूरी" से वह सभी पारिश्रमिक अभिप्रेत है जो किसी कर्मकार को नियोजन की संविदा के अभिव्यक्त या विवक्षित निबन्धनों की पूर्ति हो जाने पर, नकद संदत्त किया गया हो या नकद संदेय होता और इसके अन्तर्गत [किसी प्राधिकृत छुट्टी की तालाबन्दी की, ऐसी हड़ताल की जो अवैध नहीं है, या कामबंदी की किसी भी कालावधि की बाबत किसी कर्मचारी को दिया गया] संदाय और अन्य अतिरिक्त पारिश्रमिक, यदि कोई हो, आता है जो [दो मास से अनधिक के अन्तरालों पर दिया गया हो,] किन्तु इसके अन्तर्गत निम्नलिखित नहीं आते :-
(क) नियोजक द्वारा किसी पेंशन निधि या भविष्य निधि में या इस अधिनियम के अधीन संदत्त कोई अभिदाय;
(ख) कोई यात्रा भत्ता या किसी यात्रा-रियायत का मूल्य;
(ग) नियोजित व्यक्ति को ऐसे विशेष व्यय चुकाने के लिए संदत्त कोई राशि जो उसे अपने नियोजन की प्रकृति के कारण उठाने पड़ते हैं; अथवा
(घ) उन्मोचन पर संदेय कोई उपदान ;
[(23) “मजदूरी कालावधि" से, किसी कर्मचारी के संबंध में, वह कालावधि अभिप्रेत है जिसकी बाबत मजदूरी मामूली तौर पर या तो नियोजन की संविदा के अभिव्यक्त या विवक्षित निबंधनों के अनुसार या अन्यथा उसे संदेय है;]
[(24) इस अधिनियम में प्रयुक्त किन्तु अपरिभाषित और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (1947 का 14) में परिभाषित अन्य सभी शब्दों और पदों के वे ही अर्थ होंगे जो उन्हें क्रमशः उस अधिनियम में दिए गए हैं ।]
[2क. कारखानों और स्थापनों का रजिस्ट्रीकरण-हर कारखाना या स्थापन, जिसे यह अधिनियम लागू है, ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति से, जो इस निमित्त बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, रजिस्ट्रीकृत किया जाएगा ।]
अध्याय 2
निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद्
3. कर्मचारी राज्य बीमा निगम की स्थापना-(1) कर्मचारी राज्य बीमा स्कीम का प्रशासन इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार करने के लिए एक निगम, जो कर्मचारी राज्य बीमा निगम के रूप में जाना जाएगा, ऐसी तारीख। से स्थापित किया जाएगा जिसे केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त नियत करे ।
(2) यह निगम कर्मचारी राज्य बीमा निगम के नाम से निगमित निकाय होगा और उसका शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा होगी तथा उक्त नाम से वह वाद लाएगा और उस पर लाया जाएगा ।
4. निगम का गठन-निगम का गठन निम्नलिखित सदस्यों से होगा, अर्थात् :-
[(क) अध्यक्ष, जिसे केन्द्रीय सरकार [नियुक्त] करेगी;
(ख) उपाध्यक्ष, जिसे केन्द्रीय सरकार 3[नियुक्त] करेगी;
(ग) पांच से अनधिक व्यक्ति, जिन्हें *** केन्द्रीय सरकार 34[नियुक्त] करेगी;
(घ) जिन, [ [राज्यों] में यह अधिनियम प्रवृत्त है], उनमें से हर एक का प्रतिनिधित्व करने वाला एक-एक व्यक्ति, जिसे सम्बन्धित राज्य सरकार 3[नियुक्त] करेगी;
(ङ) [संघ राज्यक्षेत्रों] का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक व्यक्ति, जिसे केन्द्रीय सरकार 3[नियुक्त] करेगी;]
(च) नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने वाले [दस व्यक्ति,] जिन्हें केन्द्रीय सरकार नियोजकों के ऐसे संगठनों से, जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाए, परामर्श करके 3[नियुक्त] करेगी;
(छ) कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 7[दस व्यक्ति,] जिन्हें केन्द्रीय सरकार कर्मचारियों के ऐसे संगठनों से, जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा उस प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाए, परामर्श करके 3[नियुक्त] करेगी;
(ज) चिकित्सा वृत्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले दो व्यक्ति, जिन्हें केन्द्रीय सरकार चिकित्सा व्यवसायियों के ऐसे संगठनों से, जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा उस प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाए, परामर्श करके 3[नियुक्त] करेगी; ***
[(झ) तीन संसद् सदस्य जिनमें से दो लोक सभी के सदस्य होंगे और एक राज्य सभी का सदस्य होगा, और जिन्हें क्रमशः लोक सभी के सदस्यों द्वारा तथा राज्य सभी के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा; तथा
(ञ) निगम का महानिदेशक, पदेन ।]
5. निगम के सदस्यों की पदावधि-(1) इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, निगम के उन सदस्यों की, जो [धारा 4 के खंड (क), (ख), (ग), (घ) और (ङ) में निर्दिष्ट सदस्यों से और पदेन सदस्यों से भिन्न है,] पदावधि उस तारीख से आरम्भ होकर चार वर्ष की होगी, जिस तारीख को उनका 3[नियुक्त] या निर्वाचन अधिसूचित किया जाएः
परन्तु निगम का सदस्य चार वर्ष की उक्त कालावधि का अवसान हो जाने पर भी तब तक पद धारण किए रहेगा जब तक उसके उत्तरवर्ती का 3[नियुक्त] या निर्वाचन अधिसूचित नहीं कर दिया जाता ।
(2) धारा 4 के खंड [(क), (ख), (ग), (घ) और (ङ)] में निर्दिष्ट निगम सदस्य, उन्हें 3[नियुक्त] निर्देशित करने वाली सरकार के प्रसादपर्यन्त, पद धारण करेंगे ।
6. पुनः नियुक्ति या पुनः निर्वाचन के लिए पात्रता-निगम, स्थायी समिति, या चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् का पदावरोही सदस्य, यथास्थिति, पुनः [नियुक्ति] या पुनःनिर्वाचन का पात्र होगा ।
[7. आदेशों, विनिश्चयों आदि का अधिप्रमाणीकरण-निगम के सभी आदेश और विनिश्चय निगम के महानिदेशक के हस्ताक्षर से अधिप्रमाणीकृत किए जाएंगे और निगम द्वारा निर्गत अन्य सभी लिखतें निगम के महानिदेशक या ऐसे अन्य अधिकारी के, जो उसके द्वारा प्राधिकृत किया जाए, हस्ताक्षर से अधिप्रमाणीकृत की जाएगी ।]
8. स्थायी समिति का गठन-निगम की स्थायी समिति, निगम के सदस्यों में से गठित की जाएगी और निम्नलिखित से मिलकर बनेगी :-
(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा 1[नियुक्त] अध्यक्ष;
(ख) [केन्द्रीय सरकार द्वारा 1[नियुक्त]] तीन निगम सदस्य;
[(खख) ऐसी तीन राज्य सरकारों का, जिन्हें केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे, निगम में प्रतिनिधित्व करने वाले तीन निगम सदस्य;]
(ग) निगम द्वारा निम्नलिखित रूप में निर्वाचित [आठ] सदस्य-
। । । ।
(ii) नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने वाले निगम सदस्यों में से [तीन] सदस्य;
(iii) कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले निगम सदस्यों में से 7[तीन] सदस्य;
(iv) चिकित्सा वृत्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले निगम सदस्यों में से एक सदस्य; तथा
(v) निगम सदस्यों में से [संसद्] द्वारा निर्वाचित एक सदस्य;
[(घ) निगम का महानिदेशिक, पदेन ।]
9. स्थायी समिति के सदस्यों की पदावधि-(1) इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, स्थायी समिति के उस सदस्य की, जो धारा 8 के खंड (क), या [खंड (ख) या खंड (खख)] में निर्दिष्ट सदस्य से भिन्न है, पदावधि उस तारीख से दो वर्ष की होगी, जिस तारीख को उसका निर्वाचन अधिसूचित किया जाएः
परन्तु स्थायी समिति का सदस्य, दो वर्ष की उक्त कालावधि का अवसान हो जाने पर भी तब तक पद धारण किए रहेगा जब तक उसके उत्तरवर्ती का निर्वाचन अधिसूचित नहीं कर दिया जाताः
परन्तु यह और कि जैसे ही स्थायी समिति का सदस्य निगम का सदस्य नहीं रहा जाता उसका पद धारण करना समाप्त हो जाएगा ।
(2) धारा 8 के खंड 10[खंड (क) या खंड (ख) या खंड (खख)] में निर्दिष्ट स्थायी समिति का सदस्य केन्द्रीय सरकार के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा ।
10. चिकित्सा प्रसुविधा परिषद्-(1) केन्द्रीय सरकार एक चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् गठित करेगी जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगीः-
[(क) कर्मचारी राज्य बीमा निगम का महानिदेशक, पदेन, अध्यक्ष;
(ख) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, पदेन, सह-अध्यक्ष;]
(ग) निगम का चिकित्सा आयुक्त, पदेन;
(घ) [ [(संघ राज्यक्षेत्रों से भिन्न) जिन राज्यों] में यह अधिनियम प्रवृत्त है] उनमें से हर एक का प्रतिनिधित्व करने वाला एक-एक सदस्य, जिसे सम्पृक्त राज्य सरकार [नियुक्त] करेगी;
(ङ) नियोजकों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन सदस्य, जिन्हें केन्द्रीय सरकार नियोजकों के ऐसे संगठनों से परामर्श करके, जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाए, नामनिर्देशित करेगी;
(च) कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन सदस्य, जिन्हें केन्द्रीय सरकार कर्मचारियों के ऐसे संगठनों से परामर्श करके जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा उस प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाए, 3[नियुक्त] करेगी; तथा
(छ) चिकित्सा वृत्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन सदस्य, जिनमें कम से कम एक स्त्री होगी, जिन्हें केन्द्रीय सरकार चिकित्सा व्यवसायियों के ऐसे संगठनों से, जिन्हें केन्द्रीय सरकार द्वारा उस प्रयोजन के लिए मान्यता दी जाए, परामर्श करके 3[नियुक्त] करेगी ।
(2) इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के उस सदस्य की, जो उपधारा (1) के खंड (क) से (घ) तक में से किसी में भी निर्दिष्ट सदस्य से भिन्न है, पदावधि उस तारीख से चार वर्ष की होगी, जिस तारीख को 3[उसकी नियुक्ति] अधिसूचित किया जाएः
[परन्तु चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् का सदस्य चार वर्ष की उक्त कालावधि का अवसान हो जाने पर भी तब तक पद धारण किए रहेगा जब तक उसके उत्तरवर्ती 3[की नियुक्ति] अधिसूचित नहीं कर दी जाती ।]
(3) चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् का उपधारा (1) के खंड (ख) और खण्ड (घ) में निर्दिष्ट सदस्य, उसे 3[नियुक्त] करने वाली सरकार के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा ।
11. सदस्यता का त्याग-निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् का सदस्य केन्द्रीय सरकार को दी गई लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा और त्यागपत्र का उस सरकार द्वारा प्रतिग्रहण कर लिए जाने पर, उसका स्थान रिक्त हो जाएगा ।
12. सदस्यता की समाप्ति- [(1)] यदि निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् का कोई सदस्य उसके तीन क्रमवर्ती अधिवेशनों में हाजिर रहने में असफल रहता है तो वह उस निकाय का सदस्य नहीं रह जाएगाः
परन्तु, यथास्थिति, निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए, उसे सदस्यता पर प्रत्यावर्तित कर सकेगी ।
[(2) जहां कि, यथास्थिति, निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् में नियोजकों, कर्मचारियों या चिकित्सीय वृत्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए 3[नियुक्त] या निर्वाचित किसी व्यक्ति का केन्द्रीय सरकार की राय में ऐसे नियोजकों, कर्मचारियों या चिकित्सा-वृत्ति का प्रतिनिधित्व करना समाप्त हो जाता है वहां केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, घोषित कर सकेगी कि ऐसी तारीख से, जैसी उसमें विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसा व्यक्ति, यथास्थिति, निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् का सदस्य नहीं रहा जाएगा ।]
[(3) जैसे ही, धारा 4 के खंड (झ) में निर्दिष्ट व्यक्ति, मंत्री या लोक सभी का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष या राज्य सभी का उपसभीपति बन जाता है अथवा जब वह संसद् का सदस्य नहीं रहता है, सदस्य नहीं रहेगा ।]
13. निरर्हता-कोई भी व्यक्ति निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् का सदस्य चुने जाने या होने के लिए निरर्हित होगा-
(क) यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित कर दिया जाता है; अथवा
(ख) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है; अथवा
(ग) यदि वह निगम के साथ की गई किसी अस्तित्वशील संविदा में या निगम के लिए किए जा रहे किसी काम में, चिकित्सा व्यवसायी के या कम्पनी के शेयरधारक (जो निदेशक नहीं है) के रूप में के सिवाय स्वयं या अपने भागीदार के द्वारा, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः कोई हित रखता है; अथवा
(घ) यदि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या पश्चात् वह किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष हो चुका है जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्वलित है ।
14. रिक्तियों का भरा जाना-(1) निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् के नामनिर्देशित या निर्वाचित सदस्यों के पद की रिक्तियां, यथास्थिति, [नियुक्त] या निर्वाचन द्वारा भरी जाएंगी ।
(2) निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् का कोई सदस्य जो आकस्मिक रिक्ति भरने के लिए 1[नियुक्त] या निर्वाचित हुआ है तभी तक के लिए पद धारण करेगा जब तक वह सदस्य, जिसके स्थान में वह 1[नियुक्त] या निर्वाचित हुआ है रिक्ति न होने की दशा में पद धारण करने का हकदार होगा ।
15. फीसें और भत्ते-निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् के सदस्यों को वे फीसें और भत्ते मिलेंगे, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर विहित किए जाएंगे ।
16. प्रधान अधिकारी- [(1) केन्द्रीय सरकार, निगम से परामर्श करके, एक महानिदेशक और एक वित्त आयुक्त नियुक्त कर सकेगी ।]
(2) महानिदेशक निगम का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होगा ।
(3) [महानिदेशक और वित्त आयुक्त] निगम के पूर्णकालिक अधिकारी होंगे और अपने पद से असंबद्ध किसी भी काम का भार केन्द्रीय सरकार की [और निगम की] मंजूरी के बिना अपने ऊपर न लेंगे ।
(4) 3[महानिदेशक और वित्त आयुक्त] पांच वर्ष से अनधिक की ऐसी कालावधि के लिए पद धारण करेगा जो उसे नियुक्त करने वाले आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए । यदि पदावरोही 3[महानिदेशक और वित्त आयुक्त] अन्यथा अर्हित हो तो वह पुनः नियुक्ति का पात्र होगा ।
(5) 3[महानिदेशक और वित्त आयुक्त] को ऐसे वेतन और भत्ते मिलेंगे जैसे केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं ।
(6) यदि कोई व्यक्ति धारा 13 में विनिर्दिष्ट निर्हताओं में से किसी के अध्यधीन है तो वह 3[महानिदेशक और वित्त आयुक्त] के रूप में नियुक्त किए जाने या होने के लिए निरर्हित होगा ।
(7) केन्द्रीय सरकार 3[महानिदेशक और वित्त आयुक्त] को किसी भी समय पद से हटा सकेगी और यदि उसे ऐसे हटाए जाने की सिफारिश निगम के उस प्रयोजन के लिए बुलाए गए विशेष अधिवेशन में पारित और निगम की कुल सदस्य-संख्या के दो तिहाई से अन्यून मतों द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा की गई है तो उसे हटाएगी ।
17. कर्मचारिवृन्द-(1) निगम अन्य ऐसा कर्मचारिवृन्द नियोजित कर सकेगा जिसमें अधिकारी और सेवक हों और जो उसके कारबार के दक्ष संव्यवहार के लिए आवश्यक हों, [परन्तु [दो हजार और दो सौ रुपए] या उससे अधिक के अधिकतम मासिक वेतन के किसी भी पद के सृजन के लिए] केन्द्रीय सरकार की मंजूरी अभिप्राप्त की जाएगी ।
[(2) (क) निगम के कर्मचारिवृन्द के सदस्यों की भर्ती की पद्धति, वेतन और भत्ते, अनुशासन और सेवा की अन्य शर्तें वही होंगी जो तत्समान वेतनमान पाने वाले केन्द्रीय सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को लागू नियमों और आदेशों के अनुसार निगम द्वारा बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाएः
परन्तु जहां निगम की यह राय है कि पूर्वोक्त विषयों में से किसी विषय के संबंध में उक्त नियमों या आदेशों से भिन्न नियम बनाना या आदेश करना आवश्यक है वहां वह केन्द्रीय सरकार का पूर्व अनुमोदन अभिप्राप्त करेगाः
[परंतु यह और कि यह उपधारा विभिन्न क्षेत्रों में संविदा के आधार पर नियुक्त परामर्शियों और विशेषज्ञों की नियुक्ति को लागू नहीं होगी ।]
(ख) निगम, खण्ड (क) के अधीन कर्मचारिवृन्द के सदस्यों के तत्समान वेतनमान अवधारित करने में केन्द्रीय सरकार के अधीन ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की शैक्षिक अर्हताएं, भर्ती की पद्धति, कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को ध्यान में रखेगा और किसी शंका की दशा में, निगम उस विषय को केन्द्रीय सरकार के पास निर्दिष्ट करेगा जिसका उस पर विनिश्चय अन्तिम होगा ।]
(3) [केन्द्रीय सरकार के अधीन के [समूह क और समूह ख] के तत्सम पदों [(जो चिकित्सीय पदों से भिन्न है) पर] हर नियुक्ति [संघ] लोक सेवा आयोग से परामर्श करके की जाएगीः
परन्तु यह उपधारा एक वर्ष से अनधिक की [कालावधिट की किसी स्थानापन्न या अस्थायी नियुक्ति को लागू नहीं होगीः
[परन्तु यह और कि ऐसी स्थानापन्न या अस्थायी नियुक्ति, नियमित नियुक्ति के लिए कोई दावा प्रदान नहीं करेगी और उस हैसियत में की गई सेवाओं की गणना न तो ज्येष्ठता मद्दे, न ही अगली उच्चतर श्रेणी में प्रोन्निति के लिए विनियमों में विनिर्दिष्ट निम्नतम अर्हक सेवा मद्दे की जाएगी ।]
[(4) यदि कोई ऐसा प्रश्न उठे कि कोई पद केन्द्रीय सरकार के अधीन के [समूह क और समूह ख] के तत्सम है या नहीं तो वह प्रश्न केन्द्रीय सरकार को निर्देशित किया जाएगा जिसका उस पर विनिश्चय अन्तिम होगा ।]
18. स्थायी समिति की शक्तियां-(1) निगम के साधारण अधीक्षण और नियंत्रण के अध्यधीन रहते हुए स्थायी समिति निगम का कामकाज प्रशासित करेगी और निगम की शक्तियों में से किसी का भी प्रयोग और कृत्यों में से किसी का भी पालन कर सकेगी ।
(2) स्थायी समिति ऐसे सब मामलों और विषयों को, जो इस निमित्त बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं, निगम के विचार और विनिश्चय के लिए निवेदित करेगी ।
(3) स्थायी समिति स्वविवेकानुसार कोई अन्य मामला या विषय निगम के विनिश्चय के लिए निवेदित कर सकेगी ।
19. बीमाकृत व्यक्तियों के स्वास्थ्य आदि के लिए उपायों का संप्रवर्तित करने की निगम की शक्ति-निगम बीमाकृत व्यक्तियों के स्वास्थ्य और कल्याण की अभिवृद्धि के लिए और उन बीमाकृत व्यक्तियों के पुनर्वासन और पुनर्नियोजन के लिए, जो निःशक्त या क्षतिग्रस्त हो गए हैं, उपाय इस अधिनियम में विनिर्दिष्ट प्रसुविधाओं की स्कीम के अतिरिक्त संप्रवर्तित कर सकेगा और ऐसे उपायों के बारे में व्यय निगम की निधियों में से ऐसी परिसीमाओं के अन्दर उपगत कर सकेगा, जैसी केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ।
20. निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के अधिवेशन-निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा-प्रसुविधा परिषद् के अधिवेशन इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए, ऐसे समयों और स्थानों पर होंगे और वे अपने अधिवेशनों में कार्य करने के लिए ऐसे नियमों या ऐसी प्रक्रिया का अनुपालन करेंगी जो इस निमित्त बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाए ।
