अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

-:अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989:-

(1989 का अधिनियम संख्यांक 33)


अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नामविस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारणअधिनियम, 1989 है 

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है 

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकारराजपत्र में अधिसूचना द्वारानियत करे 

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम मेंजब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित  हो, -

                (अत्याचारसे धारा 3 के अधीन दंडनीय अपराध अभिप्रेत है;

                (संहितासे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) अभिप्रेत है;

(अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियोंके वही अर्थ हैं जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (24) और खंड (25) में हैं;

(विशेष न्यायालयसे धारा 14 में विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कोई सेशन न्यायालय अभिप्रेत है;

(विशेष लोक अभियोजकसे विशेष लोक अभियोजक के रूप में विनिर्दिष्ट लोक अभियोजक या धारा 15 में निर्दिष्ट अधिवक्ता अभिप्रेत है

(उन शब्दों और पदों केजो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किन्तु परिभाषित नहीं हैं और संहिता या भारतीय दंड संहिता में परिभाषित हैंवही अर्थ हैं जोयथास्थितिसंहिता में या भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) में है 

                (2) इस अधिनियम में किसी अधिनियमिति या उसके किसी उपबंध के प्रति किसी निर्देश का अर्थ किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में जिसमें ऐसी अधिनियमिति या ऐसा उपबंध प्रवृत्त नहीं हैयह लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधियदि कोई होके प्रति निर्देश है  

अध्याय 2

अत्याचार के अपराध

3. अत्याचार के अपराधों के लिए दंड-(1) कोई भी व्यक्तिजो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, -

(i) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूर करेगा;

(ii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के परिसर या पड़ोस में मल-मूत्रकूड़ापशु-शव या कोई अन्य घृणाजनक पदार्थ इकट्ठा करके उसे क्षति पहुंचानेअपमानित करने या क्षुब्ध करने के आशय से कार्य करेगा

(iii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़े उतारेगा या उसे नंगा या उसके चेहरे या शरीर को पोतकर घुमाएगा या इसी प्रकार का कोई अन्य ऐसा कार्य करेगा जो मानव के सम्मान के विरुद्ध है;

(iv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के स्वामित्वाधीन या उसे आबंटित या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे आबंटित किए जाने के लिए अधिसूचित किसी भूमि को सदोष अधिभोग में लेगा या उस पर खेती करेगा या उसे आंबटित भूमि को अंतरित करा लेगा

(v) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उसकी भूमि या परिसर से सदोष बेकब्जा करेगा या किसी भूमिपरिसर या जल पर उसके अधिकारों के उपभोग में हस्तक्षेप करेगा;

(vi) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को स्त्र्बेगारऱ् करने के लिए या सरकार द्वारा लोक प्रयोजनों के लिए अधिरोपित किसी अनिवार्य सेवा से भिन्न अन्य समरूप प्रकार के बलात्श्रम या बंधुआ मजदूरी के लिए विवश करेगा या फुसलाएगा;

(vii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को मतदान  करने के लिए या किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने के लिए या विधि द्वारा उपबन्धित से भिन्न रीति से मतदान करने के लिए मजबूर या अभित्रस्त करेगा;

(viii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध मिथ्याद्वेषपूर्ण या तंग करने वाला वाद या दाण्डिक या अन्य विधिक कार्यवाही संस्थित करेगा;

(ix) किसी लोकसेवक को कोई मिथ्या या तुच्छ जानकारी देगा और उसके द्वारा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति पहुंचाने या क्षुब्ध करने के लिए ऐसे लोक सेवक से उसकी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कराएगा;

(x) जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य का अपमान करने के आशय से साशय उसको अपमानित या अभित्रस्त करेगा;

(xi) अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला का अनादर करने या उसकी लज्जा भंग करने के आशय से हमला या बल प्रयोग करेगा;

(xii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में होने पर उस स्थिति का प्रयोग उसका लैंगिक शोषण करने के लिएजिसके लिए वह अन्यथा सहमत नहीं होतीकरेगा;

(xiii) किसी स्रोतजलाशय या किसी अन्य उद्गम के जल को जो आमतौर पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लाया जाता हैदूषित या गंदा करेगा जिससे कि वह उस प्रयोजन के लिए कम उपयुक्त हो जाए जिसके लिए उसका आमतौर पर प्रयोग किया जाता है;

(xiv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को सार्वजनिक अभिगम के स्थान के मार्ग के किसी रूढ़िजन्य अधिकार से वंचित करेगा या ऐसे सदस्य को बाधा पहुंचाएगा जिससे कि वह ऐसे सार्वजनिक अभिगम के स्थान का उपयोग करने या वहां पहुंचने से निवारित हो जाए जहां जनता के अन्य सदस्यों या उसके किसी भाग को उपयोग करने का या पहुंचने का अधिकार है;

(xv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकानगांव या अन्य निवास-स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करेगा या कराएगा,

वहकारावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगीऔर जुर्माने सेदंडनीय होगा 

                (2) कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है-

(i) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लिए जो तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्यु दंड से दंडनीय हैदोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि इससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य हैवह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दंडनीय होगाऔर यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्दोष सदस्य को ऐसे मिथ्या या गढ़े हुए साक्ष्य के फलस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है और फांसी दी जाती है तो वह व्यक्तिजो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देता है या गढ़ता हैमुत्यु दंड से दंडनीय होगा;

(ii) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को ऐसे अपराध के लिए जो मुत्यु दंड से दंडनीय नहीं है किंतु सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय हैदोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि उससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य हैवह कारावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकेगी और जुर्माने सेदंडनीय होगा;