21. निगम, और स्थायी समिति का अतिष्ठित किया जाना-(1) यदि केन्द्रीय सरकार की राय में निगम या स्थायी समिति इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन अपने पर अधिरोपित कर्तव्यों के पालन में बारबार व्यतिक्रम करती है या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करती है तो वह सरकार निगम को, या स्थायी समिति की दशा में, निगम से परामर्श करके स्थायी समिति को, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अतिष्ठित कर सकेगीः
परन्तु केन्द्रीय सरकार, इस उपधारा के अधीन कोई अधिसूचना निकालने से पूर्व, यथास्थिति, निगम या स्थायी समिति को, यह हेतुक दर्शित करने के लिए कि उसे क्यों न अतिष्ठित कर दिया जाए, युक्तियुक्त अवसर देगी और, यथास्थिति, निगम या स्थायी समिति के स्पष्टीकरणों और आक्षेपों पर, यदि कोई हों, विचार करेगी ।
(2) निगम या स्थायी समिति को अतिष्ठित करने वाली उपधारा (1) के अधीन की अधिसूचना के प्रकाशित होने पर, यथास्थिति, निगम या स्थायी समिति के सभी सदस्यों के बारे में यह समझा जाएगा कि उन्होंने ऐसे प्रकाशन की तारीख से अपने पद रिक्त कर दिए हैं ।
(3) स्थायी समिति के अतिष्ठित कर दिए जाने पर एक नई स्थायी समिति धारा 8 के अनुसार तुरन्त गठित की जाएगी ।
(4) निगम के अतिष्ठित कर दिए जाने पर केन्द्रीय सरकार-
(क) निगम के लिए नए सदस्य धारा 4 के अनुसार तुरन्त [नियुक्तट कर सकेगी या 9[नियुक्तट या निर्वाचित करा सकेगी और धारा 8 के अधीन नई स्थायी समिति गठित कर सकेगी;
(ख) निगम को शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करने के लिए ऐसा अभिकरण ऐसी कालावधि के लिए, जैसा या जैसी वह ठीक समझे, स्वविवेकानुसार नियुक्त कर सकेगी, और ऐसा अभिकरण निगम की सभी शक्तियों का प्रयोग और निगम के सभी कृत्यों का पालन करने के लिए सक्षम होगा ।
(5) केन्द्रीय सरकार इस धारा के अधीन की गई किसी भी कार्रवाई की, और जिन परिस्थितियों के कारण ऐसी कार्रवाई की गई उनकी पूरी रिपोर्ट शीघ्रतम अवसर पर जो किसी भी दशा में, यथास्थिति, निगम या स्थायी समिति को अतिष्ठित करने वाली अधिसूचना की तारीख से तीन मास के पश्चात् का न हो, [संसद्] से समक्ष रखवाएगी ।
22. चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के कर्तव्य-चिकित्सा प्रसुविधा परिषद्-
(क) [निगम और स्थायी समिति] को चिकित्सा प्रसुविधा के प्रशासन से और प्रसुविधाओं के अनुदान के प्रयोजनों के लिए प्रमाणन से सम्बन्धित विषयों और अन्य सम्बद्ध विषयों पर सलाह देगी;
(ख) चिकित्सीय उपचार और परिचर्या के सम्बन्ध में चिकित्सा व्यवसायियों के विरुद्ध किए गए परिवादों का अन्वेषण करने की ऐसी शक्तियां रखेगी और तत्सम्बन्धी उसके ऐसे कर्तव्य होंगे जिन्हें विहित किया जाए; तथा
(ग) चिकित्सीय उपचार और परिचर्या के सम्बन्ध में ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करेगी जैसे विनियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
23. [महानिदेशक और वित्त आयुक्त के कर्तव्य]-4[महानिदेशक और वित्त आयुक्त] ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे जो विहित किए जाएं । वे अन्य ऐसे कृत्यों का भी पालन करेंगे जो विनियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
24. निगम आदि के कार्यों का गठन में त्रुटि आदि के कारण अविधिमान्य न होना-निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् का कोई भी कार्य निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के गठन में किसी त्रुटि के कारण, या इस आधार पर कि उसका कोई सदस्य किसी निरर्हता के या [अपनी नियुक्ति] या निर्वाचन में किसी अनियमितता के कारण पद धारण करने का या पद पर बने रहने का हकदार नहीं था, या इस कारण कि ऐसा कार्य निगम, स्थायी समिति या चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के किसी सदस्य के पद में किसी रिक्ति की कालावधि के दौरान किया गया था, अविधिमान्य न समझा जाएगा ।
25. प्रादेशिक बोर्ड, स्थानीय समितियां, प्रादेशिक और स्थानीय चिकित्सा प्रसुविधा परिषदें-निगम ऐसे क्षेत्रों में और ऐसी रिति से प्रादेशिक बोर्ड, स्थानीय समितियां तथा प्रादेशिक और स्थानीय चिकित्सा प्रसुविधा परिषदें नियुक्त कर सकेगा और उन्हें ऐसी शक्तियां और ऐसे कृत्य प्रत्यायोजित कर सकेगा जिन्हें विनियमों द्वारा उपबन्धित किया जाए ।
अध्याय 3
वित्त और संपरीक्षा
26. कर्मचारी राज्य बीमा निधि-(1) इस अधिनियम के अधीन दिए गए सभी अभिदाय और निगम की ओर से प्राप्त अन्य सभी धन कर्मचारी राज्य बीमा निधि नामक निधि में संदत्त किए जाएंगे जो इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए निगम द्वारा धारित और प्रशासित की जाएंगी ।
(2) निगम, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार से *** किसी स्थानीय प्राधिकारी या व्यष्टि या निकाय से, चाहे वह निगमित हो या न हो, इस अधिनियम के सभी प्रयोजनों या किसी भी प्रयोजन के लिए अनुदान, संदान और दान प्रतिगृहीत कर सकेगा ।
[(3) इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट अन्य उपबन्धों और इस निमित्त बनाए गए नियमों या विनियमों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि उक्त निधि को प्रोद्भूत या संदेय सभी धन, भारतीय रिजर्व बैंक में या ऐसे अन्य बैंक में, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित किया जाए, कर्मचारी राज्य बीमा निधि खाता अभिनामक एक खाते में जमा किए जाएंगे ।]
(4) ऐसा खाता ऐसे अधिकारियों द्वारा चलाया जाएगा जिन्हें स्थायी समिति निगम के अनुमोदन से प्राधिकृत करे ।
27. [केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान ।]-कर्मचारी राज्य बीमा (संशोधन) अधिनियम, 1966 (1966 का 44) की धारा 12 द्वारा (17-6-1967 से) निरसित ।
28. वे प्रयोजन जिनके लिए निधि में से व्यय किया जा सकेगा-इस अधिनियम के और केन्द्रीय सरकार द्वारा उस निमित्त बनाए गए नियमों के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि कर्मचारी राज्य बीमा निधि में से व्यय केवल निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए ही किया जाएगा, अर्थात्ः-
(i) बीमाकृत व्यक्तियों को प्रसुविधाओं का संदाय तथा चिकित्सीय उपचार और परिचर्या का उपबन्ध, और जहां कि चिकित्सा प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए भी विस्तारित की गई हो, वहां इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार उनके कुटुम्बों के लिए ऐसी चिकित्सा प्रसुविधाओं का उपबन्ध और उससे संबद्ध प्रभारों और खर्चों का चुकाया जाना;
(ii) निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा प्रसुविधा परिषद्, प्रादेशिक बोर्डों, स्थानीय समितियों तथा प्रादेशिक और स्थानीय चिकित्सा प्रसुविधा परिषदों के सदस्यों को फीसों और भत्तों का संदायः
(iii) निगम के अधिकारियों और सेवकों के वेतनों, छुट्टी और पद-ग्रहणकाल के भत्तों, यात्रा भत्तों और प्रतिकर भत्तों, उपदानों और अनुकंपा भत्तों, पेन्शनों, भविष्य निधि या अन्य प्रसुविधा निधि में अभिदायों का संदाय और इस अधिनियम के उबन्धों को प्रभावी करने के प्रयोजन के लिए स्थापित कार्यालयों और अन्य सेवाओं की बाबत हुए व्यय की पूर्ति;
(iv) बीमाकृत व्यक्तियों के फायदे के लिए, और जहां चिकित्सा प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए विस्तारित की गई हो, वहां उनके कुटुम्बों के फायदे के लिए अस्पतालों, औषधालयों और अन्य संस्थाओं का स्थापन और अनुरक्षण तथा चिकित्सा और अन्य आनुषांगिक सेवाओं का उपबन्ध;
(v) बीमाकृत व्यक्तियों के फायदे के लिए, और जहां चिकित्सा प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए विस्तारित की गई हो, वहां उनके कुटुम्बों के लिए, उपबन्धित चिकित्सीय उपचार और परिचर्या के खर्च लेखे, जिसके अन्तर्गत किसी भवन और उपस्कर का खर्च आता है, किसी राज्य सरकार *** स्थानीय प्राधिकारी या किसी प्राइवेट निकाय या व्यष्टि को, किसी ऐसे करार के अनुसार अभिदायों का संदाय जो निगम द्वारा किया गया है;
(vi) निगम के लेखाओं की संपरीक्षा के, और उसकी आस्तियों और दायित्वों के मूल्यांकन के खर्च का (जिसके अन्तर्गत तत्सम्बन्धी सब व्यय आते हैं) चुकाया जाना;
(vii) इस अधिनियम के अधीन स्थापित कर्मचारी बीमा न्यायालयों के खर्चे का (जिसके अन्तर्गत तत्सम्बन्धी सब व्यय आते हैं) चुकाया जाना;
(viii) निगम या स्थायी समिति द्वारा, या निगम या स्थायी समिति द्वारा उस निमित्त सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए की गई किसी संविदा के अधीन किन्हीं राशियों का संदाय;
(ix) निगम के विरुद्ध या अपने कर्तव्य के निष्पादन में किए गए किसी कार्य के लिए उसके अधिकारियों या सेवकों में किसी के विरुद्ध हुई किसी न्यायालय या अधिकरण की डिक्री, आदेश या अधिनिर्णय के अधीन या निगम के विरुद्ध संस्थित या किए गए किसी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही या दावे के समझौते या परिनिर्धारण के अधीन राशियों का संदाय;
(x) इस अधिनियम के अधीन की गई किसी कार्रवाई से उद्भूत किन्हीं सिविल या दांडिक कार्यवाहियों को संस्थित करने या उनमें प्रतिरक्षा करने के खर्च और अन्य प्रभारों का चुकाया जाना;
(xi) बीमाकृत व्यक्तियों के स्वास्थ्य और उनके कल्याण की अभिवृद्धि के और उन बीमाकृत व्यक्तियों के, जो निःशक्त या क्षतिग्रस्त हो गए हैं, पुनर्वासन और पुनर्नियोजन के उपायों पर, विहित परिसीमाओं के अन्दर, व्यय चुकाना; तथा
(xii) अन्य ऐसे प्रयोजन जो केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से निगम द्वारा प्राधिकृत किए जाएं ।
[28क. प्रशासनिक व्यय-ऐसे व्ययों के प्रकार, जिन्हें प्रशासनिक व्यय कहा जा सकेगा और निगम की आय की वह प्रतिशतता, जो ऐसे व्ययों के लिए खर्च की जा सकेगी उतनी होगी जितनी केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए और निगम, अपने प्रशासनिक व्ययों को, केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रकार विहित परिसीमा के भीतर रखेगा ।]
29. सम्पत्ति धारण करना आदि-(1) निगम ऐसी शर्तों के अध्यधीन रहते हुए भी, जैसी केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं, जंगम और स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति का अर्जन और धारण कर सकेगा, किसी ऐसी जंगम और स्थावर सम्पत्ति को, जो उसमें निहित हो गई हो या जिसे उसने अर्जित कर लिया हो, बेच या अन्यथा अन्तरित कर सकेगा और उन प्रयोजनों के लिए आवश्यक सभी बातें कर सकेगा, जिनके लिए निगम स्थापित हुआ है ।
(2) ऐसी शर्तों के अध्यधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं, निगम समय-समय पर ऐसे धनों को विनिहित कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन उचित रूप में चुकाए जाने योग्य व्ययों के लिए तुरन्त अपेक्षित नहीं है और यथापूर्वोक्त अध्यधीन रहते हुए, समय-समय पर ऐसे विनिधानों को पुनर्विहित या आप्त कर सकेगा ।
(3) निगम, केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से और ऐसे निबन्धनों पर, जो उसके द्वारा विहित किए जाए, उधार ले सकेगा और ऐसे उधारों को चुकाने के लिए उपाय कर सकेगा ।
(4) निगम अपने कर्मचारिवृन्द या उनके किसी वर्ग के फायदे के लिए ऐसी भविष्य निधि या अन्य प्रसुविधा निधि गठित कर सकेगा जैसी वह ठीक समझे ।
30. सम्पत्ति का निगम में निहित होना-निगम के स्थापन से पूर्व अर्जित सब सम्पत्ति निगम में निहित होगी, और इस निमित्त व्युत्पन्न सभी आय और उपगत सभी व्यय निगम की बहियों में चढ़ा लिए जाएंगे ।
31. [केन्द्रीय सरकार द्वारा किया गया व्यय ऋण के रूप में समझा जाएगा ।]-कर्मचारी राज्य बीमा (संशोधन) अधिनियम, 1966 (1966 का 44) की धारा 12 द्वारा (17-7-1967) से निरसित ।
32. बजट प्राक्कलन-निगम हर वर्ष एक बजट तैयार करेगा जिसमें अधिसम्भाव्य प्राप्तियां और ऐसे व्यय दर्शित किए जाएंगे जिन्हें आगामी वर्ष के दौरान उपगत करने की उसकी प्रस्थापना है, और बजट की एक प्रति केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन के लिए ऐसी तारीख से पूर्व भेजेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उस निमित्त नियत की जाए । बजट में ऐसे उपबन्ध अन्तर्विष्ट होंगे जो निगम द्वारा उपगत दायित्वों के निर्वहन के लिए और कामकाज-अतिशेष बनाए रखने के लिए केन्द्रीय सरकार की राय में यथायोग्य हों ।
33. लेखा-निगम अपनी आय और व्यय का सही लेखा ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से रखेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए ।
[34. संपरीक्षा-(1) निगम के लेखाओं की संपरीक्षा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा प्रतिवर्ष की जाएगी और ऐसी संपरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा उपगत कोई व्यय निगम द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा ।
(2) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और निगम के लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को, ऐसी संपरीक्षा के संबंध में वही अधिकार तथा विशेषाधिकार और प्राधिकार होंगे जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकारी लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में हैं और विशिष्टतया, बहियों, लेखाओं, संबंधित वाउचरों, तथा अन्य दस्तावेजों और कागजपत्रों के पेश किए जाने की मांग करने और निगम के कार्यालयों में से किसी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा ।
(3) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथा प्रमाणित निगम के लेखे उन पर संपरीक्षा रिपोर्ट सहित, निगम को भेजे जाएंगे जो उन्हें, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणियों के साथ, केन्द्रीय सरकार को भेजेगा ।]
35. वार्षिक रिपोर्ट-निगम अपने काम और क्रियाकलाप की वार्षिक रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को भेजेगा ।
36. बजट, संपरीक्षित लेखाओं और वार्षिक रिपोर्ट का संसद् के समक्ष रखा जाना-वार्षिक रिपोर्ट, निगम के संपरीक्षित लेखा, उन पर [धारा 34 के अधीन [भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट और ऐसी रिपोर्ट पर निगम की टिप्पणियों सहित] और निगम द्वारा अन्तिम रूप से यथा अंगीकृत बजट [संसद्] के समक्ष रखे जाएंगे *** ।
37. आस्तियों और दायित्वों का मूल्यांकन-निगम अपनी आस्तियों और दायित्वों का मूल्यांकन केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से नियुक्त मूल्यांकक द्वारा [तीन वर्ष] के अन्तरालों पर कराएगाः
परन्तु केन्द्रीय सरकार यह निदेश दे सकेगी कि मूल्यांकन ऐसे अन्य समयों पर भी कराया जाए जिन्हें वह आवश्यक समझे ।
अध्याय 4
अभिदाय
38. सभी कर्मचारियों का बीमा किया जाना-उन कारखानों या स्थापनों के, जिन्हें यह अधिनियम लागू है, सभी कर्मचारियों का बीमा इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए ऐसी रीति से किया जाएगा जैसी इस अधिनियम द्वारा उपबन्धित है ।
39. अभिदाय-(1) किसी कर्मचारी की बाबत इस अधिनियम के अधीन संदेय अभिदाय में नियोजक द्वारा संदेय अभिदाय (जिसे इसमें इसके पश्चात् नियोजक-अभिदाय कहा गया है) और कर्मचारी द्वारा संदेय अभिदाय (जिसे इसमें इसके पश्चात् कर्मचारी-अभिदाय कहा गया है) समाविष्ट होगा और निगम को दिया जाएगा ।
(2) अभिदाय प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट दरों पर, और उस दशा में जिसमें इस अधिनियम के उपबन्ध किसी कारखाने या स्थापन के या कारखानों या स्थापनों के किसी वर्ग के किसी कर्मचारी या कर्मचारियों के वर्ग को इस प्रकार लागू किए गए हैं कि वे इस अधिनियम के अधीन प्रसुविधाओं में से कुछ प्रसुविधाओं से अपवर्जित हो जाते हैं, ऐसी दरों पर, जैसी निगम द्वारा इस निमित्त नियत करे, दिए जाएंगे ।
[(3) किसी कर्मचारी के संबंध में मजदूरी कालावधि वह इकाई होगी जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन के सभी अभिदाय संदेय होंगे ।]
(4) हर एक [मजदूरी कालावधि] की बाबत संदेय अभिदाय मामूली तौर पर उस 3[मजदूरी कालावधि] के अंतिम दिन शोध्य होंगे, और जहां कि कोई कर्मचारी 3[मजदूरी कालावधि] के भाग के लिए नियोजजित है, या एक ही 3[मजदूरी कालावधि] के दौरान दो या अधिक नियोजकों के अधीन नियोजित है, वहां अभिदाय ऐसे दिनों को शोध्य होंगे जो विनियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
[(5) (क) यदि इस अधिनियम के अधीन संदेय कोई अभिदाय प्रधान नियोजक द्वारा उस तारीख को संदत्त नहीं किया जाता है जिसको ऐसा अभिदाय देय हो गया है तो वह प्रतिवर्ष बारह प्रतिशत की दर से या ऐसी उच्चतर दर से, जो विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, साधारण ब्याज का संदाय उसके वास्तविक संदाय की तारीख तक करने के दायित्वधीन होगाः
परन्तु विनियमों में विनिर्दिष्ट उच्चतर ब्याज, किसी अनुसूचित बैंक द्वारा प्रभारित ब्याज की उधार देने वाली दर से अधिक नहीं होगा ।
(ख) खंड (क) के अधीन वसूलीय कोई ब्याज, भू-राजस्व की बकाया के रूप में या धारा 45ग से धारा 45झ के अधीन वसूल किया जा सकेगा ।
स्पष्टीकरण-इस अधिनियम में “अनुसूचित बैंक" से वह बैंक अभिप्रेत है जो भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की दूसरी अनुसूची के अंतर्गत तत्समय सम्मिलित है ।]
40. प्रथमतः प्रधान नियोजक द्वारा अभिदाय का दिया जाना-(1) प्रधान नियोजक हर कर्मचारी की बाबत, चाहे वह कर्मचारी सीधे उसके द्वारा नियोजित हो, या अव्यवहित नियोजक द्वारा या उसके माध्यम से नियोजित हो, नियोजक-अभिदाय और कर्मचारी-अभिदाय दोनों देगा ।
(2) किसी अन्य अधिनियमिति में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु इस अधिनियम के उपबन्धों के और तद्धीन बनाए गए विनियमों के, यदि कोई हों, अध्यधीन रहते हुए, प्रधान नियोजक सीधे अपने द्वारा नियोजित कर्मचारी की दशा में (जो छूट-प्राप्त कर्मचारी न हो) कर्मचारी-अभिदाय कर्मचारी से उसकी मजदूरी में से कटौती करके, न कि अन्यथा, वसूल करने का हकदार होगाः
परन्तु ऐसी कोई भी कटौती, ऐसी मजदूरी से जो उस कालावधि या कालावधि के भाग से सम्बन्धित है जिसकी बाबत अभिदाय संदेय है, भिन्न किसी मजदूरी में से, या उस कालावधि के लिए कर्मचारी-अभिदाय के रूप में राशि से अधिक, नहीं की जाएगी ।
(3) किसी तत्प्रतिकूल संविदा के होते हुए भी, न तो प्रधान नियोजक और न अव्यवहित नियोजक ही नियोजक-अभिदाय कर्मचारी को संदेय मजदूरी में से काटने का या उससे अन्यथा वसूल करने का हकदार होगा ।
(4) किसी ऐसी राशि के बारे में, जो प्रधान नियोजक द्वारा इस अधिनियम के अधीन मजदूरी में से काट ली गई है, यह समझा जाएगा कि कर्मचारी ने उसे वह राशि ऐसा अभिदाय देने के प्रयोजनार्थ नियोजक को सौंपी है जिसकी बाबत वह काटी गई थी ।
(5) प्रधान नियोजक निगम को अभिदाय प्रेषित करने के व्यय वहन करेगा ।
41. अव्यवहित नियोजक से अभिदाय की वसूली-(1) वह प्रधान नियोजक, जिसने किसी अव्यवहित नियोजक द्वारा या उसके माध्यम से नियोजित कर्मचारी की बाबत अभिदाय दिया है, इस प्रकार दिए गए अभिदाय की रकम (अर्थात् नियोजक अभिदाय तथा यदि कोई हो तो कर्मचारी-अभिदाय) उस अव्यवहित नियोजक से, या तो किसी ऐसी रकम में से कटौती करके जो प्रधान नियोजक द्वारा किसी संविदा के अधीन उसे संदेय है, या उस अव्यवहित नियोजक द्वारा संदेय ऋण के रूप में वसूल करने का हकदार होगा ।
[(1क) अव्यवहित नियोजक, विनियमों में यथा उपबन्धित अपने द्वारा या अपने माध्यम से नियोजित कर्मचारियों का एक रजिस्टर रखेगा और उसे उपधारा (1) के अधीन संदेय किसी रकम के परिनिर्धारण के पूर्व, प्रधान नियोजक को प्रस्तुत करेगा ।
(2) उपधारा (1) निर्दिष्ट दशा में वह अव्यवहित नियोजक, कर्मचारी-अभिदाय, अपने द्वारा या अपने माध्यम से नियुक्त कर्मचारी से, मजदूरी में से कटौती करके, न कि अन्यथा धारा 40 की उपधारा (2) के परन्तुक में विनिर्दिष्ट शर्तों के अध्यधीन रहते हुए, वसूल करने का हकदार होगा ।
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42. अभिदायों के संदाय के सम्बन्ध में साधारण उपबन्ध-(1) कोई भी कर्मचारी-अभिदाय ऐसे कर्मचारी द्वारा या उसकी ओर से संदेय नहीं होगा जिसकी औसत दैनिक मजदूरी [मजदूरी कालावधि के दौरान [छह रुपए] से कम है] ।
स्पष्टीकरण-कर्मचारी की औसत दैनिक मजदूरी की गणना [प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट रीति से] की जाएगी ।
(2) अभिदाय (नियोजक-अभिदाय और कर्मचारी-अभिदाय दोनों ही) प्रधान नियोजक द्वारा ऐसे हर एक [मजदूरी कालावधि] के लिए संदेय होंगे जिस [पूरे सप्ताह या जिसके भाग की बाबत मजदूरी कर्मचारी को संदेय है, न कि अन्यथा ।]
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43. अभिदाय के संदाय का ढंग-इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि निगम इस अधिनियम के अधीन संदेय अभिदायों के संदाय और संग्रहण से सम्बद्ध या उसके आनुषंगिक किसी भी विषय के लिए विनियम बना सकेगा और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे विनियम निम्नलिखित के लिए उपबन्ध कर सकेंगेः-
(क) अभिदाय के संदाय की रीति और समय;
(ख) पुस्तकों और कार्डों पर चिपकाए गए या छापित आसंजक या अन्य स्टाम्पों द्वारा, या अन्यथा, अभिदायों का संदाय तथा उस रीति का जिसमें, उन समयों का जब, और उन शर्तों का जिनके अधीन ऐसे स्टाम्प चिपकाए या छापित किए जाने हैं, विनियमित किया जाना;
[(खख) वह तारीख जिस तक अभिदाय संदत्त किए जाने का साक्ष्य निगम को प्राप्त होना है;]
(ग) पुस्तकों में या कार्डों पर उन बीमाकृत व्यक्तियों की दशा में, जिनसे ऐसी पुस्तकें और कार्ड सम्बन्धित हैं, संदत्त अभिदायों और वितरित प्रसुविधाओं की विशिष्टियों की प्रविष्टि; तथा
(घ) पुस्तकों या कार्डों का निर्गत किया जाना, विक्रय, अभिरक्षा, पेश किया जाना, निरीक्षण और परिदान और उन पुस्तकों या कार्डों का प्रतिस्थापन, जो खो गए हैं, विनष्ट हो गए हैं, या विरूपित हो गए हैं ।
[44. कतिपय दशाओं में नियोजकों द्वारा विवरणियों का दिया जाना और रजिस्टरों का रखा जाना-(1) हर प्रधान नियोजक और अव्यवहित नियोजक, अपने द्वारा नियोजित व्यक्तियों के संबंध में या किसी ऐसे कारखाने या स्थापन के संबंध में, जिसकी बाबत वह प्रधान या अव्यवहित नियोजक है, ऐसी विशिष्टियों को अन्तर्विष्ट रखने वाली और ऐसे प्रारूप में ऐसी विवरणियां, जैसी इस निमित्त बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाएं, निगम को या निगम के ऐसे अधिकारी को भेजेगा जिसे निगम निर्दिष्ट करे ।
(2) जहां किसी कारखाने या स्थापन की बाबत निगम के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि उपधारा (1) के अधीन विवरणी भेजी जानी चाहिए थी किन्तु इस प्रकार भेजी नहीं गई है वहां निगम कारखाने या स्थापन के भारसाधक किसी भी व्यक्ति से ऐसी विशिष्टियां देने की अपेक्षा कर सकेगा जिन्हें वह यह विनिश्चित करने के लिए निगम को समर्थ बनाने के प्रयोजनार्थ आवश्यक समझे कि कारखाना या स्थापन ऐसा कारखाना या स्थापन है या नहीं जिसे यह अधिनियम लागू है ।
(3) हर प्रधान और अव्यवहित नियोजक अपने कारखाने या स्थापन की बाबत ऐसे रजिस्टर और अभिलेख रखेगा जिनकी इस निमित्त बनाए गए विनियमों द्वारा अपेक्षा की जाए ।
45. [सामाजिक सुरक्षा अधिकारीट, उनके कृत्य और कर्तव्य-(1) निगम ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें वह ठीक समझे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ऐसी स्थानीय सीमाओं के भीतर, जिन्हें वह उन व्यक्तियों को समनुदिष्ट करे, 11[सामाजिक सुरक्षा अधिकारी] नियुक्त कर सकेगा ।
(2) निगम द्वारा उपधारा (1) के अधीन नियुक्त कोई भी [सामाजिक सुरक्षा अधिकारी] (जिसे इसमें इसके पश्चात् 1[सामाजिक सुरक्षा अधिकारी] कहा गया है) या निगम द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत उसका अन्य पदधारी धारा 44 में निर्दिष्ट किसी विवरणी में कथित विशिष्टियों में से किसी की शुद्धता के बारे में जांच करने के प्रयोजन के लिए या यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए कि इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी का अनुपालन हुआ है या नहीं-
(क) किसी भी प्रधान नियोजक या अव्यवहित नियोजक से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह उसे ऐसी जानकारी दे जैसी वह 1[सामाजिक सुरक्षा अधिकारी] या अन्य पदधारी इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए आवश्यक समझे; अथवा
(ख) किसी ऐसे कार्यालय, स्थापन, कारखाने या अन्य परिसर में जो ऐसे प्रधान नियोजक या अव्यवहित नियोजक के अधिभोग में हो किसी भी युक्तियुक्त समय में प्रवेश कर सकेगा और किसी ऐसे व्यक्ति से, जो उसका भारसाधक पाया जाता है, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह ऐसे 1[सामाजिक सुरक्षा अधिकारीट या अन्य पदधारी के समक्ष व्यक्तियों के नियोजन और मजदूरी के संदाय से सम्बद्ध ऐसे लेखा, पुस्तकें और अन्य दस्तावेजें, जैसी वह आवश्यक समझे, पेश करे और उसे उनकी परीक्षा करने दे, या उसे ऐसी जानकारी दे, जैसी वह आवश्यक समझे; अथवा
(ग) प्रधान नियोजक या अव्यवहित नियोजक, उसके अभिकर्ता या सेवक या उस व्यक्ति की, जो ऐसे कारखाने, स्थापन, कार्यालय या अन्य परिसर में पाया जाए, या उस व्यक्ति की, जिसके सम्बन्ध में उक्त 1[सामाजिक सुरक्षा अधिकारी] या अन्य पदधारी के पास यह विश्वास करने का युक्तियुक्त कारण हो कि वह कर्मचारी है या रह चुका है, पूर्वोक्त प्रयोजनों से सुसंगत विषय की बाबत परीक्षा कर सकेगा;
[(घ) ऐसे कारखाने, स्थापन, कार्यालय या अन्य परिसर में रखे गए किसी रजिस्टर, लेखापुस्तक या अन्य दस्तावेज की प्रतिलिपियां बना सकेगा, या उससे उद्धरण ले सकेगा;
(ङ) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा, जैसी विहित की जाएं ।]
(3) 1[सामाजिक सुरक्षा अधिकारी] ऐसे कृत्यों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा, जैसे निगम द्वारा प्राधिकृत किए जाएं या जैसे विनियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
[(4) निगम द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत निगम का कोई अधिकारी किसी सामाजिक सुरक्षा अधिकारी द्वारा किए गए निरीक्षण की शुद्धता और क्वालिटी का सत्यापन करने के प्रयोजन के लिए धारा 44 के अधीन प्रस्तुत किए गए अभिलेखों और विवरणियों का पुनःनिरीक्षण या परीक्षण निरीक्षण कर सकेगा ।
[45क. कतिपय दशाओं में अभिदायों का अवधारणा-(1) जहां किसी कारखाने या स्थापन की बाबत कोई भी विवरणियां, विशिष्टियां, रजिस्टर या अभिलेख धारा 44 के उपबन्धों के अनुसार न भेजे जाएं, न दिए जाएं या न रखे जाएं या किसी [सामाजिक सुरक्षा अधिकारी] या धारा 45 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट निगम के अन्य पदधारी को धारा 45 के अधीन के उसके कृत्यों का प्रयोग करने में या कर्तव्यों का निर्वहन करने में प्रधान या अव्यवहित नियोजक या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा [किसी रीति से रोका जाए], तो निगम उस कारखाने या स्थापन के कर्मचारियों की बाबत संदेय अभिदायों की रकम, उसे उपलब्ध जानकारी के आधार पर, आदेश द्वारा अवधारित कर सकेगाः
[परन्तु निगम द्वारा ऐसे कोई आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक कारखाना या स्थापन के प्रधान या अव्यवहित नियोजक या भारसाधक व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर न दे दिया गया हो :]
[पंरतु यह और कि निगम द्वारा उस तारीख से जिसको अभिदाय शोध्य हो जाएगा, पांच वर्ष से परे की अवधि की बाबत ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा ।]
(2) उपधारा (1) के अधीन निगम द्वारा किया गया आदेश निगम के धारा 75 के अधीन दावे का, या ऐसे आदेश द्वारा अवधारित रकम की धारा 45ख के अधीन भू-राजस्व की बकाया के तौर पर [या धारा 45ग से धारा 45झ तक के अधीन वसूली के लिएट पर्याप्त सबूत होगा ।
[45कक. अपील प्राधिकारी-यदि कोई नियोजक धारा 45क में निर्दिष्ट आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह ऐसे आदेश की तारीख से साठ दिन के भीतर इस प्रकार आदेशित अभिदाय का या अपने स्वयं के परिकलन के अनुसार अभिदाय का, इनमें से जो अधिक हो, पच्चीस प्रतिशत निगम के पास जमा करने के पश्चात्, विनियमों द्वारा यथा उपबन्धित अपील प्राधिकारी को अपील कर सकेगाः
परंतु यदि नियोजक अंतिम रूप से अपील में सफल हो जाता है तो निगम ऐसे जमा को नियोजक को ऐसे ब्याज के साथ वापस करेगा जो विनियम में विनिर्दिष्ट किया जाए ।]
45ख. अभिदायों की वसूली-इस अधिनियम के अधीन संदेय कोई भी अभिदाय भू-राजस्व की बकाया के तौर पर वसूल किया जा सकेगा ।]
[45ग. वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी करना-(1) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई रकम बकाया है, वहां प्राधिकृत अधिकारी अपने हस्ताक्षर से बकाया रकम विनिर्दिष्ट करते हुए एक प्रमाणपत्र वसूली अधिकारी को जारी कर सकेगा और वसूली अधिकारी, ऐसे प्रमाणपत्र प्राप्त होने पर, उसमें विनिर्दिष्ट रकम को, कारखाने या स्थापन से या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक से नीचे वर्णित एक या अधिक ढंग से वसूल करने के लिए अग्रसर होगाः-
(क) कारखाने या स्थापन या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक की जंगम या स्थावर संपत्ति की कुर्की और विक्रय;
(ख) नियोजक की गिरफ्तारी और कारागार में उसका निरोध;
(ग) यथास्थिति, कारखाने या स्थापन या, नियोजक की जंगम या स्थावर संपत्ति के प्रबन्ध के लिए रिसीवर की नियुक्तिः
परन्तु इस धारा के अधीन किसी संपत्ति की कुर्की और विक्रय प्रथमतः कारखाने या स्थापन की संपत्ति का किया जाएगा और जहां प्रमाणपत्र में विनिर्दिष्ट बकाया संपूर्ण रकम वसूल करने के लिए ऐसी कुर्की और विक्रय अपर्याप्त हैं वहां वसूली अधिकारी ऐसी बकाया रकम के संपूर्ण या किसी भाग की वसूली के लिए नियोजक की संपत्ति के विरुद्ध ऐसी कार्यवाही कर सकेगा ।
(2) प्राधिकृत अधिकारी, इस बात के होते हुए भी कि किसी अन्य ढंग से बकाया वसूल करने की कार्यवाही की गई है उपधारा (1) के अधीन प्रमाणपत्र जारी कर सकेगा ।
45घ. वसूली अधिकारी जिसे प्रमाणपत्र अग्रेषित किया जाना है-(1) प्राधिकृत अधिकारी धारा 45ग में निर्दिष्ट प्रमाणपत्र ऐसे वसूली अधिकारी को अग्रेषित कर सकेगा जिसकी अधिकारिता के भीतर नियोजक-
(क) अपना कारबार चलाता है या वृत्ति करता है या जिसकी अधिकारिता के भीतर उसके कारखाने या स्थापन का मुख्य स्थान स्थित है; या
(ख) निवास करता है या कारखाने या स्थापन अथवा प्रधान या अव्यवहित नियोजक की कोई जंगम या स्थावर संपत्ति स्थित है ।
(2) जहां किसी कारकाने या स्थापन या प्रधान अव्यवहित नियोजक की संपत्ति एक से अधिक वसूली अधिकारियों की अधिकारिता के भीतर है और वह वसूली अधिकारी, जिसे प्राधिकृत अधिकारी द्वारा प्रमाणपत्र भेजा जाता है,-
(क) अपनी अधिकारिता के भीतर जंगम या स्थावर संपत्ति के विक्रय द्वारा संपूर्ण रकम वसूल करने में समर्थ नहीं है; या
(ख) उसकी यह राय है कि संपूर्ण रकम या उसके किसी भाग की वसूली शीघ्र करने या सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ, ऐसा करना आवश्यक है,
वहां वह उस वसूली अधिकारी को, जिसकी अधिकारिता के भीतर कारखाना या स्थापन या प्रधान या अव्यवहित नियोजक की संपत्ति है या नियोजक निवास करता है, प्रमाणपत्र भेज सकेगा या जहां केवल रकम का एक भाग वसूल किया जाना है वहां केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित रीति और वसूल की जाने वाली रकम विनिर्दिष्ट करते हुए प्रमाणपत्र की प्रमाणित प्रतिलिपि भेज सकेगा, और तदुपरि वह वसूली अधिकारी भी इस धारा के अधीन देय रकम को वसूल करने के लिए इस प्रकार अग्रसर होगा मानो प्रमाणपत्र या उसकी प्रतिलिपि, वह प्रमाणपत्र है जो उसे प्राधिकृत अधिकारी द्वारा भेजी गई थी ।
45ङ. प्रमाणपत्र की विधिमान्यता और उसका संशोधन-(1) जब प्राधिकृत अधिकारी धारा 45ग के अधीन वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी करता है तो कारखाना या स्थापन या प्रधान या अव्यवहित नियोजक को यह स्वतंत्रता नहीं होगी कि वह वसूली अधिकारी के समक्ष रकम के सही होने के बारे में विरोध करें और वसूली अधिकारी द्वारा किसी अन्य आधार पर प्रमाणपत्र के संबंध में कोई आक्षेप भी ग्रहण नहीं किया जाएगा ।
(2) वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी किए जाने पर भी, प्राधिकृत अधिकारी को प्रमाणपत्र वापस लेने की या प्रमाणपत्र में किसी लेखन या गणित संबंधी भूल को, वसूली अधिकारी को सूचना भेजकर, सुधार करने की शक्ति होगी ।
(3) प्राधिकृत अधिकारी, वसूली अधिकारी को किसी प्रमाणपत्र को वापस लेने या रद्द करने के किन्हीं आदेशों को या उसके द्वारा उपधारा (2) के अधीन किए गए किसी सुधार की या धारा 45च की उपधारा (4) के अधीन किए गए किसी संशोधन की सूचना देगा ।
45च. प्रमाणपत्र के अधीन कार्यवाहियों को रोकना और उसका संशोधन करना या उसे वापस लेना-(1) इस बात के होते हुए भी कि किसी रकम की वसूली के लिए वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया है, प्राधिकृत अधिकारी रकम का संदाय करने के लिए समय अनुदत्त कर सकेगा और तदुपरि वसूली अधिकारी इस प्रकार अनुदत्त समय की समाप्ति तक उन कार्यवाहियों को रोक देगा ।
(2) जहां रकम की वसूली के लिए प्रमाणपत्र जारी किया गया है वहां प्राधिकृत अधिकारी ऐसे प्रमाणपत्र के जारी किए जाने के पश्चात् ऐसी किसी रकम के, जो संदत्त की गई हो या ऐसे समय के जो संदाय के लिए दिया गया हो, बारे में वसूली अधिकारी को सूचना देता रहेगा ।
(3) जहां उस रकम की मांग वाला आदेश, जिसकी वसूली के लिए प्रमाणपत्र जारी किया गया है, इस अधिनियम के अधीन अपील या अन्य कार्यवाहियों में उपांतरित कर दिया गया है और उसके परिणामस्वरूप मांग घटा दी जाती है किंतु वह आदेश इस अधिनियम के अधीन आगे कार्यवाही की जाने की विषय वस्तु है वहां प्राधिकृत अधिकारी प्रमाणपत्र की रकम के उतने भाग की वसूली जितना उक्त घटाए जाने से संबंधित है उस कालावधि के लिए रोक देगा जिसके लिए अपील या अन्य कार्यवाही लंबित रहती है ।
(4) जहां रकम की वसूली के लिए प्रमाणपत्र जारी किया गया है और बाद में बकाया मांग की रकम इस अधिनियम के अधीन अपील या अन्य कार्यवाही के परिणामस्वरूप घटा दी गई है, वहां प्राधिकृत अधिकारी, जब वह आदेश, जो ऐसी अपील या अन्य कार्यवाही की विषय-वस्तु था अंतिम और निश्चायक हो गया है, यथास्थिति, उस प्रमाणपत्र का संशोधन करेगा या उसे वापस ले लेगा ।
45छ. वसूली के अन्य ढंग-(1) धारा 45ग के अधीन वसूली अधिकारी को प्रमाणपत्र जारी किए जाने पर भी, महानिदेशक या निगम द्वारा प्राधिकृत अन्य कोई अधिकारी इस धारा में उपबंधित किसी एक या अधिक ढंग से रकम वसूल कर सकेगा ।
(2) यदि किसी व्यक्ति से किसी कारखाने या स्थापन या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक को, जिस पर बकाया है, कोई रकम शोध्य है तो महानिदेशक या निगम द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत्त कोई अन्य अधिकारी ऐसे व्यक्ति से इस अधिनियम के अधीन ऐसे कारखाने या स्थापन या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक से शोध्य बकाया की उक्त रकम से ऐसे कटौती करने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसा व्यक्ति ऐसी किसी अध्यपेक्षा का अनुपालन करेगा तथा इस प्रकार कटौती की गई राशि का संदाय निगम के खाते में करेगाः
परन्तु इस उपधारा की कोई बात सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 60 के अधीन सिविल न्यायालय की डिक्री के निष्पादन में कुर्की से छूटप्राप्त रकम के किसी भाग को लागू नहीं होगी ।
(3) (i) महानिदेशक या निगम द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी, किसी भी समय या समय-समय पर, लिखित सूचना द्वारा, किसी ऐसे व्यक्ति से, जिससे धन, कारखाने या स्थापन या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक को शोध्य है या, शोध्य हो सकता है, या किसी ऐसे व्यक्ति से, जो कारखाने या स्थापन या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक के लिए उसके मद्धे धन धारण करता है या बाद में धन धारण करे, यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह महानिदेशक को या तो धन के शोध्य होने पर तत्काल या धारण किए जाने पर या सूचना में विनिर्दिष्ट समय पर या उसके भीतर (जो धन शोध्य होने या धारण करने के पूर्व न हो) उतने धन का संदाय करे जितना बकाया के सम्बन्ध में कारखाने या स्थापन या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक से शोध्य रकम का संदाय करने के लिए पर्याप्त हैं या जब वह उस रकम के बराबर है या उससे कम है तो संपूर्ण धन का संदाय करे ।
(ii) इस उपधारा के अधीन सूचना किसी ऐसे व्यक्ति को जारी की जा सकेगी जो किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्ततः प्रधान या अव्यवहित नियोजक के लिए या उसके मद्धे कोई धन धारण करता है या बाद में धारण करे और इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, ऐसे खाते में संयुक्त धारकों के अंशों के बारे में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न हो, यह उपधारण की जाएगी कि वे बराबर हैं ।
(iii) सूचना की एक प्रति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक को, यथास्थिति, महानिदेशक को या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी को ज्ञात उसके अन्तिम पते पर और संयुक्त खाता होने की दशा में सभी संयुक्त धारकों को या महानिदेशक को या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी को ज्ञात उनके अन्तिम पतों पर अग्रेषित की जाएगी ।