(iii) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य की किसी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है वह करावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगीऔर जुर्माने से, दंडनीय होगा;

(iv) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय किसी ऐसे भवन को जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैनष्ट करता है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य हैवह आजीवन कारावास सेऔर जुर्माने से दंडनीय होगा;

(v) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय कोई अपराध किसी व्यक्ति या सम्पत्ति के विरुद्ध इस आधार पर करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की हैवह आजीवन कारावास सेऔर जुर्माने सेदंडनीय होगा;

(iv) यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि इस अध्याय के अधीन कोई अपराध किया गया हैवह अपराध किए जाने के किसी साक्ष्य कोअपराधी को विधिक दंड से बचाने के आशय से गायब करेगा या उस आशय से अपराध के बारे में कोई ऐसी जानकारी देगा जो वह जानता है या विश्वास करता है कि वह मिथ्या हैवह उस अपराध के लिए उपबन्धित दंड से दंडनीय होगाया

(vii) लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगावह कारावास सेजिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगीदंडनीय होगा 

4. कर्तव्यों की उपेक्षा के लिए दंड-कोई भी लोक सेवकजो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैइस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा पालन किए जाने के लिए अपेक्षित अपने कर्तव्यों की जानबूझकर उपेक्षा करेगावह कारावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु जो एक वर्ष तक की हो सकेगी दंडनीय होगा 

5. पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि के लिए वर्धित दंड-कोई व्यक्तिजो इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्ध हो चुका हैदूसरे अपराध या उसके पश्चात्वर्ती किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता हैवह कारावास सेजिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगीदंडनीय होगा 

6. भारतीय दंड संहिता के कतिपय उपबंधों का लागू होना-इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुएभारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 34, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 5धारा 149 और अध्याय 23 के उपबंधजहां तक हो सकेइस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे भारतीय दंड संहिता के प्रयोजनों के लिए लागू होते हैं 

7. कतिपय व्यक्तियों को संपत्ति का समपहरण-(1) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया हैवहां विशेष न्यायालयकोई दंड देने के अतिरिक्तलिखित रूप में आदेश द्वारायह घोषित कर सकेगा कि उस व्यक्ति की कोई सम्पत्तिस्थावर या जंगमया दोनोंजिनका उस अपराध को करने में प्रयोग किया गया हैसरकार को समपहृत हो जाएगी 

(2) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन किसी अपराध का अभियुक्त हैवहां उसका विचारण करने वाले वाला विशेष न्यायालय ऐसा आदेश करने के लिए स्वतंत्र होगा कि उसकी सभी या कोई संपत्तिस्थावर या जंगम या दोनोंऐसे विचारण की अवधि के दौरानकुर्क की जाएंगी और जहां ऐसे विचारण का परिणाम दोषिसिद्धि है वहां इस प्रकार कुर्क की गई संपत्ति उस सीमा तक समपहरण के दायित्वाधीन होगी जहां तक वह इस अध्याय के अधीन अधिरोपित किसी जुर्माने की वसूली के प्रयोजन के लिए अपेक्षित है  

8. अपराधों के बारे में उपधारणा-इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजन मेंयदि यह साबित हो जाता   है कि

(अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन अपराध करने के अभियुक्त व्यक्ति कीया युक्तियुक्त रूप से संदेहास्पद व्यक्ति की कोई वित्तीय सहायता की है तो विशेष न्यायालयजब तक कि तत्प्रतिकूल साबित  किया जाएयह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने उस अपराध का दुष्प्रेरणा किया है;

(व्यक्तियों के किसी समूह ने इस अध्याय के अधीन अपराध किया हैऔर यदि यह साबित हो जाता है कि किया गया अपराध भूमि या किसी अन्य विषय के बारे में किसी विद्यमान विवाद का फल है तो यह उपधारणा की जाएगी कि यह अपराध सामान्य आशय या सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किया गया था 

9. शक्ितयों का प्रदान किया जाना-(1) संहिता में या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध में किसी बात के होते हुए भीयदि राज्य सरकार ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझती हैतो वह-

                                (इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के निवारण के लिए और उससे निपटाने के लिएया

                                (इस अधिनियम के अधीन किसी मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिए,

किसी जिले या उनके किसी भाग मेंराज्य सरकार के किसी अधिकारी को राजपत्र में अधिसूचना द्वाराऐसे जिले या उसके भाग में संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा प्रयोक्तव्य शक्तियां यायथास्थितिऐसे मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिएऔर विशिष्टतया किसी विशेष न्यायालय के समक्ष व्यक्तियों की गिरफ्तारीअन्वेषण और अभियोजन की शक्तियां प्रदान कर सकेगी 

                (2) पुलिस के सभी अधिकारी और सरकार के अन्य सभी अधिकारी इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियमस्कीम या आदेश के उपबंधों के निष्पादन में उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी की सहायता करेंगे 

                (3) संहिता के उपबंधजहां तक हो सकेउपधारा (1) के अधीन किसी अधिकारी द्वारा शक्तियों के प्रयोग के संबंध में लागू होंगे 