(iv) इस उपधारा में जैसा अन्यथा उपबन्धित है, उसके सिवाय, ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसे इस उपधारा के अधीन सूचना दी जाती है, ऐसी सूचना का अनुपालन करने के लिए आबद्ध होगा और विशिष्टतया जहां ऐसी कोई सूचना किसी डाकघर, बैंक या बीमाकर्ता को जारी की जाती है वहां किसी नियम, पद्धति या अध्यपेक्षा के तत्प्रतिकूल होने पर भी, किसी पासबुक, निक्षेप रसीद, पालिसी या किसी अन्य दस्तावेज का, संदाय के पूर्व किसी प्रविष्टि, पृष्ठांकन या ऐसे ही किसी प्रयोजन के लिए पेश करना आवश्यक नहीं होगा ।
(v) किसी ऐसी सम्पत्ति के संबंध में, जिसके संबंध में इस उपधारा के अधीन कोई सूचना जारी की गई है, कोई दावा, जो सूचना की तारीख के पश्चात् उद्भूत होता है, सूचना में अन्तर्विष्ट किसी मांग के विरुद्ध शून्य होगा ।
(vi) जहां कोई ऐसा व्यक्ति, जिसे इस उपधारा के अधीन कोई सूचना भेजी गई है, शपथ पर यह कथन करके उसके संबंध में आक्षेप करता है कि मांग की गई राशि या उसका कोई भाग प्रधान या अव्यवहित नियोजक को देय नहीं है या वह प्रधान या अव्यवहित नियोजक के लिए या उसके मद्धे कोई धन धारण नहीं करता है वहां इस धारा की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह ऐसे व्यक्ति से, यथास्थिति, ऐसी कोई राशि या उसका भार संदत्त करने की अपेक्षा करती है, किन्तु यदि यह पता चलता है कि ऐसा कथन किसी तात्त्विक विशिष्टि में मिथ्या था तो ऐसा व्यक्ति, महानिदेशक या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी के प्रति, सूचना की तारीख को, प्रधान या अव्यवहित नियोजक के प्रति स्वयं अपने दायित्व की सीमा तक, या इस अधिनियम के अधीन देय किसी राशि के लिए प्रधान या अव्यवहित नियोजक के दायित्व की सीमा तक, इनमें से जो भी कम हो, व्यक्तिगत रूप से दायी होगा ।
(vii) महानिदेशक या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी किसी भी समय या समय-समय पर इस उपधारा के अधीन जारी की गई किसी सूचना को संशोधित या प्रतिसहृंत कर सकेगा या ऐसी सूचना के अनुसरण में कोई संदाय करने के लिए समय बढ़ा सकेगा ।
(viii) महानिदेशक या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी इस उपधारा के अधीन जारी की गई सूचना के अनुपालन में संदत्त की गई किसी रकम की रसीद देगा और इस प्रकार संदाय करने वाला व्यक्ति, इस प्रकार संदत्त रकम के परिमाण तक प्रधान या अव्यवहित नियोजक के प्रति अपने दायित्व से पूर्णतः उन्मोचित हो जाएगा ।
(ix) इस उपधारा के अधीन सूचना प्राप्त करने के पश्चात् प्रधान या अव्यवहित नियोजक के प्रति किसी दायित्व का उन्मोचन करने वाला कोई व्यक्ति, इस प्रकार उन्मोचित प्रधान या अव्यवहित नियोजक के प्रति अपने स्वयं के दायित्व के विस्तार तक या इस अधिनियम के अधीन देय किसी राशि के लिए प्रधान या अव्यवहित नियोजक के दायित्व के विस्तार तक, इनमें से जो भी कम हो, महानिदेशक या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी के प्रति व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होगा ।
(x) यदि वह व्यक्ति, जिसे इस उपधारा के अधीन सूचना भेजी गई है, महानिदेशक या इस प्रकार प्राधिकृत अधिकारी को उसके अनुसरण में संदाय करने में असफल रहता है, तो उसे सूचना में विनिर्दिष्ट रकम की बाबत व्यतिक्रमी प्रधान या अव्यवहित नियोजक समझा जाएगा और उस रकम की वसूली के लिए धारा 45ग से धारा 45च में उपबन्धित रीति से उसके विरुद्ध आगे कार्यवाही की जा सकेगी मानो वह उससे देय बकाया रकम है और सूचना का वही प्रभाव होगा जैसी वसूली अधिकारी द्वारा धारा 45ग के अधीन अपनी शक्तियों के प्रयोग में ऋण की कुर्की का होता है ।
(4) महानिदेशक या निगम द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी उस न्यायालय को, जिसकी अभिरक्षा में प्रधान या अव्यवहित नियोजक का धन है, ऐसे धन की समस्त रकम का या यदि वह देय रकम से अधिक है तो उतनी रकम का जितना देय रकम का उन्मोचित करने के लिए पर्याप्त है, उसे संदाय करने के लिए आवेदन कर सकेगा ।
(5) यदि केन्द्रीय सरकार द्वारा, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, महानिदेशक या निगम के किसी अधिकारी को इस प्रकार प्राधिकृत किया गया हो तो वह, किसी कारखाने या स्थापन से, या, यथास्थिति, प्रधान या अव्यवहित नियोजक से देय रकम की किसी बकाया की वसूली उसकी जंगम संपत्ति के करस्थम् और विक्रय द्वारा आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की तीसरी अनुसूची में अधिकथित रीति से कर सकेगा ।
45ज. आय-कर अधिनियम के कतिपय उपबंधों का लागू होना-आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की दूसरी अनुसूची और तीसरी अनुसूची के उपबंध तथा समय-समय पर यथा प्रवृत्त आय-कर (प्रमाणपत्र कार्यवाहियां) नियम, 1962, आवश्यक उपांतरणों सहित, इस प्रकार लागू होंगे मानो उक्त उपबंध और नियम आय-कर अधिनियम के बजाय इस अधिनियम के अधीन अभिदायों, ब्याजों या नुकसानियों की रकम की बकाया के प्रति निर्देशित होंः
परन्तु उक्त उपबंधों और नियमों में, “निर्धारिती" के प्रति किसी निर्देश का अर्थ यह लगाया जाएगा कि वह इस अधिनियम के अधीन किसी कारखाने या स्थापन अथवा प्रधान या अव्यवहित नियोजक के प्रति निर्देश है ।
45झ. परिभाषाएं-धारा 45 से धारा 45ज के प्रयोजनों के लिए,-
(क) प्राधिकृत अधिकारी" से महानिदेशक, बीमा आयुक्त, संयुक्त बीमा आयुक्त, प्रादेशिक निदेशक या ऐसा अन्य अधिकारी अभिप्रेत है जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, प्राधिकृत करे;
(ख) “वसूली अधिकारी" से केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या निगम का कोई ऐसा अधिकारी अभिप्रेत है जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के अधीन वसूली अधिकारी की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकृत करे ।
अध्याय 5
प्रसुविधाएं
46. प्रसुविधाएं-(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि [यथास्थिति, बीमाकृत व्यक्ति, उनके आश्रित या इसके पश्चात् वर्णित व्यक्ति] निम्नलिखित प्रसुविधाओं के हकदार होंगे, अर्थात्ः-
(क) “किसी भी बीमाकृत व्यक्ति को कालिक संदाय (जिन्हें इसमें इसके पश्चात् बीमारी-प्रसुविधा कहा गया है), उसकी ऐसी बीमारी की दशा में जिसे सम्यक् रूप से नियुक्त किसी चिकित्सा व्यवसायी ने [या किसी अन्य व्यक्ति ने, जो ऐसी अर्हताएं और अनुभव रखता हो, जैसे निगम विनियमों द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे] प्रमाणित किया हो;
[(ख) प्रसवावस्था की या गर्भपात की या गर्भावस्था, प्रसवावस्था, समयपूर्व शिशु-जन्म या गर्भपात से उद्भूत बीमारी की दशा में किसी ऐसी बीमाकृत स्त्री को कालिक संदाय (जिन्हें इसमें इसके पश्चात् प्रसूति-प्रसुविधा कहा गया है), जिसे विनियमों द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किए गए प्राधिकारी ने ऐसे संदायों के लिए पात्र प्रमाणित किया हो;]
(ग) किसी ऐसे बीमाकृत व्यक्ति को कालिक संदाय (जिन्हें इसमें इसके पश्चात् निःशक्तता-प्रसुविधा कहा गया है), जो इस अधिनियम के अधीन कर्मचारी के रूप में उसे हुई किसी नियोजन क्षति के परिणामस्वरूप हुई निःशक्तता से ग्रस्त है और जिसे विनियमों द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किए गए प्राधिकारी ने ऐसे संदायों के लिए पात्र प्रमाणित किया हो;
(घ) किसी ऐसे बीमाकृत व्यक्ति के, जो इस अधिनियम के अधीन के कर्मचारी के रूप में उसे हुई किसी नियोजन-क्षति के परिणामस्वरूप मर जाता है, ऐसे आश्रितों को कालिक संदाय (जिन्हें इसमें इसके पश्चात् आश्रित-प्रसुविधा कहा गया है), जो इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर के हकदार है; ***
(ङ) बीमाकृत व्यक्तियों के लिए चिकित्सीय उपचार और परिचर्या (जिसे इसमें इसके पश्चात् चिकित्सा-प्रसविधा कहा गया है); 1[तथा]
1[(च) मृत बीमाकृत व्यक्ति की अंत्येष्टि पर व्यय के लिए ऐसे बीमाकृत व्यक्ति के, जो मर गया है, कुटुम्ब के ज्येष्ठतम उत्तरजीवी सदस्य को, या जहां बीमाकृत व्यक्ति का कोई कुटुम्ब नहीं था या वह अपनी मृत्यु के समय अपने कुटुम्ब के साथ नहीं रह रहा था वहां उस व्यक्ति को, जो मृत बीमाकृत व्यक्ति की अंत्येष्टि पर वस्तुतः व्यय उपगत करता है, संदाय (जिसे [अंत्येष्टि व्यय] के रूप में जाना जाएगा) :]
परन्तु ऐसे संदाय की रकम [सौ रुपए] से अधिक नहीं होगी और ऐसे संदाय के लिए दावा बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु के तीन मास के भीतर, या ऐसी विस्तारित कालावधि के भीतर, जिसे निगम या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अधिकारी या प्राधिकारी अनुज्ञात करे, किया जाएगा ।
(2) निगम, समुचित सरकार की प्रार्थना पर और ऐसी शर्तों पर, जो विनियमों में अधिकथित की जाएं, चिकित्सा-प्रसुविधा बीमाकृत व्यक्ति के कुटुम्ब के लिए भी विस्तारित कर सकेगा ।
[47. बीमारी प्रसुविधा के लिए व्यक्ति कब पात्र होगा-कोई व्यक्ति किसी प्रसुविधा-कालावधि के दौरान होने वाली बीमारी के लिए बीमारी-प्रसुविधा का दावा करने के लिए उस दशा में अर्हित होगा जिसमें उसकी बाबत अभिदाय तत्संबंधी अभिदाय कालावधि के लिए दोनों की संख्या के आधे से अन्यून के लिए संदेय थे ।]
48. [नियोजन के लिए व्यक्ति कब उपलब्ध समझा जाएगा ।]-कर्मचारी राज्य बीमा (संशोधन) अधिनियम, 1966 (1966 का 44) की धारा 20 द्वारा निरसित ।
[49. बीमारी प्रसुविधा-वह व्यक्ति जो धारा 47 के अनुसार बीमारी-प्रसुविधा का दावा करने के लिए अर्हित है, इस अधिनियम के और यदि कोई विनियम हों तो उनके उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, ऐसी प्रसुविधा अपनी बीमारी कालावधि के लिए उन दरों पर पाने का हकदार होगा जो [प्रथम अनुसूची] में विनिर्दिष्ट हैं :
परन्तु जिस बीमारी के दौर के लिए बीमारी-प्रसुविधा अन्तिम बार दी गई थी उसके पश्चात् पन्द्रह दिन से अनधिक के अन्तराल पर के बीमारी के दौर की दशा में के सिवाय, वह [बीमारी के प्रथम दो दिनों के लिए] प्रसुविधा पाने का हकदार नहीं होगाः
[परन्तु यह और कि किन्हीं भी दो क्रमवर्ती प्रसुविधा-कालावधियों में बीमारी-प्रसुविधा किसी व्यक्ति को छप्पन दिन से अधिक के लिए नहीं दी जाएगी ।]
50. प्रसूति-प्रसुविधा- [(1) कोई बीमाकृत स्त्री ऐसी किसी प्रसवावस्था के लिए, जो किसी प्रसुविधा-कालावधि में हो या होनी प्रत्याशित हो, प्रसूति-प्रसुविधा का दावा करने के लिए उस दशा में अर्हित होगी जिसमें उसकी बाबत अभिदाय तत्संबंधी अभिदाय कालावधि के दिनों की संख्या के आधे से अन्यून के लिए संदेय थे ।]
(2) वह बीमाकृत स्त्री जो उपधारा (1) के अनुसार प्रसूति-प्रसुविधा का दावा करने के लिए अर्हित है, इस अधिनियम के और यदि कोई विनियम हों तो उनके उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, उन सभी दिनों के लिए जिनमें वह, उन बारह सप्ताहों की कालावधि के दौरान, जिनमें से प्रसवावस्था प्रत्याशित तारीख से पहले वाले छह से अधिक न होंगे, पारिश्रमिक के लिए काम नहीं करती हैं, ऐसी प्रसुविधा [प्रथम अनुसूची] में [विनिर्दिष्ट दैनिक दर पर] पाने की हकदार होगी :
[परन्तु जहां बीमाकृत स्त्री अपनी प्रसवावस्था के दौरान या अपनी ऐसी प्रसवावस्था के ठीक पश्चात्वर्ती छह सप्ताहों की कालावधि के दौरान, जिसके लिए वह प्रसूति-प्रसुविधा की हकदार है, कोई शिशु छोड़कर मर जाती है वहां प्रसूति-प्रसुविधा उस सम्पूर्ण कालावधि के लिए दी जाएगी, किन्तु यदि उक्त कालावधि के दौरान शिशु भी मर जाता है तो प्रसूति-प्रसुविधा शिशु की मृत्यु तक के दिनों के लिए, जिनमें मृत्यु का दिन भी सम्मिलित है, ऐसे व्यक्ति को, जिसे बीमाकृत स्त्री ने ऐसी रीति से नामनिर्दिष्ट किया हो जैसी विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाए और यदि ऐसा कोई नामनिर्देशिती न हो तो उसके विधिक प्रतिनिधि को, दी जाएगी ।]
[(3) वह बीमाकृत स्त्री जो उपधारा (1) के अनुसार प्रसूति-प्रसुविधा का दावा करने के लिए अर्हित है, गर्भपात की दशा में ऐसा सबूत पेश करने पर, जैसा विनियमों के अधीन अपेक्षित हो, प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट दरों पर प्रसूति-प्रसुविधा की उन सभी दिनों के लिए हकदार होगी जिनमें वह अपने गर्भपात की तारीख के ठीक पश्चात्वर्ती छह सप्ताहों की कालावधि के दौरान पारिश्रमिक के लिए काम नहीं करती ।
(4) वह बीमाकृत स्त्री, जो उपधारा (1) के अनुसार प्रसूति-प्रसुविधा का दावा करने के लिए अर्हित है, गर्भावस्था, प्रसवावस्था समय-पूर्व शिशु-जन्म या गर्भपात से उद्भूत बीमारी की दशा में, ऐसा सबूत पेश करने पर, जैसा विनियमों के अधीन अपेक्षित हो, उन सभी दिनों के लिए, जिनमें वह पारिश्रमिक के लिए काम नहीं करती इस अधिनियम के किन्हीं अन्य उपबन्धों के अधीन उसे संदेय प्रसूति-प्रसुविधा के अतिरिक्त, प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट दरों पर प्रसूति-प्रसुविधा की, एक मास से अनधिक की अतिरिक्त कालावधि के दौरान के उन सभी दिनों के लिए, जिनको वह पारिश्रमिक के लिए काम नहीं करती, हकदार होगी ।]]
[51. निःशक्तता प्रसुविधा-इस अधिनियम के [और यदि कोई विनियम हों तो उनके] उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि-
(क) वह व्यक्ति, जिसे (दुर्घटना वाले दिन को अपवर्जित करके) तीन दिन से अन्यून के लिए अस्थायी निशःक्तता हुई है, [ऐसी निःशक्तता की कालावधि के लिए प्रथम अनुसूची के उपबन्धों के अनुसार] कालिक संदाय का हकदार होगा;
(ख) वह व्यक्ति, जिसे कोई स्थायी निःशक्तता हुई है, चाहे वह पूर्ण हो या आंशिक, ऐसी निःशक्तता के लिए प्रथम अनुसूची के उपबन्धों के अनुसार कालिक संदाय का हकदार होगाः
[परन्तु जहां स्थायी निःशक्तता, चाहे वह पूर्ण हो या आंशिक किसी परिसीमित कालावधि के लिए अनन्तिम रूप से या अनन्तिम रूप से निर्धारित की गई है, वहां इस खंड के अधीन उपबंधित प्रसुविधा, यथास्थिति, उप परिसीमित कालावधि के लिए या जीवन भर के लिए संदेय होगी ।]
51क. नियोजन के अनुक्रम में उद्भूत दुर्घटना के बारे में उपधारणा-इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए [कर्मचारी] के अनुक्रम में उद्भूत दुर्घटना के बारे में तत्प्रतिकूल साक्ष्य के अभाव में यह उपधारणा की जाएगी कि वह दुर्घटना भी उस नियोजन से उद्भूत हुई है ।
51ख. विनियमों आदि के भंग में कार्य करते समय घटित होने वाली दुर्घटनाएं-इस बात के होते हुए भी कि दुर्घटना के समय [कर्मचारी] उसे लागू किसी विधि के उपबंधों के या उसके नियोजक द्वारा या उसकी ओर से दिए गए किन्हीं आदेशों के उल्लंघन में कार्य कर रहा है या अपने नियोजक के अनुदेशों के बिना कार्य कर रहा है, दुर्घटना के बारे में यह समझा जाएगा कि वह 1[कर्मचारी] के नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत हुई है, यदि-
(क) दुर्घटना इस प्रकार उद्भूत हुई उस दशा में समझी जाती जिसमें कि कार्य, यथास्थिति, यथापूर्वोक्त उल्लंघन में या अपपने नियोजक के अनुदेशों के बिना न किया गया होता; तथा
(ख) कार्य, नियोजक के व्यापार या कारबार के प्रयोजनार्थ और उसके संबंध में किया जाता है ।
51ग. नियोजक के परिवहन में यात्रा करते समय घटित दुर्घटनाएं-(1) [कर्मचारी] के किसी यान द्वारा अपने काम के स्थान को या उससे, नियोजक की अभिव्यक्त या विवक्षित अनुज्ञा से यात्री के रूप में यात्रा करते समय हुई दुर्घटना के बारे में, इस बात के होते हुए भी कि वह उस यान से यात्रा करने के लिए अपने नियोजक के प्रति किसी बाध्यता के अधीन नहीं है, यह समझा जाएगा कि वह दुर्घटना उसके नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत हुई है, यदि
(क) दुर्घटना इस प्रकार उद्भूत हुई उस दशा में समझी जाती जिसमें कि वह ऐसी बाध्यता के अधीन होता; तथा
(ख) दुर्घटना के समय, यान-
(i) नियोजक द्वारा या उसकी ओर से या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा चलाया जा रहा है जिसमें उसका उपबंध उस व्यक्ति के नियोजक के साथ किए गए किसी ठहराव के अनुसरण में किया है; तथा
(ii) लोक परिवहन सेवा के मामूली अनुक्रम में नहीं चलाया जा रहा है ।
(2) इस धारा में यान" के अन्तर्गत जलयान और वायुयान आते हैं ।
51घ. आपात का सामना करते समय हुई दुर्घटनाएं-2[कर्मचारी] को किसी ऐसे परिसर में या परिसर के निकट, जहां वह अपने नियोजन के व्यापार या कारबार के प्रयोजन के लिए तत्समय नियोजित है, हुई दुर्घटना के बारे में यह समझा जाएगा कि वह उसके नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत हुई है, यदि वह तब घटित होती है, जब वह उस परिसर में वास्तविक या अनुमित आपात होने पर, ऐसे व्यक्तियों को, जो क्षतिग्रस्त हैं या जोखिम में पड़ गए हैं, या वैसे समझे जाते हैं, या जिनके विषय में यह समझा जाता है कि वे संभवतः क्षतिग्रस्त हो गए हैं या जोखिम में पड़ गए हैं, बचाने, उन्हें सहायता देने या उनके संरक्षण के लिए, या सम्पत्ति को गम्भीर नुकसान से बचाने या ऐसा नुकसान कम से कम करने के लिए, कदम उठा रहा है ।ट
[51ङ. काम के स्थान पर आते समय और वापस जाते समय होने वाली दुर्घटनाएं-किसी कर्मचारी के साथ, कर्तव्य के लिए उसके निवास से नियोजन के स्थान तक आते समय या कर्तव्य पालन करने के पश्चात् नियोजन के स्थान से उसके निवास तक जाते समय होने वाली किसी दुर्घटना के बारे में यह समझा जाएगा कि वह नियोजन के अनुक्रम में हुई है यदि उन परिस्थितियों, समय और स्थान, जिन पर दुर्घटना हुई है और नियोजन के बीच संबंध स्थापित हो जाता है ।ट
[52. आश्रित-प्रसुविधा-(1) यदि कोई बीमाकृत व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन के कर्मचारी के रूप में उसे हुई किसी नियोजन-क्षति के परिणामस्वरूप मर जाता है (चाहे उसे उस क्षति की बाबत अस्थायी निशक्तता के लिए कोई कालिक संदाय मिलता था या नहीं) तो धारा 2 के खंड (6क) के [उपखंड (i)] और उपखंड (ii) में विनिर्दिष्ट उसके आश्रितों की आश्रित-प्रसुविधा [प्रथम अनुसूची के उपबंधों के अनुसार] संदेय होगी ।]
(2) यदि बीमाकृत व्यक्ति अपने पीछे यथापूर्वोक्त आश्रितों को छोड़े बिना मर जाता है तो, आश्रित-प्रसुविधा मृतक के अन्य आश्रितों को 6[प्रथम अनुसूची के उपबंधों के अनुसार] दी जाएगी ।
52क. उपजीविकाजन्य रोग-(1) यदि तृतीय अनुसूची के भाग क में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में नियोजित किसी कर्मचारी को कोई ऐसा रोग लग जाता है जो उस भाग में ऐसे उपजीविकाजन्य रोग के रूप में विनिर्दिष्ट है, जो उस नियोजन में विशिष्टतः होता है या यदि अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट नियोजन में छह मास से अन्यून की निरंतर कालावधि तक नियोजित कर्मचारी को कोई ऐसा रोग लग जाता है जो उस भाग में ऐसे उपजीविकाजन्य रोग के रूप में विनिर्दिष्ट है जो नियोजन में विशिष्टतः होता है या यदि उस अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट किसी नियोजन में, ऐसी निरंतर कालावधि तक जैसी निगम ऐसे हर एक नियोजन के बारे में विनिर्दिष्ट करे, नियोजित कर्मचारी को कोई ऐसा रोग लग जाता है जो उस भाग में ऐसे उपजीविकाजन्य रोग के रूप में विनिर्दिष्ट है, जो उस नियोजन में विशिष्टतः होता है तो जब कि तत्प्रतिकूल साबित न हो जाए, यह समझा जाएगा कि रोग का लग जाना नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत “नियोजन-क्षति" है ।