अध्याय 3

निष्कासन

10. ऐसे व्यक्ति का हटाया जाना जिसके द्वारा अपराध किए जाने की संभावना है-(1) जहां विशेष न्यायालय कापरिवाद या पुलिस रिपोर्ट परयह समाधान हो जाता है कि संभाव्यता है कि कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 224 में यथानिर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रोंऱ् या स्त्र्जनजाती क्षेत्रों में सम्मिलित किसी क्षेत्र में इस अधिनियम के अध्याय 2 के अधीन कोई अपराध करेगा वहां वहलिखित आदेश द्वाराऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकेगा कि वह ऐसे क्षेत्र की सीमाओं से परेऐसे मार्ग से होकर और इतने समय के भीतर हट जाएजो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएंऔर दो वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएउस क्षेत्र में जिससे हट जाने का उसे निदेश दिया गया थावापस  लौटे 

                (2) विशेष न्यायालयउपधारा (1) के अधीन आदेश के साथ उस उपधारा के अधीन निर्दिष्ट व्यक्ति को वे आधार संसूचित करेगा जिन पर वह आदेश किया गया है 

                (3) विशेष न्यायालयउस व्यक्ति द्वारा जिसके विरुद्ध ऐसा आदेश किया गया हैया उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर किए गए अभ्यावेदन पर ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे उपधारा (1) के अधीन किए गए आदेश को प्रतिसंहृत या उपान्तरित कर सकेगा 

11. किसी व्यक्ति द्वारा संबंधित क्षेत्र से हटने में असफल रहने और वहां से हटने के पश्चात् उसमें प्रवेश करने की दशा में प्रक्रिया-(1) यदि कोई व्यक्ति जिससे धारा 10 के अधीन किसी क्षेत्र से हट जाने के लिए कोई निदेश जारी किया गया है-

                                (निदेश किए गए रूप में हटने में असफल रहता हैया

                (इस प्रकार हटने के पश्चात् उपधारा (2) के अधीन विशेष न्यायालय की लिखित अनुज्ञा के बिना उस क्षेत्र में ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर प्रवेश करता है,

तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार करा सकेगा और उसे उस क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान परजो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करेपुलिस अभिरक्षा में हटवा सकेगा 

                (2) विशेष न्यायालयलिखित आदेश द्वाराकिसी ऐसे व्यक्ति को जिसके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया हैअनुज्ञा दे सकेगा कि वह उस क्षेत्र में जहां से हट जाने का उसे निदेश दिया गया था ऐसी अस्थायी अवधि के लिए और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुएजो ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएंलौट सकता है और अधिरोपित शर्तों के सम्यक् अनुपालन के लिए उससे अपेक्षा कर सकेगा कि वह प्रतिभू सहित या उसके बिनाबंधपत्र निष्पदित करे 

                (3) विशेष न्यायालय किसी भी समय ऐसी अनुज्ञा को प्रतिसंहृत कर सकेगा 

                (4) ऐसा व्यक्तिजो ऐसी अनुज्ञा से उस क्षेत्र में वापस आता हैजिससे उसे हटने के लिए निदेश दिया गया थाअधिरोपित शर्तों का अनुपालन करेगा और जिस अस्थायी अवधि के लिए लौटने की से अनुज्ञा दी गई थी उसके अवसान पर या ऐसी अस्थायी अवधि के अवसान के पूर्व ऐसी अनुज्ञा के प्रतिसंहृत किए जाने पर ऐसे क्षेत्र से बाहर हट जाएगा और धारा 10 के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के अनवसित भाग के भीतर नई अनुज्ञा के बिना वहां नहीं लौटेगा 

                (5) यदि कोई व्यक्ति अधिरोपित शर्तों में से किसी का पालन करने में या तद्नुसार स्वयं को हटाने में असफल रहेगा या इस प्रकार हट जाने के पश्चात् ऐसे क्षेत्र में नई अनुज्ञा के बिना प्रवेश करेगा या लौटेगा तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार करा सकेगा और उसे उस क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान कोजो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करेपुलिस अभिरक्षा में हटवा सकेगा 

12. ऐसे व्यक्तियों केजिनके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया हैमाप और फोटो आदि लेना-(1) प्रत्येक ऐसा व्यक्तिजिसके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया हैविशेष न्यायालय द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाने परकिसी पुलिस अधिकारी को अपने माप और फोटो लेने देगा 

                (2) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई व्यक्तिजिससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने माप या फोटो लेने देइस प्रकार माप या फोटो लिए जाने का प्रतिरोध करता है या उससे इंकार करता हैतो यह विधिपूर्ण होगा कि माप या फोटो लिए जाने को सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं 

                (3) उपधारा (2) के अधीन लिए जाने वाले माप या फोटो का प्रतिरोध या उससे इंकार करने को भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 186 के अधीन अपराध समझा जाएगा 

                (4) जहां धारा 10 के अधीन किया गया आदेश प्रतिसंहृत कर दिया जाता है वहां उपधारा (2) के अधीन लिए गए सभी माप और फोटो (जिसके अंतर्गत नेगेटिव भी हैंनष्ट कर दिए जाएंगे या उसे व्यक्ति को सौंप दिए जाएंगे जिसके विरुद्ध आदेश किया गया था 

13. धारा 10 के अधीन के अननुपालन के लिए शास्ति-(1) व्यक्तिजो धारा 10 के अधीन किए गए विशेष न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करेगाकारावास सेजिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगीऔर जुर्माने सेदंडनीय होगा 

अध्याय 4

विशेष न्यायालय

14. विशेष न्यायालय-राज्य सरकारशीघ्रविचारण का उपबंध करने के प्रयोजन के लिएउच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति सेराजपत्र में अधिसूचना द्वाराइस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए एक सेशन न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट करेगी 

15. विशेष लोक अभियोजक-राज्य सरकारप्रत्येक विशेष न्यायालय के लिएरापजत्र में अधिसूचना द्वाराएक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता कोजिसने कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि-व्यवसाय    किया होउस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी 

अध्याय 5

प्रकीर्ण

16. राज्य सरकार की सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की शक्ति-सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955(1955 का 22) की धारा 10 के उपबंधजहां तक हो सकेइस अधिनियम के अधीन सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने और उसे वसूल करने के प्रयोजनों के लिए और उससे संबद्ध सभी अन्य विषयों के लिए लागू होंगे 

17. विधि और व्यवस्था तंत्र द्वारा निवारक कार्रवाई-(1) यदि जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट या किसी पुलिस अधिकारी कोजो पुलिस उप-अधीक्षक की पंक्ति से नीचे का  होइत्तिला प्राप्त होने पर और ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह आवश्यक समझेयह विश्वास करने का कारण है कि किसी ऐसे व्यक्ति या ऐसे व्यक्तियों के समूह द्वाराजो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के नहीं हैं और जो उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर किसी स्थान पर निवास करते हैं या बार-बार आते-जाते हैंइस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने की संभावना है या उन्होंने अपराध करने की धमकी दी है और उसकी यह राय है कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त क्षेत्र घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनाए रखने तथा लोक व्यवस्था और प्रशांति बनाए रखने के लिए आवश्यक कार्रवाई कर सकेगा और निवारक कार्रवाई कर सकेगा 

                (2) संहिता के अध्याय 8, अध्याय 10 और अध्याय 11 के उपबंधजहां तक हों सकेउपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए लागू होंगे 

                (3) राज्य सरकारराजपत्र में अधिसूचना द्वाराएक या अधिक स्कीमें वह रीति विनिर्दिष्ट करते हुए बना सकेगा जिससे उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी अत्याचारों के निवारण के लिए तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों में सुरक्षा की भावना पुनः लाने के लिए स्कीम या स्कीमों में विनिर्दिष्ट समुचित कार्रवाई करेंगे 

18. अधिनियम के अधीन अपराध करने वाले व्यक्तियों को संहिता की धारा 438 का लागू  होना-संहिता की धारा 438 की कोई बात इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने के अभियोग पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के किसी मामले के संबंध में लागू नहीं होगी 

19. इस अधिनियम के अधीन अपराध के लिए दोषी व्यक्तियों को संहिता की धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के उपबंध का लागू  होना-संहिता की धारा 360 के उपबंध और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के उपबंध अठारह वर्ष से अधिक आयु के ऐसे व्यक्ति के संबंध में लागू नहीं होंगे जो इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने का दोषी पाया जाता है 

20. अधिनियम का अन्य विधियों पर अध्यारोही होना-इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवायइस अधिनियम के उपबंधतत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या किसी रूढ़ि या प्रथा या किसी अन्य विधि के आधार पर प्रभाव रखने वाले किसी लिखत में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भीप्रभावी होंगे 

21. अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का सरकार का कर्तव्य-(1) राज्य सरकारऐसे नियमों के अधीन रहते हुएजो केन्द्रीय सराकर इस निमित्त बनाएइस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ऐसे उपाय करेगी जो आवश्यक हों 

                (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिनाऐसे उपायों के अंतर्गत निम्नलिखित हो सकेगा, -

(i) ऐसे व्यक्तियों कोजिन पर अत्याचार हुआ हैन्याय प्राप्त करने में समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त सुविधाओं कीजिनके अंतर्गत विधिक सहायता भी हैव्यवस्था;

(ii) इस अधिनियम के अधीन अपराध के अन्वेषण और विचारण के दौरान साक्षियोंजिनके अंतर्गत अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति भी हैंयात्रा और भरणपोषण के व्यय की व्यवस्था;

(iii) अत्याचारों से पीड़ित व्यक्तियों के आर्थिक और सामाजिक पुनरुद्धार की व्यवस्था;

(iv) इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन के लिए अभियोजन प्रारम्भ करने या उनका पर्यवेक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति;

(v) ऐसे समुचित स्तरों परजो राज्य सरकार ऐसे उपायों की रचना या उनके क्रियान्वयन के लिए उस सरकार की सहायता करने के लिए ठीक समझेसमितियों की स्थापना करना;

(vi) इस अधिनियम के उपबंधों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए उपायों का सुझाव देने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबन्धों के कार्यकरण का समय-समय पर सर्वेक्षण करने की व्यवस्था;

(vii) उन क्षेत्रों की पहचान करना जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाजि के सदस्यों पर अत्याचार होने की संभावना है और ऐसे उपाय करना जिससे ऐसे सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके 

                (3) केन्द्रीय सरकार ऐसे उपाय करेगी जो उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकारों द्वारा किए गए उपायों में समन्वय करने के लिए आवश्यक हों 

                (4) केन्द्रीय सरकारप्रत्येक वर्षसंसद् के प्रत्येक सदन के पटल पर इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में स्वयं उसके द्वारा और राज्य सरकारों द्वारा किए गए उपायों के संबंध में एक रिपोर्ट रखेगी 

22. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए सरंक्षण-इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वादअभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध या राज्य सरकार या सरकार के किसी अधिकारी या प्राधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी 

23. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकारराजपत्र में अधिसूचना द्वाराइस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी 

  अध्याय 1

प्रारंभिक

1. संक्षिप्त नामविस्तार और प्रारंभ-(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारणअधिनियम, 1989 है 

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर है 

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकारराजपत्र में अधिसूचना द्वारानियत करे 