(2) (i) जहां, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8) की तृतीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट नियोजनों में, उक्त अधिनियम की धारा 3 की उपधारा (3) के अधीन उसमें निहित शक्तियों के आधार पर किसी भी वर्णन का नियोजन जोड़ देती है, वहां उक्त वर्णन का नियोजन और वे उपजीविकाजन्य रोग, जो उस उपधारा के अधीन ऐसे रोग के रूप में विनिर्दिष्ट हैं जो उस वर्णन के नियोजन में विशिष्टतः होते हैं, तृतीय अनुसूची के भाग समझे जाएंगे;
(ii) खंड (त्) के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, निगम, ऐसा करने के अपने आशय की कम से कम तीन मास की सूचना, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा देने के पश्चात् वैसी ही अधिसूचना द्वारा किसी भी वर्णन के नियोजन को तृतीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट नियोजनों में जोड़ सकेगा और इस प्रकार जोड़े गए नियोजनों की दशा में उन रोगों को विनिर्दिष्ट करेगा, जो इस धारा के प्रयोजनों के लिए क्रमशः उन नियोजनों में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग समझे जाएंगे और तदुपरि इस अधिनियम के उपबंध ऐसे लागू होंगे मानो इस अधिनियम द्वारा यह घोषित किया गया था कि वे रोग उन नियोजनों में विशिष्टतः होने वाले उपजीविकाजन्य रोग हैं ।
(3) उपधाराओं (1) और (2) द्वारा यथा उपबंधित के सिवाय, किसी रोग के लिए कोई भी प्रसुविधा कर्मचारी को तब तक संदेय न होगी जब तक रोग उसके नियोजन से और उसके अनुक्रम में उद्भूत दुर्घटना द्वारा हुई किसी विनिर्दिष्ट क्षति के फलस्वरूप प्रत्यक्षतः हुआ न माना जा सकता हो ।
(4) धारा 51क के उपबंध उन मामलों को लागू नहीं होंगे जिन्हें यह धारा लागू होती है ।]
[53. किसी अन्य विधि के अधीन प्रतिकर या नुकसानी प्राप्त करने या वसूल करने के विरुद्ध वर्जन-बीमाकृत व्यक्ति या उसके आश्रित, इस अधिनियम के अधीन के कर्मचारी के रूप में बीमाकृत व्यक्ति को हुई नियोजन-क्षति की बाबत कर्मकार प्रतिकर अधिनियम, 1923 (1923 का 8), या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन, या अन्यथा, कोई प्रतिकर या नुकसानी, बीमाकृत व्यक्ति के नियोजक से या किसी अन्य व्यक्ति से प्राप्त करने या वसूल करने के हकदार नहीं होंगे ।]
[54. निःशक्तता के प्रश्न का अवधारण-यह प्रश्न कि-
(क) सुसंगत दुर्घटना के परिणामस्वरूप स्थायी निःशक्तता हुई है या नहीं, अथवा
(ख) उपार्जन-सामर्थ्य की हानि का परिणाम अनंतिम रूप से निर्धारित किया जा सकता है या अन्तिम रूप से, अथवा
(ग) उपार्जन-सामर्थ्य की हानि के अनुपात का निर्धारण अनन्तिम है या अन्तिम, अथवा
(घ) अनंतिम निर्धारण की दशा में ऐसा निर्धारण कितनी अवधि के लिए प्रभावी रहेगा,
विनियमों के उपबंधों के अनुसार गठित चिकित्सक बोर्ड द्वारा अवधारित किया जाएगा और ऐसा प्रश्न इसमें पश्चात् “निःशक्तता का प्रश्न" कहा जाएगा ।
54क. चिकित्सक बोर्डों को निर्देश और चिकित्सा अपील अधिकरणों और कर्मचारी बीमा न्यायालयों को अपील-(1) स्थायी निःशक्तता-प्रसुविधा के लिए किसी बीमाकृत व्यक्ति का मामला निःशक्तता के प्रश्न को अवधारित करने के लिए निगम द्वारा चिकित्सक बोर्ड को निर्देशित किया जाएगा और यदि, उस या किसी उत्तरवर्ती निर्देश पर अनन्तिम रूप से यह निर्धारित कर लिया जाता है कि बीमाकृत व्यक्ति की उपार्जन-सामर्थ्य की कितनी हानि हुई है तो वह प्रश्न उस कालावधि की जो अनन्तिम निर्धारण में विचार में ली गई थी, समाप्ति के अनुपरांत पुनः उसी प्रकार चिकित्सक बोर्ड को निर्देशित किया जाएगा ।
(2) यदि चिकित्सक बोर्ड के विनिश्चय से बीमाकृत व्यक्ति का या निगम का समाधान नहीं होता है तो बीमाकृत व्यक्ति या निगम विहित रीति से और विहित समय के भीतर-
(i) विनियमों के उपबंधों के अनुसार गठित चिकित्सा अपील अधिकरण को अपील कर सकेगा और उसे कर्चचारी बीमा न्यायालय को विहित रीति से और विहित समय के भीतर आगे अपील करने का अधिकार भी होगा, अथवा
(ii) कर्मचारी बीमा न्यायालय को सीधे अपील कर सकेगाः]
[परंतु इस उपधारा के अधीन किसी बीमाकृत व्यक्ति द्वारा कोई अपील उस दशा में नहीं होगी जिसमें ऐसे व्यक्ति ने चिकित्सक बोर्ड के विनिश्चय के आधार पर निःशक्तता-प्रसुविधा के संराशीकरण के लिए आवेदन किया है और ऐसी प्रसुविधा का संराशित मूल्य प्राप्त कर लिया है;
परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन निगम द्वारा कोई अपील उस दशा में नहीं होगी जिसमें निगम ने, चिकित्सक बोर्ड के विनिश्चय के आधार पर निःशक्तता-प्रसुविधा का संराशित मूल्य संदत्त कर दिया है ।]
[55. चिकित्सक बोर्ड या चिकित्सा अपील अधिकरण द्वारा विनिश्चयों का पुनर्विलोकन-(1) इस अधिनियम के अधीन चिकित्सक बोर्ड या चिकित्सा अपील अधिकरण के किसी भी विनिश्चय का किसी भी समय, यथास्थिति, चिकित्सीय बोर्ड या चिकित्सा अपील अधिकरण द्वारा उस दशा में पुनर्विलोकन किया जा सकेगा जब उसने नए साक्ष्य द्वारा यह समाधान कर लिया हो कि विनिश्चय कर्मचारी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी तात्त्विक तथ्य के अप्रकटन या दुर्व्यपदेशन (चाहे अप्रकटन या दुर्व्यपदेशन कपटपूर्ण रहा हो या नहीं) के परिणामस्वरूप दिया गया था ।
(2) सुसंगत नियोजन-क्षति के परिणामस्वरूप कितनी निःशक्तता हुई है इस बात के निर्धारण का भी चिकित्सक बोर्ड द्वारा उस दशा में पुनर्विलोकन किया जा सकेगा जब कि उसने यह समाधान कर लिया हो कि निर्धारण के पश्चात् से सुसंगत क्षति के परिणामों में सारवान् और अनवेक्षित अपवृद्धि हुई है :
परन्तु इस उपधारा के अधीन निर्धारण का पुनर्विलोकन नहीं होगा जब तक चिकित्सक बोर्ड की यह राय न हो कि निर्धारण द्वारा विचार में ली गई कालावधि को और पूर्वोक्त किसी अपवृद्धि की अधिसम्भाव्य अस्तित्वावधि को ध्यान में रखते हुए उसका पुनर्विलोकन न करने से सारवान् अन्याय होगा ।
(3) चिकित्सा अपील अधिकरण की इजाज़त के बिना निर्धारण का, उसकी तारीख से पांच वर्ष के पूर्व या अनंतिम निर्धारण की दशा में छह मास के पूर्व किए गए किसी आवेदन पर उपधारा (2) के अधीन पुनर्विलोकन न किया जाएगा और ऐसे पुनर्विलोकन पर उस कालावधि में, जो किसी पुनरीक्षित निर्धारण द्वारा विचार में ली जाएगी, आवेदन की तारीख के पूर्व की कोई कालावधि सम्मिलित नहीं होगी ।
(4) इस धारा के पूर्वगामी उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, चिकित्सक बोर्ड पुनर्विलोकन के मामले पर कार्यवाही किसी भी ऐसी रीति से कर सकेगा जिसमें वह उसे मूल निर्देश होने पर कर सकता था, और विशिष्टतः पुनर्विलोकनाधीन निर्धारण के अन्तिम होते हुए भी अनंतिम निर्धारण कर सकेगा, और धारा 54क के उपबंध इस धारा के अधीन के पुनर्विलोकन के आवेदन को और ऐसे आवेदन के संबंध में चिकित्सक बोर्ड के विनिश्चय को ऐसे ही लागू होंगे जैसे वे उस धारा के अधीन निःशक्तता-प्रसुविधा के किसी मामले की और ऐसे मामले के संबंध में चिकित्सक बोर्ड के विनिश्चय को लागू होते हैं ।
55क. आश्रित-प्रसुविधा का पुनर्विलोकन-(1) इस अधिनियम के अधीन आश्रित-प्रसुविधा अधिनिर्णीत करने वाली किसी भी विनिश्चय का किसी भी समय निगम द्वारा उस दशा में पुनर्विलोकन किया जा सकेगा जब उसने नए साक्ष्य द्वारा यह समाधान करा लिया हो कि विनिश्चय दावेदार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी तात्त्विक तथ्य के अप्रकटन या दुर्व्यपदेशन के (चाहे अप्रकटन या दुर्व्यपदेशन कपटपूर्ण रहा हो या नहीं) परिणामस्वरूप दिया गया था या यह कि वह विनिश्चय किसी जन्म या मृत्यु के कारण या दावेदार के विवाह या पुनर्विवाह के कारण या अंग-शैथिल्य का अन्त हो जाने के कारण या दावेदार द्वारा अठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर लिए जाने पर अब ऐसा नहीं रह गया है जो इस अधिनियम के अनुसार हो ।
(2) इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, निगम यथापूर्वोक्त पुनर्विलोकन पर यह निदेश दे सकेगा कि आश्रित-प्रसुविधा चालू रखी जाए, बढ़ा दी जाए, घटा दी जाए या बन्द कर दी जाए ।]
56. चिकित्सा-प्रसुविधा-(1) बीमाकृत व्यक्ति या (जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उसके कुटुम्ब के लिए भी विस्तारित की गई है वहां) उसके कुटुम्ब का कोई सदस्य, जिसकी दशा में चिकित्सीय उपचार और परिचर्या की अपेक्षा करती है, चिकित्सा-प्रसुविधा पाने का हकदार होगा ।
(2) ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा या तो किसी अस्पताल या औषधालय, क्लिनिक या अन्य संस्था में बाह्य रोगी के रूप में उपचार और परिचर्या के रूप में या बीमाकृत व्यक्ति के घर पर जाकर या किसी अस्पताल या अन्य संस्था में अन्तःरोगी के रूप में उपचार के रूप में दी जाएगी ।
(3) कोई व्यक्ति, किसी [ऐसी कालावधि] के दौरान, चिकित्सा-प्रसुविधा का हकदार होगा जिसके लिए उसकी बाबत अभिदाय संदेय है या जिसमें वह बीमारी-प्रसुविधा या प्रसूति-प्रसुविधा का दावा करने के लिए अर्हित है [या जिसमें वह ऐसी निःशक्तता-प्रसुविधा प्राप्त करता है जो उसे विनियमों के अधीन चिकित्सक-प्रसुविधा पाने के लिए निर्हकित नहीं करतीः]
परन्तु ऐसे व्यक्ति को, जिसकी बाबत अभिदाय इस अधिनियम के अधीन संदेय नहीं रह गया है, ऐसी कालावधि के लिए और ऐसी प्रकृति की चिकित्सा-प्रसुविधा अनुज्ञात की जा सकेगी, जैसी विनियमों के अधीन उपबंधित की जाएः
[परन्तु यह और कि ऐसा बीमाकृत व्यक्ति, जिसका बीमा योग्य नियोजन स्थायी निःशक्तता के कारण समाप्त हो जाता है, अभिदाय के संदाय और ऐसी अन्य शर्तों के, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं, अधीन रहते हुए, उस तारीख तक चिकित्सा-प्रसुविधा प्राप्त करता रहेगा जिसको वह अधिवर्षिता की आयु प्राप्त करने पर नियोजन में नहीं रह जाता यदि उसे ऐसी स्थायी निःशक्तता नहीं हुई होतीः
[परंतु यह भी कि कोई ऐसा बीमाकृत व्यक्ति जिसने अधिवर्षिता की आयु प्राप्त कर ली है, ऐसा कोई व्यक्ति जो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम के अधीन सेवानिवृत्त हो जाता है या समयपूर्व सेवानिवृत्ति ले लेता है और उसकी पत्नी या उसका पत्नी अभिदाय के संदाय और ऐसी अन्य शर्तों के, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं, अधीन रहते हुए, चिकित्सा-प्रसुविधाएं प्राप्त करने के पात्र होंगे ।]
स्पष्टीकरण-इस धारा में, किसी बीमाकृत व्यक्ति के संबंध में, “अधिवर्षिता" से अभिप्रेत है उस व्यक्ति द्वारा उस आयु का प्राप्त किया जाना जो सेवा संवाद या सेवा शर्तों में उस आयु के रूप में नियत है जिसके प्राप्त करने पर वह बीमा योग्य नियोजन में नहीं रह जाएगा या जहां ऐसी कोई आयु नियत नहीं है और वह व्यक्ति अब बीमा योग्य नियोजन में नहीं है, वहां साठ वर्ष की आयु ।]
57. चिकित्सा-प्रसुविधा का पैमाना-(1) बीमाकृत व्यक्ति और (जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उसके कुटुम्ब के लिए भी विस्तारित की गई है) वहां उसका कुटुम्ब केवल ऐसे प्रकार की और ऐसे पैंमाने पर चिकित्सा-प्रसुविधा पाने का हकदार होगा जो राज्य सरकार या निगम द्वारा उपबंधित की जाए, और बीमाकृत व्यक्ति को या जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उसके कुटुम्ब के लिए भी विस्तारित की गई है, वहां उसके कुटुम्ब को ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा के सिवाय जैसी उस औषधालय, अस्पताल, क्लिनिक या अन्य संस्था में उपबंधित की जाती है, जिसके आबंटन में वह या उसका कुटुम्ब आता है या जैसी विनियमों द्वारा उपबंधित की जाए, किसी चिकित्सीय उपचार के लिए दावा करने का अधिकार न होगा ।
(2) इस अधिनियम की कोई भी बात बीमाकृत व्यक्ति को और (जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उसके कुटुम्ब के लिए भी विस्तारित की गई है वहां) उसके कुटुम्ब को, उसके सिवाय जैसा कि विनियमों द्वारा उपबंधित किया जाए, यह हक न देगी कि वह किसी चिकित्सीय उपचार की बाबत उपगत किन्हीं व्ययों की प्रतिपूर्ति निगम द्वारा किए जाने का दावा करे ।
58. राज्य सरकार द्वारा चिकित्सीय उपचार का उपबन्ध-(1) राज्य सरकार बीमाकृत व्यक्तियों और (जहां ऐसी प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए भी विस्तारित की गई है वहां) उनके कुटुम्बों के लिए राज्य में युक्तियुक्त चिकित्सीय, और शल्य तथा प्रासूतिक चिकित्सा का उपबंध करेगीः
परन्तु राज्य सरकार, निगम के अनुमोदन से, चिकित्सा व्यवयासियों के क्लिनिकों में चिकित्सीय उपचार की व्यवस्था ऐसे पैमाने पर और ऐसे निबंधनों और शर्तों पर कर सकेगी जिनका करार हो जाए ।
(2) जहां वह पाया जाए कि बीमाकृत व्यक्तियों के बीमारी-प्रसुविधा संदाय का आपतन किसी राज्य में अखिल भारतीय औसत से अधिक हो गया है, वहां ऐसे आधिक्य की राशि निगम और राज्य सरकार द्वारा ऐसे अनुपात में बांट ली जाएगी जैसा उनके बीच करार द्वारा नियत कर दिया जाएः
परन्तु निगम किसी भी मामले में उस पूरे अंश की या उसके किसी भाग की जिसका वहन राज्य सरकार द्वारा किया जाना है, वसूली का अधित्यजन कर सकेगा ।
(3) निगम उस चिकित्सीय उपचार की (जिसके अंतर्गत भवन, उपस्कर, औषधियां और कर्मचारिवृन्द का उपबंध किया जाना आता है) प्रकृति और पैमाने के बारे में, जो बीमाकृत व्यक्तियों को और (जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए भी विस्तारित की गई है वहां) उनके कुटुम्बों को उपबन्धित की जानी चाहिए, और उसके खर्च और बीमाकृत व्यक्तियों के बीमारी प्रसुविधा से आपतन में के किसी आधिक्य के निगम और राज्य सरकार के बीच बांटे जाने के लिए करार राज्य सरकार के साथ कर सकेगा ।
(4) निगम और किसी राज्य सरकार के बीच यथापूर्वोक्त करार के अभाव में उस चिकित्सीय उपचार की प्रकृति और विस्तार जिसका, राज्य सरकार द्वारा उपबंध किया जाना है, और वह अनुपात जिसमें उसके खर्चें और बीमारी-प्रसुविधा के आपतन के आधिक्य निगम और उस राज्य सरकार के बीच बांटे जाएंगे, भारत के मुख्य न्यायाधिपति द्वारा नियुक्त एक मध्यस्थ द्वारा (जो [किसी राज्य के [उच्च न्यायालय]] का न्यायाधीश हो या रह चुका हो) अवधारित किया जाएगा और मध्यस्थ का अधिनिर्णय निगम और राज्य सरकार पर आबद्धकर होगा ।
[(5) राज्य सरकार, इस अधिनियम के अधीन निगम के अतिरिक्त, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, बीमारी, प्रसूति और नियोजन क्षति की दशा में कर्मचारियों के लिए कतिपय फायदों का उपबंध करने के लिए ऐसे संगठन (चाहे जिस नाम से ज्ञात) की स्थापना कर सकेगीः
परंतु अधिनियम में राज्य सरकार के प्रति किसी निर्देश में, जब कभी ऐसा संगठन राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया जाता है, उस संगठन के प्रति निर्देश भी सम्मिलित होगा ।
(6) उपधारा (5) में निर्दिष्ट संगठन की संरचना ऐसी होगी और वह ऐसे कृत्यों का निर्वहन, ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे क्रियाकलाप करेगा, जो विहित किए जाएं ।]
59. निगम द्वारा अस्पतालों आदि की स्थापना और अनुरक्षण-(1) निगम, राज्य में ऐसे अस्पतालों, औषधालयों और अन्य चिकित्सीय और शल्य चिकित्सीय सेवाओं को, जिन्हें वह बीमाकृत व्यक्तियों और (जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए भी विस्तारित की गई है वहां) उनके कुटुम्बों के हित के लिए ठीक समझे, राज्य सरकार के अनुमोदन से स्थापित और अनुरक्षित कर सकेगा ।
(2) निगम किसी क्षेत्र में बीमाकृत व्यक्तियों और (जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए भी विस्तारित की गई है वहां) उनके कुटुम्बों के लिए चिकित्सीय उपचार और परिचर्या का उपबंध किए जाने के बारे में और उसके खर्च बांटे जाने के बारे में करार *** किसी स्थानीय प्राधिकारी, प्राइवेट निकाय या व्यष्टि के साथ कर सकेगा ।
[(3) निगम बीमाकृत व्यक्तियों को और जहां ऐसी चिकित्सा प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए भी विस्तारित की गई है, वहां उनके कुटुम्बों के लिए चिकित्सीय उपचार और परिचर्या का उपबंध किए जाने के बारे में तृतीय पक्ष की भागीदारी के माध्यम से कर्मचारी राज्य बीमा अस्तपतालों को कमीशन करने और उन्हें चलाने के लिए किसी स्थानीय प्राधिकारी, स्थानीय निकाय या प्राइवेट निकाय के साथ समझौता भी कर सकेगा ।]
[59क. राज्य सरकार के स्थान पर निगम द्वारा चिकित्सा-प्रसुविधा का उपबन्ध-(1) इस अधिनियम के किसी अन्य उपबंध में किसी बात के होते हुए भी, निगम, राज्य सरकार से परामर्श करके राज्य के बीमाकृत व्यक्तियों के लिए, और जहां ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा उनके कुटुम्बों के लिए भी विस्तारित की गई है वहां ऐसे बीमाकृत व्यक्तियों के कुटुम्बों के लिए, चिकित्सा-प्रसुविधा का उपबंध करने का उत्तरदायित्व इस शर्त के अध्यधीन अपने ऊपर ले सकेगा कि राज्य सरकार ऐसी चिकित्सा-प्रसुविधा का खर्च ऐसे अनुपात में बटाएगी जैसा राज्य सरकार और निगम के बीच करार हो जाए ।
(2) निगम के उपधारा (1) के अधीन अपनी शक्ति का प्रयोग करने की दशा में इस अधिनियम के अधीन चिकित्सा-प्रसुविधा के संबंध में उपबंध यावत्शक्य ऐसे लागू होंगे मानो उनमें राज्य सरकार के प्रति निर्देश निगम के प्रति निर्देश हो ।ट
[59ख. चिकित्सीय और पराचिकित्सीय शिक्षा-निगम, कर्मचारी राज्य बीमा स्कीम के अधीन प्रदान की जा रही सेवाओं की क्वालिटी में सुधार करने की दृष्टि से अपने पराचिकित्सीय कर्मचारिवृन्द और अन्य कर्मचारियों के लिए चिकित्सा महाविद्यालय, नर्सिंग महाविद्यालय तथा प्रतिक्षम संस्थान स्थापित कर सकेगा ।]
साधारण
60. प्रसुविधा समनुदेशनीय या कुर्की योग्य न होगी-(1) इस अधिनियम के अधीन किसी प्रसुविधा का संदाय प्राप्त करने का अधिकार अन्तरणीय या समनुदेशीय नहीं होगा ।
(2) इस अधिनियम के अधीन संदेय कोई भी नकद प्रसुविधा किसी न्यायालय की डिक्री या आदेश के निष्पादन में न कुर्क की जा सकेगी और न बेची जा सकेगी ।
61. अन्य अधिनियमितियों के अधीन प्रसुविधाओं का वर्जन-जहां कोई व्यक्ति इस अधिनियम द्वारा उपबंधित प्रसुविधाओं में से किसी का हकदार हो तब वह किसी अन्य अधिनियमिति के उपबंधों के अधीन अनुज्ञेय कोई वैसी ही प्रसुविधा पाने का हकदार नहीं होगा ।
62. व्यक्ति नकद प्रसुविधाओं का संराशीकरण नहीं कराएंगे-जैसा विनियमों में उपबंधित किया जाए उसे छोड़ कर, कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञेय [किसी निःशक्तता-प्रसुविधा] का एकमुश्त राशि के रूप में संराशीकरण कराने का हकदार नहीं होगा ।
[63. कतिपय दशाओं में व्यक्तियों की प्रसुविधा पाने का हकदार न होना-विनियमों द्वारा जैसा उपबंधित किया जाए उसके सिवाय, कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे दिन को जिसको वह काम करता है या छुट्टी या अवकाश पर रहता है, जिसकी बाबत वह मजदूरी पाता है या किसी ऐसे दिन को जिसको वह हड़ताल पर रहता है, अस्थायी निःशक्तता के लिए बीमारी-प्रासुविधा या निःशक्तता-प्रसुविधा का हकदार नहीं होगा ।]