2. परिभाषाएं-इस अधिनियम मेंजब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित  हो, -

                (अत्याचारसे धारा 3 के अधीन दंडनीय अपराध अभिप्रेत है;

                (संहितासे दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) अभिप्रेत है;

(अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियोंके वही अर्थ हैं जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (24) और खंड (25) में हैं;

(विशेष न्यायालयसे धारा 14 में विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कोई सेशन न्यायालय अभिप्रेत है;

(विशेष लोक अभियोजकसे विशेष लोक अभियोजक के रूप में विनिर्दिष्ट लोक अभियोजक या धारा 15 में निर्दिष्ट अधिवक्ता अभिप्रेत है

(उन शब्दों और पदों केजो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किन्तु परिभाषित नहीं हैं और संहिता या भारतीय दंड संहिता में परिभाषित हैंवही अर्थ हैं जोयथास्थितिसंहिता में या भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) में है 

                (2) इस अधिनियम में किसी अधिनियमिति या उसके किसी उपबंध के प्रति किसी निर्देश का अर्थ किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में जिसमें ऐसी अधिनियमिति या ऐसा उपबंध प्रवृत्त नहीं हैयह लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधियदि कोई होके प्रति निर्देश है  

अध्याय 2

अत्याचार के अपराध

3. अत्याचार के अपराधों के लिए दंड-(1) कोई भी व्यक्तिजो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, -

(i) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूर करेगा;

(ii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के परिसर या पड़ोस में मल-मूत्रकूड़ापशु-शव या कोई अन्य घृणाजनक पदार्थ इकट्ठा करके उसे क्षति पहुंचानेअपमानित करने या क्षुब्ध करने के आशय से कार्य करेगा

(iii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़े उतारेगा या उसे नंगा या उसके चेहरे या शरीर को पोतकर घुमाएगा या इसी प्रकार का कोई अन्य ऐसा कार्य करेगा जो मानव के सम्मान के विरुद्ध है;

(iv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के स्वामित्वाधीन या उसे आबंटित या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे आबंटित किए जाने के लिए अधिसूचित किसी भूमि को सदोष अधिभोग में लेगा या उस पर खेती करेगा या उसे आंबटित भूमि को अंतरित करा लेगा

(v) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उसकी भूमि या परिसर से सदोष बेकब्जा करेगा या किसी भूमिपरिसर या जल पर उसके अधिकारों के उपभोग में हस्तक्षेप करेगा;

(vi) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को स्त्र्बेगारऱ् करने के लिए या सरकार द्वारा लोक प्रयोजनों के लिए अधिरोपित किसी अनिवार्य सेवा से भिन्न अन्य समरूप प्रकार के बलात्श्रम या बंधुआ मजदूरी के लिए विवश करेगा या फुसलाएगा;

(vii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को मतदान  करने के लिए या किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने के लिए या विधि द्वारा उपबन्धित से भिन्न रीति से मतदान करने के लिए मजबूर या अभित्रस्त करेगा;

(viii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध मिथ्याद्वेषपूर्ण या तंग करने वाला वाद या दाण्डिक या अन्य विधिक कार्यवाही संस्थित करेगा;

(ix) किसी लोकसेवक को कोई मिथ्या या तुच्छ जानकारी देगा और उसके द्वारा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति पहुंचाने या क्षुब्ध करने के लिए ऐसे लोक सेवक से उसकी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कराएगा;

(x) जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य का अपमान करने के आशय से साशय उसको अपमानित या अभित्रस्त करेगा;

(xi) अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला का अनादर करने या उसकी लज्जा भंग करने के आशय से हमला या बल प्रयोग करेगा;

(xii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में होने पर उस स्थिति का प्रयोग उसका लैंगिक शोषण करने के लिएजिसके लिए वह अन्यथा सहमत नहीं होतीकरेगा;

(xiii) किसी स्रोतजलाशय या किसी अन्य उद्गम के जल को जो आमतौर पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लाया जाता हैदूषित या गंदा करेगा जिससे कि वह उस प्रयोजन के लिए कम उपयुक्त हो जाए जिसके लिए उसका आमतौर पर प्रयोग किया जाता है;

(xiv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को सार्वजनिक अभिगम के स्थान के मार्ग के किसी रूढ़िजन्य अधिकार से वंचित करेगा या ऐसे सदस्य को बाधा पहुंचाएगा जिससे कि वह ऐसे सार्वजनिक अभिगम के स्थान का उपयोग करने या वहां पहुंचने से निवारित हो जाए जहां जनता के अन्य सदस्यों या उसके किसी भाग को उपयोग करने का या पहुंचने का अधिकार है;

(xv) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकानगांव या अन्य निवास-स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करेगा या कराएगा,

वहकारावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगीऔर जुर्माने सेदंडनीय होगा 

                (2) कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है-

(i) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लिए जो तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्यु दंड से दंडनीय हैदोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि इससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य हैवह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दंडनीय होगाऔर यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्दोष सदस्य को ऐसे मिथ्या या गढ़े हुए साक्ष्य के फलस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है और फांसी दी जाती है तो वह व्यक्तिजो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देता है या गढ़ता हैमुत्यु दंड से दंडनीय होगा;

(ii) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को ऐसे अपराध के लिए जो मुत्यु दंड से दंडनीय नहीं है किंतु सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय हैदोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि उससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य हैवह कारावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकेगी और जुर्माने सेदंडनीय होगा;

(iii) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य की किसी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है वह करावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगीऔर जुर्माने से, दंडनीय होगा;

(iv) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय किसी ऐसे भवन को जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैनष्ट करता है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य हैवह आजीवन कारावास सेऔर जुर्माने से दंडनीय होगा;

(v) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय कोई अपराध किसी व्यक्ति या सम्पत्ति के विरुद्ध इस आधार पर करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की हैवह आजीवन कारावास सेऔर जुर्माने सेदंडनीय होगा;

(iv) यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि इस अध्याय के अधीन कोई अपराध किया गया हैवह अपराध किए जाने के किसी साक्ष्य कोअपराधी को विधिक दंड से बचाने के आशय से गायब करेगा या उस आशय से अपराध के बारे में कोई ऐसी जानकारी देगा जो वह जानता है या विश्वास करता है कि वह मिथ्या हैवह उस अपराध के लिए उपबन्धित दंड से दंडनीय होगाया

(vii) लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगावह कारावास सेजिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगीदंडनीय होगा 

4. कर्तव्यों की उपेक्षा के लिए दंड-कोई भी लोक सेवकजो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैइस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा पालन किए जाने के लिए अपेक्षित अपने कर्तव्यों की जानबूझकर उपेक्षा करेगावह कारावास सेजिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु जो एक वर्ष तक की हो सकेगी दंडनीय होगा 

5. पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि के लिए वर्धित दंड-कोई व्यक्तिजो इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्ध हो चुका हैदूसरे अपराध या उसके पश्चात्वर्ती किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता हैवह कारावास सेजिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगीदंडनीय होगा 

6. भारतीय दंड संहिता के कतिपय उपबंधों का लागू होना-इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुएभारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 34, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 5धारा 149 और अध्याय 23 के उपबंधजहां तक हो सकेइस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे भारतीय दंड संहिता के प्रयोजनों के लिए लागू होते हैं 

7. कतिपय व्यक्तियों को संपत्ति का समपहरण-(1) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया हैवहां विशेष न्यायालयकोई दंड देने के अतिरिक्तलिखित रूप में आदेश द्वारायह घोषित कर सकेगा कि उस व्यक्ति की कोई सम्पत्तिस्थावर या जंगमया दोनोंजिनका उस अपराध को करने में प्रयोग किया गया हैसरकार को समपहृत हो जाएगी 

(2) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन किसी अपराध का अभियुक्त हैवहां उसका विचारण करने वाले वाला विशेष न्यायालय ऐसा आदेश करने के लिए स्वतंत्र होगा कि उसकी सभी या कोई संपत्तिस्थावर या जंगम या दोनोंऐसे विचारण की अवधि के दौरानकुर्क की जाएंगी और जहां ऐसे विचारण का परिणाम दोषिसिद्धि है वहां इस प्रकार कुर्क की गई संपत्ति उस सीमा तक समपहरण के दायित्वाधीन होगी जहां तक वह इस अध्याय के अधीन अधिरोपित किसी जुर्माने की वसूली के प्रयोजन के लिए अपेक्षित है  

8. अपराधों के बारे में उपधारणा-इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजन मेंयदि यह साबित हो जाता   है कि

(अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन अपराध करने के अभियुक्त व्यक्ति कीया युक्तियुक्त रूप से संदेहास्पद व्यक्ति की कोई वित्तीय सहायता की है तो विशेष न्यायालयजब तक कि तत्प्रतिकूल साबित  किया जाएयह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने उस अपराध का दुष्प्रेरणा किया है;

(व्यक्तियों के किसी समूह ने इस अध्याय के अधीन अपराध किया हैऔर यदि यह साबित हो जाता है कि किया गया अपराध भूमि या किसी अन्य विषय के बारे में किसी विद्यमान विवाद का फल है तो यह उपधारणा की जाएगी कि यह अपराध सामान्य आशय या सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किया गया था 

9. शक्ितयों का प्रदान किया जाना-(1) संहिता में या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध में किसी बात के होते हुए भीयदि राज्य सरकार ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझती हैतो वह-

                                (इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के निवारण के लिए और उससे निपटाने के लिएया

                                (इस अधिनियम के अधीन किसी मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिए,

किसी जिले या उनके किसी भाग मेंराज्य सरकार के किसी अधिकारी को राजपत्र में अधिसूचना द्वाराऐसे जिले या उसके भाग में संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा प्रयोक्तव्य शक्तियां यायथास्थितिऐसे मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिएऔर विशिष्टतया किसी विशेष न्यायालय के समक्ष व्यक्तियों की गिरफ्तारीअन्वेषण और अभियोजन की शक्तियां प्रदान कर सकेगी 

                (2) पुलिस के सभी अधिकारी और सरकार के अन्य सभी अधिकारी इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियमस्कीम या आदेश के उपबंधों के निष्पादन में उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी की सहायता करेंगे 

                (3) संहिता के उपबंधजहां तक हो सकेउपधारा (1) के अधीन किसी अधिकारी द्वारा शक्तियों के प्रयोग के संबंध में लागू होंगे 

अध्याय 3

निष्कासन

10. ऐसे व्यक्ति का हटाया जाना जिसके द्वारा अपराध किए जाने की संभावना है-(1) जहां विशेष न्यायालय कापरिवाद या पुलिस रिपोर्ट परयह समाधान हो जाता है कि संभाव्यता है कि कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 224 में यथानिर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रोंऱ् या स्त्र्जनजाती क्षेत्रों में सम्मिलित किसी क्षेत्र में इस अधिनियम के अध्याय 2 के अधीन कोई अपराध करेगा वहां वहलिखित आदेश द्वाराऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकेगा कि वह ऐसे क्षेत्र की सीमाओं से परेऐसे मार्ग से होकर और इतने समय के भीतर हट जाएजो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएंऔर दो वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएउस क्षेत्र में जिससे हट जाने का उसे निदेश दिया गया थावापस  लौटे 