64. बीमारी-प्रसुविधा या निःशक्तता-प्रसुविधा के प्रापकों द्वारा शर्तों का अनुपालन किया जाना-वह व्यक्ति, जो (स्थायी निःशक्तता के आधार पर अनुदत्त प्रसुविधा से भिन्न) बीमारी-प्रसुविधा या निःशक्तता-प्रसुविधा पाता है-
(क) इस अधिनयिम के अधीन उपबंधित औषधालय, अस्तपताल, क्लिनिक या अन्य संस्था में चिकित्सीय उपचार के अधीन रहेगा और अपने भारसाधक चिकित्सा अधिकारी या चिकित्सीय परिचारक द्वारा दिए गए अनुदेशों को कार्यान्वित करेगा;
(ख) उपचारधीन रहते हुए कोई ऐसी बात नहीं करेगा जो उसके स्वास्थ्य लाभ की गति को मन्द करे या उस पर प्रतिकूल प्रभाव डाले;
(ग) उस चिकित्सक अधिकारी, चिकित्सीय परिचारक या अन्य ऐसे प्राधिकारी की, जो विनियमों द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, अनुज्ञा के बिना वह क्षेत्र नहीं छोड़ेगा जिसमें इस अधिनियम द्वारा उपबंधित चिकित्सीय उपचार किया जा रहा है;
(घ) सम्यक् रूप से नियुक्त चिकित्सक अधिकारी *** का निगम द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अन्य व्यक्ति द्वारा अपनी परीक्षा की जाने देगा ।
65. प्रसुविधाओं का समुच्चय न किया जाना-(1) बीमाकृत व्यक्ति एक ही कालावधि के लिए-
(क) बीमारी-प्रसुविधा और प्रसुति-प्रसुविधा दोनों, अथवा
(ख) बीमारी-प्रसुविधा और अस्थायी निःशक्तता के लिए निःशक्तता-प्रसुविधा दोनों, अथवा
(ग) प्रसुति-प्रसुविधा और अस्थायी निःशक्तता के लिए निःशक्तता-प्रसुविधा दोनों,
पाने का हकदार नहीं होगा ।
(2) जहां कोई व्यक्ति उपधारा (1) में वर्णित प्रसुविधाओं में से एक से अधिक का हकदार है, वहां वह यह चुनाव करने का हकदार होगा कि वह कौन-सी प्रसुविधा लेगा ।
66. [कतिपय दशाओं में नियोजक से नुकसानी वसूल करने का निगम का अधिकार ।]-कर्मचारी राज्य बीमा (संशोधन) अधिनियम, 1966 (1966 का 44) की धारा 29 द्वारा (17-6-1967) से निरसित ।
67. [कतिपय दशाओं में निगम को क्षतिपूर्ति का अधिकार ।]-कर्मचारी राज्य बीमा (संशोधन) अधिनियम, 1966 (1966 का 44) की धारा 29 द्वारा निरसित ।
68. जहां प्रधान नियोजक कोई अभिदाय देने में असफल रहता है या उपेक्षा करता है वहां निगम के अधिकार-(1) यदि कोई प्रधान नियोजक कोई ऐसा अभिदाय देने में असफल रहता है या उपेक्षा करता है, जिसे किसी कर्मचारी की बाबत इस अधिनियम के अधीन देने के लिए वह जिम्मेदार है, और ऐसा होने से ऐसा व्यक्ति प्रसुविधा के लिए निर्हकित हो जाता है या किसी निचले पैमाने पर प्रसुविधा का हकदार हो जाता है तो, निगम यह समाधान हो जाने पर कि अभिदाय प्रधान नियोजक द्वारा किया जाना चाहिए था, उस प्रसुविधा का उस दर पर संदाय कर सकेगा जिसका हकदार वह उस दशा में होता जिसमें कि वह असफलता या उपेक्षा न हुई होती, और निगम प्रधान नियोजक से या तो-
[(i) निगम द्वारा उक्त व्यक्ति को दी गई प्रसुविधा की रकम के और उस प्रसुविधा की रकम को, जो उन अभिदायों के आधार पर संदेय होती, जो नियोजक द्वारा वस्तुतः दिए गए थे, बीच का अन्तर, अथवा]
(ii) जिस अभिदाय को देने में नियोजक असफल रहा है या उसने उपेक्षा की है उसकी दुगनी रकम,
दोनों में से जो भी अधिक हो, वसूल करने का हकदार होगा ।
(2) इस धारा के अधीन [या धारा 45ग से धारा 45झ तक के अधीन] वसूलीय रकम ऐसे वसूल की जा सकेगी मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो ।
69. कारखानों आदि के स्वामी या अधिभोगी का अत्यधिक बीमारी-प्रसुविधा के लिए दायित्व-(1) जहां निगम समझता है कि बीमाकृत व्यक्तियों में बीमारी का आपतन-
(i) किसी कारखाने या स्थापन में काम करने की अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों के कारण या कारखाने या स्थापन के स्वामी या अधिभोगी द्वारा किन्हीं ऐसे स्वास्थ्य विनियमों का जो उस पर किसी अधिनियमिति द्वारा या उसके अधीन व्यादिष्ट है अनुपालन करने में उपेक्षा की जाने के कारण, अथवा
(ii) बीमाकृत व्यक्तियों के अधिभोग में के किन्हीं वासगृहों या वासों की अस्वच्छ दशाओं के कारण, जो अस्वच्छ दशाओं किन्हीं ऐसे स्वास्थय विनियमों की, जिनका अनुपालन करने के लिए वासगृहों या वासों का स्वामी किसी अधिनियमिति के द्वारा या उसके अधीन व्यादिष्ट है, उस स्वामी द्वारा उपेक्षा की जाने के कारण मानी जा सकती है,
अत्यधिक बढ़ जाता है वहां निगम, यथास्थिति, उस कारखाने या स्थापन के स्वामी या अधिभोगी को या, उन वासगृहों या वासों के स्वामी को उस अतिरिक्त व्यय की रकम का संदाय करने के लिए दावा भेज सकेगा जो बीमारी-प्रसुविधा के रूप में निगम ने उपगत किया है; और यदि दावा सहमति द्वारा निपटाया नहीं जाता तो निगम वह मामला, अपने दावे के समर्थन में कथन सहित, समुचित सरकार को निर्देशित कर सकेगा ।
(2) यदि समुचित सरकार की राय हो कि जांच के लिए प्रथमदृष्ट्या कोई मामला प्रकट होता है तो वह उस मामले में जांच करने के लिए सक्षम व्यक्ति या व्यक्तियों को नियुक्त कर सकेगी ।
(3) यदि ऐसी जांच पर जांच करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों को समाधान प्रदान करने वाले रूप में यह साबित हो जाता है कि बीमाकृत व्यक्तियों में अत्यधिक बीमारी का कारण, यथास्थिति, कारखाने या स्थापन के स्वामी या अधिभोगी का या, वासगृहों या वासों के स्वामी द्वारा व्यतिक्रम या उपेक्षा है तो उक्त व्यक्ति बीमारी-प्रसुविधा के रूप में उपगत अतिरिक्त व्यय की रकम को और जिस व्यक्ति या जिन व्यक्तियों द्वारा ऐसी सम्पूर्ण राशि या उनका कोई भाग निगम को दिया जाएगा उसे या उन्हें अवधारित करेगा या करेंगे ।
(4) उपधारा (3) के अधीन किया गया अवधारण इस प्रकार प्रवर्तित किया जा सकेगा मानो वह किसी वाद में सिविल न्यायालय द्वारा पारित धन के संदाय की कोई डिक्री हो ।
(5) इस धारा के प्रयोजनों के लिए या वासगृहों या वासों के “स्वामी" के अन्तर्गत स्वामी का कोई अभिकर्ता और कोई ऐसा व्यक्ति आता है, जो स्वामी के पट्टेदार के रूप में वासगृहों या वासों का भाटक संगृहित करने का हकदार है ।
70. अनुचित रूप से प्राप्त प्रसुविधा का प्रतिसंदाय-(1) जहां किसी व्यक्ति ने इस अधिनियम के अधीन कोई प्रसुविधा या संदाय उस दशा में प्राप्त किया है जिसमें कि वह उसका विधिपूर्ण रूप से हकदार नहीं है वहां, वह उस प्रसुविधा का मूल्य या ऐसे संदाय की रकम निगम को लौटाने के दायित्वाधीन होगा, या उसकी मृत्यु की दशा में उसका प्रतिनिधि, मृत व्यक्ति की आस्तियों में से, यदि कोई उसके पास हों, उन्हें प्रतिसंदत्त करने के दायित्वाधीन होगा ।
(2) नकद संदायों से भिन्न रूप में प्राप्त किन्हीं प्रसुविधाओं के मूल्य का अवधारण ऐसे प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा, जिसे इस निमित्त बनाए गए विनियमों में विनिर्दिष्ट किया जाए, और ऐसे प्राधिकारी का विनिश्चय अंतिम होगा ।
(3) इस धारा के अधीन [या धारा 45ग से धारा 45झ तक के अधीन] वसूलीय रकम ऐसे वसूल की जा सकेगी मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो ।
71. प्रसुविधा मृत्यु के दिन तक, जिसके अन्तर्गत मृत्यु का दिन आता है, संदेय होगी-यदि किसी व्यक्ति की किसी ऐसी कालावधि के दौरान मृत्यु हो जाती है जिसके लिए वह इस अधिनियम के अधीन नकद प्रसुविधा का हकदार है तो [ [धारा 50 की उपधारा (2) के परन्तुक में यथा उपबन्धित के सिवायट उसकी मृत्यु के दिन तक की,] जिनके अन्तर्गत मृत्यु का दिन भी आता है, ऐसी प्रसुविधा की रकम किसी ऐसे व्यक्ति को, जो मृत व्यक्ति द्वारा ऐसे प्ररूप में, जैसा विनियमों में विनिर्दिष्ट किया जाए, लिखित रूप में नामनिर्दिष्ट किया गया हो, या यदि ऐसा कोई नामनिर्देशन न हो तो मृत व्यक्ति के वारिस या विधिक प्रतिनिधि को, दी जाएगी ।
72. नियोजक मजदूरी आदि को कम न करेगा-कोई भी नियोजक इस अधिनियम के अधीन संदेय किन्हीं अभिदायों के लिए अपने दायित्व के कारण ही, किसी कर्मचारी की मजदूरी को न तो प्रत्यक्षतः या परोक्षतः कम करेगा और न उसकी सेवा की शर्तों के अधीन उसे संदेय ऐसी प्रसविधिओं को, जो इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त प्रसुविधाओं के समरूप हों, विनियमों द्वारा यथा उपाबंधित के सिवाय, बन्द या कम करेगा ।
73. नियोजक कर्मचारी को बीमारी आदि की कालावधि के दौरान पदच्युत या दंडित न करेगा-(1) कोई भी नियोजक कर्मचारी को उस कालावधि के दौरान, जिसमें कर्मचारी को बीमारी-प्रसुविधा या प्रसुति-प्रसुविधा प्राप्त होती है, पदच्युत, उन्मोचित या अवनत या अन्यथा दंडित नहीं करेगा और न, विनियमों के अधीन यथा उपबंधित को छोड़कर किसी भी कर्मचारी को उस कालावधि के दौरान पदच्युत, उन्मोचित, अवनत, या अन्यथा दण्डित करेगा जिस कालावधि के दौरान वह अस्थायी निःशक्तता के लिए निःशक्तता-प्रसुविधा पा रहा है या बीमारी के लिए चिकित्सीय उपचार के अधीन है या ऐसी रुग्णता के परिणामस्वरूप काम से अनुपस्थित है जिसकी बाबत विनियमों के अनुसार यह बात सम्यक् रूप से प्रमाणित की गई है कि वह गर्भावस्था या प्रसवावस्था से उद्भूत ऐसी बीमारी है जिसने कर्मचारी को काम के लिए अयोग्य कर दिया है ।
(2) पदय्युति या उन्मोचन या अवनति की कोई भी सूचना, जो कर्मचारी को उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट कालावधि के दौरान दी गई हो, विधिमान्य या प्रवर्तनीय नहीं होगी ।
[अध्याय 5क
अन्य हिताधिकारियों के लिए स्कीम
73क. परिभाषाएं-इस अध्यायन में,-
(क) “अन्य हिताधिकारियों" से इस अधिनियम के अधीन बीमाकृत व्यक्तियों से भिन्न व्यक्ति अभिप्रेत हैं;
(ख) “स्कीम" से केन्द्रीय सरकार द्वारा अन्य हिताधिकारियों के संबंध में चिकित्सा सुविधा के लिए धारा 73ख के अधीन समय-समय पर विरचित की गई कोई स्कीम अभिप्रेत है;
(ग) “अल्प उपयोगित अस्पताल" से ऐसा अस्पताल अभिप्रेत है जिसका इस अधिनियम के अधीन बीमाकृत व्यक्तियों द्वारा पूर्ण रूप से उपयोग नहीं किया जाता है;
(घ) “उपयोक्ता प्रभार" से वह रकम अभिप्रेत है जो ऐसी चिकित्सा सुविधाओं के लिए, जो समय-समय पर निगम द्वारा केन्द्रीय सरकार के परामर्श से अधिसूचित की जाएं, अन्य हिताधिकारियों से प्रभारित की जानी है ।
73ख. स्कीम विरचित करने की शक्ति-इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अन्य हिताधिकारियों और उनके कुटुम्ब के सदस्यों के लिए किसी क्षेत्र में निगम द्वारा स्थापित ऐसे किसी अस्पताल में, जो अल्प उपयोगिता वाला है, उपयोक्ता प्रभारों के संदाय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्कीम विरचित कर सकेगी ।
73ग. उपयोक्ता प्रभारों का संग्रहण-अन्य हिताधिकारियों से संगृहीत उपयोक्ता प्रभार अभिदाय समझे जाएंगे और कर्मचारी राज्य बीमा निधि का भाग होंगे ।
73घ. अन्य हिताधिकारियों के लिए स्कीम-स्कीम निम्नलिखित सभी या उनमें से किसी विषय के लिए उपबंध कर सकेगी, अर्थात्ः-
(i) ऐसे अन्य हिताधिकारी जो इस स्कीम के अंतर्गत आते हों;
(ii) वह समय और रीति जिसमें अन्य हिताधिकारियों द्वारा चिकित्सा-सुविधाएं प्राप्त की जा सकेंगी;
(iii) वह प्ररूप जिसमें अन्य हिताधिकारी स्वयं के बारे में और अपने कुटुम्ब के बारे में ऐसी विशिष्टियां, जब भी अपेक्षित हों, देंगे जो निगम द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं;
(iv) कोई अन्य विषय जिसके लिए स्कीम में उपबंध किया जाना है या जो स्कीम के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक या उचित हो ।
73ङ. स्कीम का संशोधन करने की शक्ति-केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, स्कीम में जोड़ सकेगी, संशोधन, परिवर्तन कर सकेगी या उसे विखंडित कर सकेगी ।
73च. इस अध्याय के अधीन विरचित स्कीम का रखा जाना-इस अध्याय के अधीन विरचित की गई प्रत्येक स्कीम, विरचित किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखी जाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस स्कीम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो, तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह स्कीम नहीं बनाई जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह स्कीम निष्प्रभाव हो जाएगी । तथापि, स्कीम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]
अध्याय 6
विवादों और दावों का न्यायनिर्णयन
74. कर्मचारी बीमा न्यायालय का गठन-(1) राज्य सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे स्थानीय क्षेत्र के लिए जिसे अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए एक कर्मचारी बीमा न्यायालय गठित करेगी ।
(2) न्यायालय उतने न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा जितने राज्य सरकार ठीक समझे ।
(3) कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक अधिकारी है या रह चुका है या पांच वर्ष की अवस्थिति का विधि-व्यवसायी है कर्मचारी बीमा न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए अर्हित होगा ।
(4) राज्य सरकार दो या अधिक स्थानीय क्षेत्रों के लिए एक ही न्यायालय या एक ही स्थानीय क्षेत्र के लिए दो या अधिक न्यायालय नियुक्त कर सकेगी ।
(5) जहां एक ही स्थानीय क्षेत्र के लिए एक से अधिक न्यायालय नियुक्त किए गए हैं, वहां राज्य सरकार उनके बीच कामकाज का वितरण साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनियमित कर सकेगी ।
75. कर्मचारी बीमा न्यायालय द्वारा विनिश्चित किए जाने वाले मामले-(1) यदि निम्नलिखित के बारे में, अर्थात्ः-
(क) कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अर्थ में कर्मचारी है या नहीं अथवा वह कर्मचारी-अभिदाय देने के लिए जिम्मेदार है या नहीं, अथवा
(ख) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए कर्मचारी की मज़दूरी की दर या औसत दैनिक मज़दूरी, अथवा
(ग) किसी कर्मचारी की बाबत प्रधान नियोजक द्वारा संदेय अभिदाय की दर, अथवा
(घ) वह व्यक्ति, जो किसी कर्मचारी की बाबत प्रधान नियोजक है या था, अथवा
(ङ) किसी प्रसुविधा के लिए किसी व्यक्ति का अधिकार और उसका परिमाण तथा उसकी अस्तित्वावधि, अथवा
[(ङङ) आश्रित-प्रसुविधाओं के किसी संदाय के पुनर्विलोकन पर धारा 55क के अधीन निगम द्वारा निकाला गया कोई निदेश, अथवा]
। । । ।
(छ) कोई अन्य विषय, जो इस अधिनियम के अधीन संदेय या वसूलीय किसी अभिदाय या प्रसुविधा या अन्य शोध्य राशियों की बाबत प्रधान नियोजक और निगम के बीच, या प्रधान नियोजक और अव्यवहित नियोजक के बीच, या किसी व्यक्ति या निगम के बीच या कर्मचारी और प्रधान नियोजक या अव्यवहित नियोजक के बीच विवादग्रस्त हो, [या कोई अन्य विषय जिसका इस अधिनियम के अधीन कर्चमारी बीमा न्यायालय द्वारा विनिश्चित किया जाना अपेक्षित हो या जो ऐसे विनिश्चित किया जा सके],
कोई प्रश्न या विवाद पैदा हो तो ऐसे प्रश्न या विवाद का विनिश्चय कर्मचारी बीमा न्यायालय द्वारा 3[उपधारा (2क) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए,] इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार किया जाएगा ।
(2) [उपधारा (2क) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए,] निम्नलिखित दावों का विनिश्चय कर्मचारी बीमा न्यायालय द्वारा किया जाएगा, अर्थात्ः-
(क) प्रधान नियोजक से अभिदायों की वसूली का दावा;
(ख) किसी अव्यवहित नियोजक से अभिदायों का वसूल करने के लिए प्रधान नियोजक द्वारा दावा;
। । । ।
(घ) प्रधान नियोजक के विरुद्ध धारा 68 के अधीन दावा;
(ङ) किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त प्रसुविधाओं के मूल्य या रकम की वसूली के लिए धारा 70 के अधीन उस दशा में दावा जिसमें वह व्यक्ति उनका विधिपूर्ण रूप से हकदार नहीं है; तथा
(च) इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञेय किसी प्रसुविधा की वसूली के लिए कोई दावा ।
3[(2क) यदि कर्मचारी बीमा न्यायालय के समक्ष की किसी कार्यवाही में निःशक्तता संबंधी कोई प्रश्न पैदा होता है और उस पर चिकित्सक बोर्ड या चिकित्सा अपील अधिकरण का विनिश्चय, अभिप्राप्त नहीं किया गया है और ऐसे प्रश्न का विनिश्चय कर्मचारी बीमा न्यायालय के समक्ष के दावे या प्रश्न को अवधारित करने के लिए आवश्यक है तो वह न्यायालय निगम को निदेश देगा कि निगम वह प्रश्न इस अधिनियम के अधीन विनिश्चित करवाए और तत्पश्चात् वह अपने समक्ष के उस दावे या प्रश्न के अवधारण के लिए, यथास्थिति, चिकित्सक बोर्ड या चिकित्सा अपील अधिकरण के विनिश्चय के अनुसार उस दशा में के सिवाय कार्यवाही करेगा जिसमें कि अपील कर्मचारी बीमा न्यायालय के समक्ष धारा 54क की उपधारा (2) के अधीन की गई है, जिस दशा में कर्मचारी बीमा न्यायालय अपने समक्ष पैदा हुए सभी मामलों को स्वयं अवधारित कर सकेगा ।
[(2ख) कोई ऐसा मामला, जो किसी प्रधान नियोजक और निगम के बीच किसी अभिदाय या किसी अन्य देय के बारे में विवाद है, प्रधान नियोजक द्वारा, कर्मचारी बीमा न्यायालय में तब तक नहीं उठाया जाएगा जब तक उसने निगम द्वारा यथा दावाकृत उससे देय रकम का पचास प्रतिशत न्यायालय के पास जमा न कर दिया हो :
परन्तु न्यायालय, ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, इस उपधारा के अधीन जमा की जाने वाली रकम को अधित्यजित या कम कर सकेगा ।]
(3) किसी भी सिविल न्यायालय को यथापूर्वोक्त किसी प्रश्न या विवाद का विनिश्चय करने या उस पर कोई कार्यवाही करने की या किसी ऐसे दायित्व पर, जिसका विनिश्चय [चिकित्सक बोर्ड द्वारा, या चिकित्सा अपील अधिकरण द्वारा, या कर्मचारी बीमा न्यायालय द्वारा] या इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन किया जाना है, न्यायनिर्णय देने की अधिकारिता नहीं होगी ।
76. कार्यवाहियों का संस्थित किया जाना, आदि-(1) इस अधिनियम के और राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, कर्मचारी बीमा न्यायालय के समक्ष की सभी कार्यवाहियां उस स्थानीय क्षेत्र के लिए नियुक्त किए गए न्यायालय में संस्थित की जाएंगी, जिसमें बीमाकृत व्यक्ति उस समय काम करता था जब वह प्रश्न या विवाद पैदा हुआ था ।
(2) यदि न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लम्बित कार्यवाही से पैदा होने वाले किसी विषय पर उसी राज्य के किसी अन्य कर्मचारी बीमा न्यायालय द्वारा अधिक सुविधापूर्वक कार्यवाही की जा सकती है, तो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए गए नियमों के अध्यधीन रहते हुए, वह निपटारे के लिए ऐसे मामले में अन्य न्यायालय को अन्तरित किए जाने का आदेश दे सकेगा और उस विषय से संबद्ध अभिलेखों को ऐसे अन्य न्यायालय को तत्क्षण पारेषित करेगा ।
(3) राज्य सरकार राज्य में के किसी कर्मचारी बीमा न्यायालय के समक्ष लम्बित किसी मामले को किसी अन्य राज्य में के किसी ऐसे ही न्यायालय को, उस राज्य की राज्य सरकार की सम्मति से, अन्तरित कर सकेगी ।
(4) वह न्यायालय, जिसे उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन कोई मामला अन्तरित किया जाता है, कार्यवाहियों को इस प्रकार चालू रखेगा मानो वे उसमें मूलतः संस्थित हुई थीं ।
77. कार्यवाहियों का प्रारम्भ-(1) कर्मचारी बीमा न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियां आवेदन द्वारा प्रारम्भ होंगी ।
[(1क) ऐसा हर आवेदन उस तारीख से तीन वर्ष की कालावधि के भीतर किया जाएगा जिस तारीख को वाद-हेतुक पैदा हुआ था ।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजन के लिए,-
(क) प्रसुविधा के दावे की बाबत वाद-हेतुक तब के सिवाय पैदा हुआ नहीं समझा जाएगा जब बीमाकृत व्यक्ति, या आश्रित-प्रसुविधा की दशा में बीमाकृत व्यक्ति के आश्रित उस प्रसुविधा का दावा, दावे के शोध्य हो जाने के पश्चात् बारह मास की कालावधि के भीतर या ऐसी अतिरिक्त कालावधि के भीतर, जैसी कर्मचारी बीमा न्यायालय उन आधारों पर अनुज्ञात करे जो उसे युक्तियुक्त प्रतीत हों, उस निमित्त बनाए गए विनियमों के अनुसार नहीं करता या नहीं करते;
[(ख) प्रधान नियोजक से अभिदाय (जिसके अंतर्गत ब्याज और नुकसानी भी है) वसूल करने के लिए निगम द्वारा किए गए दावे की बाबत वाद-हेतू तक, उस तारीख को जिसको ऐसा दावा प्रथम बार निगम द्वारा किया जाता है, उद्भूत हुआ समझा जाएगाः
परंतु कोई भी दावा निगम द्वारा उस कालावधि के जिससे दावा संबंधित है, पांच वर्ष के पश्चात् नहीं किया जाएगाः
(ग) किसी अव्यवहित नियोजक से अभिदाय वसूल करने के लिए प्रधान नियोजक द्वारा किए गए दावे की बाबन वाद-हेतुक उस तारीख तक जिस तक अभिदाय संदत्त किए जाने का साक्ष्य निगम द्वारा विनियमों के अधीन प्राप्त किया जाना नियत है, उद्भूत हुआ नहीं समझा जाएगा ।]
(2) हर ऐसा आवेदन ऐसे प्ररूप में होगा जैसा और उसमें ऐसी विशिष्टियां अंतर्विष्ट होंगी और उसके साथ ऐसी फीस होगी, यदि कोई हो, जैसी निगम के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं ।
78. कर्मचारी बीमा न्यायालय की शक्तियां-(1) कर्मचारी बीमा न्यायालय को, साक्षियों को समन करने और उन्हें हाजिर कराने, दस्तावेजों और भौतिक पदार्थों के प्रकटीकरण और पेश करने को विवश करने, शपथ दिलाने और साक्ष्य अभिलिखित करने के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी और ऐसा न्यायालय [दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26] के अर्थ में सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।
(2) कर्मचारी बीमा न्यायालय ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा, जैसी राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाए ।
(3) कर्मचारी बीमा न्यायालय के समक्ष की किसी भी कार्यवाही के आनुषंगिक सभी खर्चे ऐसे नियमों के अध्यधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त बनाए जाएं, न्यायालय के विवेकाधीन होंगे ।
(4) कर्मचारी बीमा न्यायालय का आदेश इस प्रकार प्रवर्तनीय होगा मानो वह किसी सिविल न्यायालय द्वारा बाद में पारित डिक्री हो ।
79. विधि-व्यवसायियों इत्यादि द्वारा हाजिरी-किसी व्यक्ति द्वारा कर्मचारी बीमा न्यायालय को किए जाने के लिए अपेक्षित आवेदन या उसके समक्ष की जाने के लिए अपेक्षित (किसी व्यक्ति की ऐसी हाजिरी से भिन्न जो साक्षी के रूप में उसकी परीक्षा की जाने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित हो) कोई हाजिरी या किए जाने के लिए अपेक्षित कोई कार्य किसी विधि-व्यवसायी द्वारा या रजिस्ट्रीकृत व्यवसाय संघ के ऐसे अधिकारी द्वारा जिसे ऐसे व्यक्ति ने लिखित रूप में प्राधिकृत किया हो या न्यायालय की अनुज्ञा से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जो इस प्रकार प्राधिकृत किया गया हो, किया जा सकेगा ।
80. [जब तक समय के भीतर दावा न किया जाए, फायदा अनुज्ञेय न होना ।]-कर्मचारी राज्य बीमा (संशोधन) अधिनियम, 1966 (1966 का 44) की धारा 34 द्वारा निरसित ।
81. उच्च न्यायालय को निर्देश-कर्मचारी बीमा न्यायालय कोई भी विधि-प्रश्न उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निवेदित कर सकेगा और यदि वह ऐसा करता है, तो वह अपने समक्ष लम्बित प्रश्न को ऐसे विनिश्चय के अनुसार विनिश्चित करेगा ।
82. अपील-(1) उसके सिवाय जैसा कि इस धारा में अभिव्यक्त रूप से उपबंधित है, कर्मचारी बीमा न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं होगी ।
(2) यदि कर्मचारी बीमा न्यायालय के आदेश में कोई सारवान विधि-प्रश्न अन्तर्वलित है तो उसके विरुद्ध अपील उच्च-न्यायालय में होगी ।
(3) इस धारा के अधीन अपील के लिए परिसीमा-काल साठ दिन का होगा ।
(4) [परिसीमा अधिनियम, 1963 (1963 का 36)ट की धारा 5 और धारा 12 के उपबंध इस धारा के अधीन की अपीलों को लागू होंगे ।
83. अपील लम्बित रहने तक संदाय पर रोक-जहां निगम ने कर्मचारी बीमा न्यायालय के आदेश के विरुद्ध कोई अपील उपस्थापित की है वहां वह न्यायालय जिस आदेश के विरुद्ध अपील की गई है उस आदेश द्वारा दिए जाने के लिए निर्दिष्ट राशि का संदाय अपील पर विनिश्चय होने तक के लिए रोक सकेगा और यदि उच्च न्यायालय द्वारा उसे ऐसा निदेश दिया जाए तो रोक देगा ।
अध्याय 7
शास्तियां
84. मिथ्या कथन के लिए दंड-जो कोई इस अधिनियम के अधीन संदाय या प्रसुविधा में कोई वृद्धि कराने के प्रयोजन के लिए या जहां इस अधिनियम के द्वारा या उसके अधीन कोई संदाय या प्रसुविधा प्राधिकृत नहीं है वहां कोई संदाय या प्रसुविधा दिलाने के प्रयोजन के लिए या किसी ऐसे संदाय से बचने के प्रयोजन के लिए जो इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा किया जाना है या ऐसे किसी संदाय से बचने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को समर्थ बनाने के प्रयोजन के लिए जानते हुए कोई मिथ्या कथन या मिथ्या व्यपदेशन करेगा या कराएगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि [छह मास] तक की हो सकेगी, या 2[दो हजार रुपए से अनधिक जुर्माने से या दोनों से, दंडनीय होगा ।
[परन्तु जहां बीमाकृत व्यक्ति इस धारा के अधीन सिद्धदोष ठहराया गया है, वहां वह इस अधिनियम के अधीन ऐसी कालावधि के लिए जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, कोई नकद प्रसुविधा का हकदार नहीं होगा ।]
85. अभिदाय देने में असफलता आदि के लिए दंड-यदि कोई व्यक्ति-
(क) कोई ऐसा अभिदाय देने में असफल रहेगा जिसे देने के लिए वह इस अधिनियम के अधीन जिम्मेदार है, अथवा
(ख) किसी कर्मचारी की मजदूरी में से सम्पूर्ण नियोजक-अभिदाय या उसका कोई भाग काट लेगा या काटने का प्रयत्न करेगा, अथवा
(ग) किसी कर्मचारी को अनुज्ञेय मजदूरी या किन्हीं विशेषाधिकारों या प्रसुविधाओं को धारा 72 के उल्लंघन में घटाएगा, अथवा
(घ) किसी कर्मचारी को धारा 73 या किसी विनियम के उल्लंघन में पदच्युत करेगा, अवनत करेगा या अन्यथा दंडित करेगा, अथवा
(ङ) विनियमों द्वारा अपेक्षित किसी विवरणी को देने में असफल रहेगा, या देने से इनकार करेगा या मिथ्या विवरणी देगा, अथवा
(च) किसी निरीक्षक को या निगम के किसी अन्य पदधारी को, उसके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा पहुंचाएगा, अथवा
(छ) इस अधिनियम की या नियमों या विनियमों की उन अपेक्षाओं में से किसी के उल्लंघन का या अननुपालन कगा दोषी होगा, जिनकी बाबत कोई विशेष शास्ति उपबंधित नहीं है,
[तो-
[(i) जहां वह खंड (क) के अधीन कोई अपराध करेगा, वहां कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, किंतु जो-
(क) उसके द्वारा ऐसे कर्मचारी की मजदूरी में से काटे गए कर्मचारी-अभिदाय का संदाय करने में असफल रहने की दशा में एक वर्ष से कम की नहीं होगी, दंडनीय होगा और वह दस हजार रुपए के जुर्माने का भी भागी होगा;
(ख) किसी अन्य दशा में, छह मास से कम की नहीं होगी, दंडनीय होगा और वह पांच हजार रुपए के जुर्माने का भी भागी होगाः
परंतु न्यायालय, पर्याप्त और विशेष कारणों से जो निर्णय में अभिलिखित किए जाएंगे, कम अवधि के कारावास का दंडादेश अधिरोपित कर सकेगा;
(ii) जहां वह खंड (ख) से खंड (छ) में से (जिनमें ये दोनों खंड सम्मलित हैं) किसी खंड के अधीन कोई अपराध करेगा, वहां वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो चार हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडनीय होगा ।ट
[85क. पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् कतिपय दशाओं में वर्धित दण्ड-जो कोई, किसी न्यायालय द्वारा इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए जाने पर, वही अपराध करेगा, वह ऐसे प्रत्येक पश्चात्वर्ती अपराध के लिए कारावास से, जिसकी अवधि [पांच वर्ष तक की हो सकेगी और पांच हजार रुपए के जुर्माने से] दण्डनीय होगाः
परंतु जहां ऐसा पश्चात्वर्ती अपराध, नियोजक द्वारा किसी ऐसे अभिदाय का संदाय करने में असफल रहने के संबंध में है, जिसका वह इस अधिनियम के अधीन संदाय करने का दायी है, वहां वह ऐसे प्रत्येक पश्चात्वर्ती अपराध के लिए कारावास से, जिसकी अवधि [पांच वर्ष की हो सकेगी किन्तु जो दो वर्ष से कम की नहीं होगी, दण्डनीय होगा और पच्चीस हजार रुपए के जुर्माने का भी] भागी होगा ।
85ख. नुकसानी वसूल करने की शक्ति-(1) जहां कोई नियोजक इस अधिनियम के अधीन किसी अभिदाय के संबंध में देय रकम का या किसी अन्य रकम का संदाय करने में असफल रहेगा, वहां निगम 5[बकाया की रकम से अनधिक शास्ति के रूप मे ऐसी नुकसानी नियोजक से वसूल कर सकेगा जो विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाए] :
परंतु ऐसी नुकसानी वसूल करने से पहले, नियोजक को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा :
[परंतु यह और कि निगम, किसी ऐसे स्थापन के संबंध में, जो रुग्ण औद्योगिक कंपनी है जिसकी बाबत पुनर्वास के लिए एक स्कीम बोर्ड द्वारा रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1986 (1986 का 1) की धारा 4 के अधीन स्थापित औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण के लिए मंजूर की गई है, ऐसे निबंधनों और शर्तों के अधीन रहते हुए जो विनियमों में विनिर्दिष्ट की जाएं, इस धारा के अधीन वसूलीय नुकसानी को घटा सकेगा या अधित्यजित कर सकेगा ।]
(2) उपधारा (1) के अधीन 6[या धारा 45ग से धारा 45झ तक के अधीन] वसूलीय कोई नुकसानी भू-राजस्व की बकाया के रूप में वसूल की जा सकेगी ।
85ग. आदेश करने की न्यायालय की शक्ति-(1) जहां कोई नियोजक इस अधिनियम के अधीन संदेय किसी अभिदाय का संदाय करने में असफल रहने के किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है, वहां न्यायालय, कोई दण्ड अधिनिर्णित करने के अतिरिक्त, लिखित आदेश द्वारा उससे यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह आदेश में विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर (जिसे न्यायालय, यदि वह ठीक समझे तो, और उस निमित्त आवेदन पर, समय-समय पर बढ़ा सकेगा), ऐसे अभिदाय की रकम का संदाय करे जिसके संबंध में अपराध किया गया था [और ऐसे अभिदाय से संबंधित विवरणी प्रस्तुत करे ।]
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश किया जाता है, वहां नियोजक न्यायालय द्वारा अनुज्ञात कालावधि या बढ़ाई गई कालावधि के, यदि कोई हो, दौरान अपराध के चालू रहने के संबंध में इस अधिनियम के अधीन दायी नहीं होगा, किंतु यदि, यथास्थिति, ऐसी कालावधि या बढ़ाई गई कालावधि की समाप्ति पर, न्यायालय के आदेश का पूर्णतः अनुपालन नहीं किया गया है तो नियोजक के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने अतिरिक्त अपराध किया है और वह धारा 85 के अधीन उसके संबंध में कारावास से दण्डनीय होगा और ऐसे जुर्माने का संदाय करने का भी भागी होगा जो ऐसी समाप्ति के पश्चात् उस प्रत्येक दिन के लिए, जिसके दौरान आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है, [एक हजार] रुपए तक का हो सकेगा ।
86. अभियोजन-(1) इस अधिनियम के अधीन कोई भी अभियोजन बीमा आयुक्त [या निगम के ऐसे अन्य अधिकारी के, जो [निगम के महानिदेशक] द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाए,] द्वारा या उसकी पूर्व मंजूरी से संस्थित किए जाने के सिवाय, संस्थित नहीं किया जाएगा ।
[(2) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट से अवर कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन के किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।]
(3) कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का संज्ञान *** उस अपराध की बाबत लिखित रूप में किए गए परिवाद पर करने के सिवाय नहीं करेगा ।
[86क. कंपनियों द्वारा अपराध-(1) यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कोई कंपनी है, तो ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कंपनी के कारबार के संचालन के लिए उस कंपनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तदायी था और साथ ही वह कंपनी भी ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएंगे और तद्नुसार वे अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगेः
परंतु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को किसी दंड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था अथवा उसने ऐसे अपराध के निवारण के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक या प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा तथा तद्नुसार वह अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने का भागी होगा ।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए,-
(त्) “कंपनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत फर्म और व्यष्टियों का अन्य संगम है; और
(त्त्) “निदेशक" से-
(क) किसी फर्म से भिन्न किसी कंपनी के संबंध में, प्रबंध निदेशक या कोई पूर्णकालिक निदेशक;
(ख) किसी फर्म के संबंध में, उस फर्म का कोई भागीदार,
अभिप्रेत है ।]
अध्याय 8
प्रकीर्ण
87. कारखाने या स्थापन को या कारखानों या स्थापनों के वर्ग को छूट-समुचित सरकार किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र में के किसी कारखाने या स्थापन को या कारखानों या स्थापनों के किसी वर्ग को इस अधिनियम के प्रवर्तन से एक वर्ष से अनधिक की कालावधि के लिए छूट शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तों के अध्यधीन, जैसी उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, दे सकेगी और ऐसी छूट को वैसी ही अधिसूचना द्वारा ऐसी कालावधियों के लिए जो एक समय में एक वर्ष से अधिक की न होगी, समय-समय पर नवीकृत कर सकेगी :
[परंतु ऐसी छूटें केवल तभी दी जा सकेंगी जब ऐसे कारखानों या स्थापनों में कर्मचारी इस अधिनियम के अधीन दी जाने वाली प्रसुविधाओं के सारभूत रूप से समान या उससे अच्छी प्रसुविधाएं अन्यथा प्राप्त कर रहे हैंः
परंतु यह है कि नवीकरण के लिए आवेदन छूट की अवधि की समाप्ति की तारीख से तीन मास पूर्व किया जाएगा और उस पर विनिश्चय समुचित सरकार द्वारा ऐसे आवेदन की प्राप्ति के दो मास के भीतर किया जाएगा ।]
88. व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्ग को छूट-समुचित सरकार किसी ऐसे कारखाने या स्थापन या कारखानों या स्थापनों के वर्ग में, जिसे यह अधिनियम लागू है, नियोजित किन्हीं भी व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्ग को इस अधिनियम के प्रवर्तन से छूट, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तों के अध्यधीन जैसी वह अधिरोपित करना उचित समझे, दे सकेगी ।
89. निगम का अभ्यावेदन करना-धारा 87 या धारा 88 के अधीन कोई भी छूट तब तक अनुदत्त या नवीकृत नहीं की जाएगी जब तक निगम को ऐसा अभ्यावेदन करने का, जैसा वह उस प्रस्थापना के बारे में करना चाहे, युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो और ऐसे अभ्यावेदन पर समुचित सरकार ने विचार न कर लिया हो ।
90. *** किसी स्थानीय प्राधिकारी के कारखानों या स्थापनों को छूट-यदि 1*** किसी स्थानीय प्राधिकारी के किसी कारखाने या स्थापन के कर्मचारी अन्यथा ऐसी प्रसुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं जो इस अधिनियम के अधीन उपबंधित प्रसुविधाओं के सारतः समरूप हैं या उनसे उच्चतर हैं तो समुचित सरकार, [निगम से परामर्श के पश्चात्,] ऐसे कारखाने या स्थापन को 2[इस अधिनियम के प्रवर्तन से] छूट, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, और ऐसी शर्तों के अध्यधीन, जैसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, दे सकेगी ।
91. अधिनियम के एक या अधिक उपबन्धों से छूट-समुचित सरकार, किसी भी कारखाने या स्थापन के या कारखानों या स्थापनों के वर्ग के किन्हीं भी कर्मचारियों या कर्मचारियों के वर्ग को इस अधिनियम के अधीन उपबंधित प्रसुविधाओं के संबंध में एक या अधिक उपबंधों से निगम की सम्मति से छूट, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, दे सकेगी ।
[91क. छूटों का भविष्यलक्षी या भूतलक्षी होना-धारा 87, धारा 88, धारा 90 या धारा 91 के अधीन छूट अनुदत्त करने वाली कोई भी अधिसूचना ऐसे निकाली जा सकेगी जिससे कि वह ऐसी तारीख को जो, उसमें विनिर्दिष्ट की जाए [भविष्यलक्षी रूप सेट प्रभावी हो ।]
[91कक. केन्द्रीय सरकार का समुचित सरकार होना-इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे राज्यों में जिनमें चिकित्सा प्रसुविधा निगम द्वारा उपलब्ध कराई जाती है, अवस्थित स्थापनों की बाबत केन्द्रीय सरकार समुचित सरकार होती ।]
[91ख. प्रसुविधाओं का दुरुपयोग-यदि केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि इस अधिनियम के अधीन प्रसुविधाओं का किसी कारखाने या स्थापन में बीमाकृत व्यक्तियों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है, तो वह सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे व्यक्तियों को ऐसी प्रसुविधाओं से जो वह ठीक समझे, निर्हकित कर सकेगीः
परंतु कोई ऐसा आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक संबंधित कारखाने या स्थापन, बीमाकृत व्यक्तियों और व्यवसाय संघ अधिनियम, 1926 (1926 का 16) के अधीन रजिस्ट्रीकृत ऐसे व्यवसाय संघों को, जिनके सदस्य उस कारखाने या स्थापन में हैं, सुनवाई का उचित अवसर नहीं दे दिया जाता है ।
91ग. हानियों का अपलिखित किया जाना-ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं जहां निगम की यह राय है कि निगम को देय अभिदाय, ब्याज और नुकसानी अवसूलीय है, वहां निगम, उक्त रकम का अंतिम रूप से अपलिखित किया जाना मंजूर कर सकेगा ।]
92. केन्द्रीय सरकार की निदेश देने की शक्ति- [(1)] केन्द्रीय सरकार राज्य सरकार को, इस अधिनियम का कार्यान्वयन उस राज्य में करने के लिए निदेश दे सकेगी ।
[(2) केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर, निगम को अधिनियम के दक्षतापूर्ण प्रशासन के लिए ऐसे निदेश दे सकेगी जो वह ठीक समझे और यदि कोई ऐसा निदेश दिया जाता है तो निगम ऐसे निदेश का पालन करेगा ।]
93. निगम के अधिकारियों और सेवकों का लोकसेवक होना-निगम के सभी अधिकारी और सेवक भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोकसेवक समझे जाएंगे ।