                (2) विशेष न्यायालयउपधारा (1) के अधीन आदेश के साथ उस उपधारा के अधीन निर्दिष्ट व्यक्ति को वे आधार संसूचित करेगा जिन पर वह आदेश किया गया है 

                (3) विशेष न्यायालयउस व्यक्ति द्वारा जिसके विरुद्ध ऐसा आदेश किया गया हैया उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आदेश की तारीख से तीस दिन के भीतर किए गए अभ्यावेदन पर ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे उपधारा (1) के अधीन किए गए आदेश को प्रतिसंहृत या उपान्तरित कर सकेगा 

11. किसी व्यक्ति द्वारा संबंधित क्षेत्र से हटने में असफल रहने और वहां से हटने के पश्चात् उसमें प्रवेश करने की दशा में प्रक्रिया-(1) यदि कोई व्यक्ति जिससे धारा 10 के अधीन किसी क्षेत्र से हट जाने के लिए कोई निदेश जारी किया गया है-

                                (निदेश किए गए रूप में हटने में असफल रहता हैया

                (इस प्रकार हटने के पश्चात् उपधारा (2) के अधीन विशेष न्यायालय की लिखित अनुज्ञा के बिना उस क्षेत्र में ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर प्रवेश करता है,

तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार करा सकेगा और उसे उस क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान परजो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करेपुलिस अभिरक्षा में हटवा सकेगा 

                (2) विशेष न्यायालयलिखित आदेश द्वाराकिसी ऐसे व्यक्ति को जिसके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया हैअनुज्ञा दे सकेगा कि वह उस क्षेत्र में जहां से हट जाने का उसे निदेश दिया गया था ऐसी अस्थायी अवधि के लिए और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुएजो ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएंलौट सकता है और अधिरोपित शर्तों के सम्यक् अनुपालन के लिए उससे अपेक्षा कर सकेगा कि वह प्रतिभू सहित या उसके बिनाबंधपत्र निष्पदित करे 

                (3) विशेष न्यायालय किसी भी समय ऐसी अनुज्ञा को प्रतिसंहृत कर सकेगा 

                (4) ऐसा व्यक्तिजो ऐसी अनुज्ञा से उस क्षेत्र में वापस आता हैजिससे उसे हटने के लिए निदेश दिया गया थाअधिरोपित शर्तों का अनुपालन करेगा और जिस अस्थायी अवधि के लिए लौटने की से अनुज्ञा दी गई थी उसके अवसान पर या ऐसी अस्थायी अवधि के अवसान के पूर्व ऐसी अनुज्ञा के प्रतिसंहृत किए जाने पर ऐसे क्षेत्र से बाहर हट जाएगा और धारा 10 के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के अनवसित भाग के भीतर नई अनुज्ञा के बिना वहां नहीं लौटेगा 

                (5) यदि कोई व्यक्ति अधिरोपित शर्तों में से किसी का पालन करने में या तद्नुसार स्वयं को हटाने में असफल रहेगा या इस प्रकार हट जाने के पश्चात् ऐसे क्षेत्र में नई अनुज्ञा के बिना प्रवेश करेगा या लौटेगा तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार करा सकेगा और उसे उस क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान कोजो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करेपुलिस अभिरक्षा में हटवा सकेगा 

12. ऐसे व्यक्तियों केजिनके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया हैमाप और फोटो आदि लेना-(1) प्रत्येक ऐसा व्यक्तिजिसके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया हैविशेष न्यायालय द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाने परकिसी पुलिस अधिकारी को अपने माप और फोटो लेने देगा 

                (2) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई व्यक्तिजिससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने माप या फोटो लेने देइस प्रकार माप या फोटो लिए जाने का प्रतिरोध करता है या उससे इंकार करता हैतो यह विधिपूर्ण होगा कि माप या फोटो लिए जाने को सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं 

                (3) उपधारा (2) के अधीन लिए जाने वाले माप या फोटो का प्रतिरोध या उससे इंकार करने को भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 186 के अधीन अपराध समझा जाएगा 

                (4) जहां धारा 10 के अधीन किया गया आदेश प्रतिसंहृत कर दिया जाता है वहां उपधारा (2) के अधीन लिए गए सभी माप और फोटो (जिसके अंतर्गत नेगेटिव भी हैंनष्ट कर दिए जाएंगे या उसे व्यक्ति को सौंप दिए जाएंगे जिसके विरुद्ध आदेश किया गया था 

13. धारा 10 के अधीन के अननुपालन के लिए शास्ति-(1) व्यक्तिजो धारा 10 के अधीन किए गए विशेष न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करेगाकारावास सेजिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगीऔर जुर्माने सेदंडनीय होगा 

अध्याय 4

विशेष न्यायालय

14. विशेष न्यायालय-राज्य सरकारशीघ्रविचारण का उपबंध करने के प्रयोजन के लिएउच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति सेराजपत्र में अधिसूचना द्वाराइस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए एक सेशन न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट करेगी 

15. विशेष लोक अभियोजक-राज्य सरकारप्रत्येक विशेष न्यायालय के लिएरापजत्र में अधिसूचना द्वाराएक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता कोजिसने कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि-व्यवसाय    किया होउस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी 