[93क. स्थापन के अन्तरण की दशा में दायित्व-जहां किसी कारखाने या स्थापन के संबंध में कोई नियोजक, उस कारखाने या स्थापन का, विक्रय, दान, पट्टे या अनुज्ञप्ति द्वारा या किसी भी अन्य रीति में, पूर्णतः या भागतः अन्तरण करेगा, वहां नियोजक और ऐसा व्यक्ति जिसे कारखाना या स्थापन इस प्रकार अन्तरित किया गया है, ऐसे अन्तरण की तारीख तक की कालावधियों की बाबत इस अधिनियम के अधीन संदेय किसी अभिदाय या किसी अन्य रकम के संबंध में देय रकम का संदाय करने के लिए संयुक्ततः और पृथक्तः जिम्मेदार होंगेः
परन्तु अन्तरिती का दायित्व ऐसे अन्तरण के जरिए उसके द्वारा अभिप्राप्त आस्तियों के मूल्य तक सीमित होगा ।]
94. निगम को शोध्य अभिदायों आदि को अन्य ऋणों पर पूर्विकता प्राप्त होना-यह समझा जाएगा कि उन ऋणों के अन्तर्गत जिन्हें प्रेसिडेंसी नगर दिवाला अधिनियम, 1909 (1909 का 3) की धारा 49 के अधीन, या प्रांतीय दिवाला अधिनियम, 1920 (1920 का 5) की धारा 61 के अधीन, [या दिवाला संबंधी किसी ऐसी विधि के अधीन जो उन राज्यक्षेत्रों में प्रवृत्त थी,] [जो 1 नवंबर, 1956 से ठीक पहले के किसी भाग ख राज्य में समाविष्ट थे,] [या कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 530 के अधीन] दिवालिए की सम्पत्ति के वितरण में, या परिसमापनाधीन किसी कम्पनी की आस्तियों के वितरण में, अन्य सब ऋणों पर पूर्विकता देकर चुकाया जाना है, इस अधिनियम के अधीन संदेय अभिदाय की बाबत शोध्य रकम, या कोई अन्य रकम, जिसका दायित्व, यथास्थिति, दिवालिए के न्यायनिर्णयन के आदेश की तारीख से, या परिसमापन की तारीख से पूर्व प्रोद्भूत हुआ हो, आती है ।
[94क. शक्तियों का प्रत्यायोजन-निगम, और इस निमित्त निगम द्वारा बनाए गए विनियमों के अध्यधीन रहते हुए, स्थायी समिति, निदेश दे सकेगी कि वे सभी शक्तियां और कृत्य या उनमें से कोई भी जिनका, यथास्थिति, निगम या स्थायी समिति द्वारा प्रयोग या पालन किया जा सकेगा, ऐसे विषयों के संबंध में और ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अध्यधीन रहते हुए, जैसे या जैसी विनिर्दिष्ट किए या की जाएं, निगम के अधीनस्थ किसी अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा भी प्रयोक्तव्य होंगे ।]
95. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार [निगम से परामर्श के पश्चात् और] पूर्व प्रकाशन की शर्त के अध्यधीन रहते हुए, इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी बनाने के प्रयोजन के लिए ऐसे नियम बना सकेगी जो इस अधिनियम से असंगत न हों ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी विषयों के लिए या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्ः-
[(क) मजदूरी की वह सीमा जिसके परे किसी व्यक्ति को कर्मचारी नहीं समझा जाएगा;
(कख) धारा 17 की उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए अधिकतम मासित वेतन की सीमा;]
[(कग) वह रीति जिससे निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के [सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी और उनका निर्वाचन किया जाएगा;]
(ख) निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के अधिवेशनों में गणपूर्ति और इन निकायों के उन अधिवेशनों की न्यूनतम संख्या जो एक वर्ष में किए जाएंगे;
(ग) वे अभिलेख जो कार्य करने के लिए निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् द्वारा रखे जाएंगे;
(घ) [महानिदेशक और वित्त आयुक्त] की शक्तियां और कर्तव्य और उनकी सेवा की शर्तें;
(ङ) चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् की शक्तियां और कर्तव्य;
[(ङक) व्यय के वे प्रकार, जिन्हें प्रशासनिक व्यय कहा जा सकेगा निगम की आय का वह प्रतिशत जिसे ऐसे व्ययों के लिए खर्च किया जा सकेगा;
(ङख) अभिदायों की दरें और मजदूरी की वे सीमाएं जिनसे कम होने पर कर्मचारी अभिदाय का संदाय करने के दायित्व के अधीन नहीं होंगे;
(ङग) औसत दैनिक मजदूरी की संगणना की रीति;
(ङघ) वसूली अधिकारी द्वारा रकम वसूल करने के लिए प्रमाणपत्र को प्रमाणित करने की रीति;
(ङङ) अंत्येष्टि व्यय की रकम;
(ङच) बीमारी-प्रसुविधा, प्रसूति-प्रसुविधा, निःशक्तता-प्रसुविधा और आश्रित-प्रसुविधा की अर्हताएं, शर्तें, दरें और कालावधि;
[(ङचच) आश्रित माता-पिता की सभी स्त्रोतों से आय;]
(ङछ) ऐसे बीमाकृत व्यक्तियों के लिए, जो स्थायी निःशक्तता के कारण बीमायोग्य नियोजन में नहीं हैं, चिकित्सा-प्रसुविधाएं, प्रदान करने की शर्तें;
(ङज) ऐसे व्यक्तियों के लिए, जो अधिवर्षिता की आयु प्राप्त कर चुके हैं, चिकित्सा-प्रसुविधाएं प्रदान करने के लिए शर्तें;]
[(ङजज) वे शर्तें जिनके अधीन बीमाकृत व्यक्ति और ऐसे बीमाकृत व्यक्ति के, जिसने अधिवर्षिता की आयु प्राप्त कर ली है, पति या पत्नी को ऐसे व्यक्ति जो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्कीम के अधीन सेवानिवृत्त होता है और ऐसे व्यक्ति को जो समयपूर्व सेवानिवृत्ति लेता है, चिकित्सा प्रसुविधाएं सेदंय होंगी ;]
[ [(ङझ)] वह रीति जिससे और वह समय जिसके भीतर चिकित्सा अपील अधिकरणों या कर्मचारी बीमा न्यायालयों को अपीलें की जा सकेंगी;]
(च) वह प्रक्रिया जो संविदाओं के निष्पादन में अपनाई जाएगी;
(छ) निगम द्वारा सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन;
(ज) उधार लेना और चुकाना;
(झ) निगम की निधियों का और किसी भविष्य-निधि या अन्य प्रसुविधा-निधि का विनिधान और उनका अन्तरण या आपन;
(ञ) वह आधार, जिस पर निगम की आस्तियों और दायित्वों का कालिक मूल्यांकन किया जाएगा;
(ट) वह बैंक या वे बैंक, जिसमें या जिनमें निगम की निधियां निक्षिप्त की जा सकेंगी, वह प्रक्रिया जिसका निगम को प्रोद्भूत होने वाले या संदेय होने वाले धनों के जमा कराने के संबंध में अनुसरण किया जाएगा, और वह रीति जिससे कोई राशियां निगम की निधियों में से संदत्त की जा सकेंगी और वे अधिकारी जिनके द्वारा ऐसा संदाय प्राधिकृत किया जा सकेगा;
(ठ) वे लेखे जो निगम द्वारा रखे जाएंगे और वे प्ररूप जिनमें ऐसे लेखे रखे जाएंगे और वे समय, जिन पर ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा की जाएगी;
(ड) निगम के लेखाओं और संपरीक्षकों की रिपोर्टों का प्रकाशन, वह कार्रवाई जो संपरीक्षा रिपोर्ट पर की जाएगी, व्यय की मदों को अननुज्ञात करने और अधिभारित करने की संपरीक्षकों की शक्तियां और इस प्रकार अननुज्ञात या अधिभारित राशियों की वसूली;
(ढ) बजट प्राक्कलनों और अनुपूरक प्राक्कलनों की तैयारी और वह रीति जिससे ऐसे प्राक्कलन मंजूर और प्रकाशित किए जाएंगे;
(ण) निगम के अधिकारियों और सेवकों के लिए भविष्य-निधि या अन्य प्रसुविधा-निधि का स्थापन और अनुरक्षण; ***
[(णक) किसी बीमाकृत व्यक्ति की दोषसिद्धि के मामले में नकद प्रसुविधा के लिए हकदार न होने की कालावधि;]
(त) कोई भी विषय, जिसका केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाना इस अधिनियम द्वारा अपेक्षित या अनुज्ञात है ।
[(2क) इस धारा द्वारा प्रदत्त नियम बनाने की शक्ति के अन्तर्गत नियमों या उनमें से किसी को उस तारीख से, जो इस अधिनियम के प्रारंभ की तारीख से पूर्वतर न हो, भूतलक्षी प्रभाव देने की शक्ति होगी किन्तु किसी नियम को ऐसा भूतलक्षी प्रभाव नहीं दिया जाएगा, जिसमें निगम से भिन्न किसी ऐसे व्यक्ति के हित पर, जिसको ऐसा नियम लागू हो सकता हो, प्रतिकूल प्रभाव पड़े ।]
(3) इस धारा के अधीन बनाए गए नियम शासकीय राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे और तदुपरि इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो वे इस अधिनियम में अधिनियमित हों ।
2[(4) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में [अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उक्त सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्वट दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किंतु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]
96. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-(1) राज्य सरकार [निगम से परामर्श के पश्चात् और] पूर्व प्रकाशन की शर्त के अध्यधीन रहते हुए निम्नलिखित सभी विषयों के लिए या उनमें से किसी के लिए ऐसे नियम बना सकेगी जो इस अधिनियम से असंगत न हों, अर्थात्ः-
(क) कर्मचारी बीमा न्यायलयों का गठन, उन व्यक्तियों की अर्हताएं जो उसके न्यायाधीश नियुक्त किए जा सकेंगे और ऐसे न्यायाधीशों की सेवा की शर्तें;
(ख) वह प्रक्रिया जिसका ऐसे न्यायालयों के समक्ष की कार्यवाहियों में अनुसरण किया जाएगा और ऐसे न्यायालयों द्वारा किए गए आदेशों का निष्पादन;
(ग) कर्मचारी बीमा न्यायालय को किए गए आवेदनों की बाबत संदेय फीस, ऐसे न्यायालय में की कार्यवाहियों के आनुषंगिक खर्चे, वह प्ररूप जिसमें उसको आवेदन किए जाने चाहिएं और ऐसे आवेदनों में विनिर्दिष्ट की जाने वाली विशिष्टियां;
(घ) अस्पतालों, औषधालयों और अन्य संस्थाओं की स्थापना, बीमाकृत व्यक्तियों या उनके कुटुम्बों को ऐसे किसी अस्पताल, औषधालय या अन्य संस्था का आबंटन;
(ङ) उस चिकित्सा प्रसुविधा का पैमाना जिसका किसी अस्पताल, क्लिनिक, औषधालय या संस्था में उपबंध किया जाएगा, चिकित्सीय अभिलेखों का रखा जाना और सांख्यिकीय विवररणियों का दिया जाना;
[(ङङ) संगठन की स्थापना के लिए, संगठनात्मक संरचना, कृत्य, शक्तियां, क्रियाकलाप और अन्य विषय;]
(च) उस कर्मचारिवृन्द, उपस्कर और औषधियों का प्रकार और परिमाण जिनका ऐसे अस्पतालों, औषधालयों और संस्थाओं में उपबंध किया जाएगा;
(छ) ऐसे अस्पतालों, औषधालयों और संस्थाओं में नियोजित कर्मचारिवृन्द की सेवा की शर्तें; तथा
(ज) कोई भी अन्य विषय जिसका राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाना इस अधिनियम द्वारा अपेक्षित या अनुज्ञात है ।
(2) इस धारा के अधीन बनाए गए नियम शासकीय राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे और तदुपरि इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो वे इस अधिनियम में अधिनियमित हों ।
[(3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, राज्य विधानद-मंडल के, जहां दो सदन हों, प्रत्येक सदन के समक्ष या जहां ऐसे विधान-मंडल में एक सदन है, वहां उस सदन के समक्ष रखा जाएगा ।]
97. निगम की विनियम बनाने की शक्ति-(1) निगम, *** पूर्व प्रकाशन की शर्त के अध्यधीन रहते हुए, निगम के कामकाज के प्रशासन के लिए और इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए ऐसे विनियम बना सकेगा, जो इस अधिनियम और तद्धीन बनाए गए नियमों से असंगत न हों ।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम निम्नलिखित सभी विषयों के लिए या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्ः-
(i) निगम, स्थायी समिति और चिकित्सा प्रसुविधा परिषद् के अधिवेशनों का समय और स्थान और वह प्रक्रिया जिसका ऐसे अधिवेशनों में अनुसरण किया जाएगा;
[(iक) वह समय जिसके भीतर और वह रीति जिससे कारखाना या स्थापन रजिस्ट्रीकृत किया जाएगा;]
(ii) वे विषय जो विनिश्चय के लिए स्थायी समिति द्वारा निगम को निर्देशित किए जाएंगे;
(iii) वह रीति, जिससे इस अधिनियम के अधीन संदेय कोई अभिदान निर्धारित और संगृहीत किया जाएगा;
[(iiiक) अभिदायों के विलंबित संदाय पर ब्याज की बारह प्रतिशत से उच्चतर दर;]
(iv) इस अधिनियम के अधीन संदेय अभिदाय को नियत करने के प्रयोजन के लिए मजदूरी की संगणना;
[(ivक) कर्मचारियों का रजिस्टर अव्यवहित नियोजक द्वारा रखा जाना;
(ivख) किसी ऐसे दिन को जिसको व्यक्ति काम करता है या छुट्टी या अवकाश पर रहता है जिसकी बाबत वह मजदूरी प्राप्त करता है अथवा किसी ऐसे दिन के लिए जिसको वह हड़ताल पर रहता है, अस्थायी निःशक्तता के लिए बीमारी-प्रसुविधा या निःशक्तता-प्रसुविधा की हकदारी;]
(v) किसी नकद प्रसुविधा के लिए बीमारी और पात्रता का प्रमाणन;
[(vi) यह अवधारित करने की पद्धति कि क्या बीमाकृत व्यक्ति तृतीय अनुसूची में विनिर्दिष्ट रोगों में से एक या अधिक से पीड़ित है;]
(vii) किसी ऐसी प्रसुविधा का, जो नकद प्रसुविधा नहीं है, धन के रूप में मूल्य निर्धारित करना;
(viii) वह समय जिसके भीतर [और वह प्ररूप और रीति जिसमेंट प्रसुविधा के लिए कोई दावा किया जा सकेगा, और वे विशिष्टियां जो ऐसे दावे में विनिर्दिष्ट की जाएंगी;
(ix) वे परिस्थितियां जिनमें कोई ऐसा कर्मचारी, जिसे निःशक्तता प्रसुविधा मिल रही है, पदच्युत, उन्मोचित या अवनत किया जा सकेगा या अन्यथा दंडित किया जा सकेगा;
(x) वह रीति जिससे और वह स्थान जहां और वह समय जब कोई प्रसुविधा दी जाएगी;
(xi) संदेय नकद प्रसुविधा की रकम की गणना करने की पद्धति और वे परिस्थितियां जिनमें और वह विस्तार जिस तक निःशक्तता प्रसुविधा और आश्रित-प्रसुविधा का संराशीकरण अनुज्ञात किया जा सकेगा और संराशीकरण-मूल्य की गणना करने की पद्धति;
(xii) गर्भावस्था की या प्रसवावस्था की सूचना और बीमारी की सूचना और सबूत;
[(xiiक) उस प्राधिकारी का विनिर्दिष्ट किया जाना जो प्रसूति-प्रसुविधा के लिए पात्रता का प्रमाण-पत्र देने के लिए सक्षम होगा;
(xiiख) किसी बीमाकृत स्त्री द्वारा यह नामनिर्देशित किए जाने की रीति कि उसकी या उसके बच्चे की मृत्यु हो जाने की दशा में प्रसूति-प्रसुविधा किसे संदत्त की जाए;
(xiiग) प्रसूति-प्रसुविधा या अतिरिक्त प्रसूति-प्रसुविधा के दावे के समर्थन में सबूत का पेश किया जाना;
(xiii) वे दशाएं जिनमें कोई प्रसुविधा निलम्बित की जा सकेगी;
(xiv) वे शर्तें जिनका किसी व्यक्ति द्वारा तब अनुपालन किया जाना है जब उसे कोई प्रसुविधा प्राप्त हो रही हो, और ऐसे व्यक्तियों की कालिक चिकित्सीय परीक्षाः
। । । ।
(xvi) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए चिकित्सा-व्यवसायियों की नियुक्ति, ऐसे व्यवसायियों के कर्तव्य और चिकित्सक प्रमाणपत्रों का प्ररूप;
3[(xviक) वे अर्हताएं और अनुभव जो बीमारी का प्रमाणपत्र देने के लिए किसी व्यक्ति के पास होने चाहिएं;
(xviख) चिकित्सक बोर्डों और चिकित्सा अपील अधिकरणों का गठन;]
(xvii) वे शास्तियां जो विनियमों के भंग के लिए कर्मचारियों पर जुर्माने द्वारा अधिपोपित की जा सकेंगी (ये शास्तियां प्रथम भंग के लिए दो दिन की मजदूरी से और किसी उत्तरवर्ती भंग के लिए तीन दिन की मजदूरी से अधिक न होंगी);
[(xviiक) शास्ति के रूप में वसूल की जाने वाली नुकसानी की रकम;
(xviiख) किसी रुग्ण औद्योगिक कंपनी के संबंध में नुकसानी में कमी या उसके अधित्यजन के लिए निबंधन और शर्तें ];
(xviii) वे परिस्थितियां जिनमें और वे शर्तें, जिनके अध्यधीन किसी विनियम को शिथिल किया जा सकेगा, वह विस्तार जिस तक ऐसा शिथिलीकरण किया जा सकेगा और वह प्राधिकारी जिसके द्वारा ऐसा शिथिलीकरण अनुदत्त किया जा सकेगा;
[(xix) वे विरवणियां जो प्रधान नियोजकों और अव्यवहित नियोजकों द्वारा निवेदित की जाएंगी और वे रजिस्टर या अभिलेख जो उनके द्वारा रखे जाएंगे, ऐसी विवरणियों, रजिस्टरों या अभिलेखों के प्ररूप और वे समय जब ऐसी विवरणियां निवेदित की जानी चाहिएं और वे विशिष्टियां, जो ऐसी विवरणियों, रजिस्टरों और अभिलेखों में अन्तर्विष्ट होनी चाहिएं;]
(xx) वे [सामाजिक सुरक्षा अधिकारियों] और निगम के अन्य अधिकारियों और सेवकों के कर्तव्य और शक्तियां;
[(xxक) अपील प्राधिकारी का गठन और निगम के पास नियोजक द्वारा जमा की गई रकम पर ब्याज ;]
2[(xxi) [महानिदेशक और वित्त आयुक्त] से भिन्न निगम के अधिकारियों और सेवकों की भर्ती की पद्धति, वेतन और भत्ते, अनुशासन, अधिवार्षिकी प्रसुविधाएं और सेवा की अन्य शर्तें;]
(xxii) वह प्रक्रिया जिसका अनुसरण निगम को अभिदाय प्रेषत करने में किया जाएगा; तथा
(xxiii) कोई ऐसा विषय, जिसकी बाबत इस अधिनियम द्वारा विनियमों का बनाया जाना अपेक्षित या अनुज्ञात है ।
[(2क) पूर्व प्रकाशन की शर्त उपधारा (2) के खंड (xxi) में विनिर्दिष्ट प्रकार के विनियमों को लागू नहीं होगी ।]
(3) निगम द्वारा बनाए गए विनियम भारत के राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे और तदुपरि इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो वे इस अधिनियम में अधिनियमित हों ।
[(4) प्रत्येक विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, निगम द्वारा केन्द्रीय सरकार को भेजा जाएगा और वह सरकार उसकी एक प्रति संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखवाएगी । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]
98. [निगम भाग ख राज्यों में कर्तव्यों का भार अपने ऊपर ले सकेगा ।]-कर्मचारी राज्य बीमा (संशोधन) अधिनियम, 1951 (1951 का 53) की धारा 26 द्वारा निरसित ।
[99. प्रसुविधाओं का वर्धन-किसी भी समय जब निगम की निधियां इस प्रकार अनुज्ञात करें तब वह इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञेय किसी प्रसुविधा के पैमाने में और उस कालावधि में जिसके लिए ऐसी प्रसुविधा दी जा सकेगी, वृद्धि कर सकेगा और बीमाकृत व्यक्तियों के कुटुम्बों के लिए चिकित्सीय देखरेख के खर्च का उपबंध कर सकेगा या उसके प्रति अभिदाय कर सकेगा ।]
[99क. कठिनाइयां दूर करने की शक्ति-(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावशाली करने में कोई कठिनाई पैदा हो तो केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध कर सकेगी या ऐसे निदेश दे सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों और जो उसे उस कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों ।
(2) इस धारा के अधीन किया गया कोई भी आदेश, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किन्हीं भी नियमों या विनियमों में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होगा ।]
[100. निरसन और व्यावृत्तियां-यदि उस दिन से ठीक पहले जिसको यह अभिनियम [उन राज्यक्षेत्रों के, जो 1 नवम्बर, 1956 से ठीक पहले किसी भाग ख राज्य में समाविष्ट थे, किसी भाग में,] प्रवृत्त होता है, इस अधिनियम की तत्स्थानी कोई विधि [उस भाग] में प्रवृत्त है, तो वह विधि उस दिन निरसित हो जाएगीः
परन्तु वह निरसन-
(क) ऐसी किसी विधि के पूर्व प्रवर्तन पर, अथवा
(ख) ऐसी किसी विधि के विरुद्ध किए गए किसी अपराध की बाबत उपगत किसी शास्ति, समपहरण या दंड पर, अथवा
(ग) ऐसे किसी अन्वेषण या उपचार पर जो ऐसी किसी शास्ति, समपहरण या दंड की बाबत हो,
प्रभाव नहीं डालेगा, और ऐसा अन्वेषण, विधिक कार्यवाही या उपचार वैसे ही संस्थित किया जा सकेगा, चालू रखा जा सकेगा या प्रवर्तित कराया जा सकेगा और ऐसी शास्ति, समपहरण या दंड वैसे ही अधिरोपित किया जा सकेगा, मानो यह अधिनियम पारित न किया गया होः
परन्तु यह और कि ऐसी किसी विधि के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई, पूर्ववर्ती परन्तुक के अध्यधीन रहते हुए, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंध के अधीन की गई समझी जाएगी और वह तद्नुसार तब तक प्रवृत्त रहेगी जब तक कि वह इस अधिनियम के अधीन की गई किसी बात या कार्रवाई द्वारा अतिष्ठित नहीं कर दी जाती ।]
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