अध्याय 5

प्रकीर्ण

16. राज्य सरकार की सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की शक्ति-सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955(1955 का 22) की धारा 10 के उपबंधजहां तक हो सकेइस अधिनियम के अधीन सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने और उसे वसूल करने के प्रयोजनों के लिए और उससे संबद्ध सभी अन्य विषयों के लिए लागू होंगे 

17. विधि और व्यवस्था तंत्र द्वारा निवारक कार्रवाई-(1) यदि जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट या किसी पुलिस अधिकारी कोजो पुलिस उप-अधीक्षक की पंक्ति से नीचे का  होइत्तिला प्राप्त होने पर और ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह आवश्यक समझेयह विश्वास करने का कारण है कि किसी ऐसे व्यक्ति या ऐसे व्यक्तियों के समूह द्वाराजो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के नहीं हैं और जो उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर किसी स्थान पर निवास करते हैं या बार-बार आते-जाते हैंइस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने की संभावना है या उन्होंने अपराध करने की धमकी दी है और उसकी यह राय है कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त क्षेत्र घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनाए रखने तथा लोक व्यवस्था और प्रशांति बनाए रखने के लिए आवश्यक कार्रवाई कर सकेगा और निवारक कार्रवाई कर सकेगा 

                (2) संहिता के अध्याय 8, अध्याय 10 और अध्याय 11 के उपबंधजहां तक हों सकेउपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए लागू होंगे 

                (3) राज्य सरकारराजपत्र में अधिसूचना द्वाराएक या अधिक स्कीमें वह रीति विनिर्दिष्ट करते हुए बना सकेगा जिससे उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी अत्याचारों के निवारण के लिए तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों में सुरक्षा की भावना पुनः लाने के लिए स्कीम या स्कीमों में विनिर्दिष्ट समुचित कार्रवाई करेंगे 

18. अधिनियम के अधीन अपराध करने वाले व्यक्तियों को संहिता की धारा 438 का लागू  होना-संहिता की धारा 438 की कोई बात इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने के अभियोग पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के किसी मामले के संबंध में लागू नहीं होगी 

19. इस अधिनियम के अधीन अपराध के लिए दोषी व्यक्तियों को संहिता की धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के उपबंध का लागू  होना-संहिता की धारा 360 के उपबंध और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के उपबंध अठारह वर्ष से अधिक आयु के ऐसे व्यक्ति के संबंध में लागू नहीं होंगे जो इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने का दोषी पाया जाता है 

20. अधिनियम का अन्य विधियों पर अध्यारोही होना-इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवायइस अधिनियम के उपबंधतत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या किसी रूढ़ि या प्रथा या किसी अन्य विधि के आधार पर प्रभाव रखने वाले किसी लिखत में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भीप्रभावी होंगे 

21. अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का सरकार का कर्तव्य-(1) राज्य सरकारऐसे नियमों के अधीन रहते हुएजो केन्द्रीय सराकर इस निमित्त बनाएइस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ऐसे उपाय करेगी जो आवश्यक हों 

                (2) विशिष्टतया और पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिनाऐसे उपायों के अंतर्गत निम्नलिखित हो सकेगा, -

(i) ऐसे व्यक्तियों कोजिन पर अत्याचार हुआ हैन्याय प्राप्त करने में समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त सुविधाओं कीजिनके अंतर्गत विधिक सहायता भी हैव्यवस्था;

(ii) इस अधिनियम के अधीन अपराध के अन्वेषण और विचारण के दौरान साक्षियोंजिनके अंतर्गत अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति भी हैंयात्रा और भरणपोषण के व्यय की व्यवस्था;

(iii) अत्याचारों से पीड़ित व्यक्तियों के आर्थिक और सामाजिक पुनरुद्धार की व्यवस्था;

(iv) इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन के लिए अभियोजन प्रारम्भ करने या उनका पर्यवेक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति;

(v) ऐसे समुचित स्तरों परजो राज्य सरकार ऐसे उपायों की रचना या उनके क्रियान्वयन के लिए उस सरकार की सहायता करने के लिए ठीक समझेसमितियों की स्थापना करना;

(vi) इस अधिनियम के उपबंधों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए उपायों का सुझाव देने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबन्धों के कार्यकरण का समय-समय पर सर्वेक्षण करने की व्यवस्था;

(vii) उन क्षेत्रों की पहचान करना जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाजि के सदस्यों पर अत्याचार होने की संभावना है और ऐसे उपाय करना जिससे ऐसे सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके 

                (3) केन्द्रीय सरकार ऐसे उपाय करेगी जो उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकारों द्वारा किए गए उपायों में समन्वय करने के लिए आवश्यक हों 

                (4) केन्द्रीय सरकारप्रत्येक वर्षसंसद् के प्रत्येक सदन के पटल पर इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में स्वयं उसके द्वारा और राज्य सरकारों द्वारा किए गए उपायों के संबंध में एक रिपोर्ट रखेगी 

22. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए सरंक्षण-इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वादअभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध या राज्य सरकार या सरकार के किसी अधिकारी या प्राधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी 

23. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकारराजपत्र में अधिसूचना द्वाराइस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी 

                (2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियमबनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्षजब वह सत्र में होकुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा  यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी  यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा  यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा  किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा 

              (2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियमबनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्षजब वह सत्र में होकुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा  यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी  यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा  यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा  किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा 

 
 

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